‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सशस्त्र बलों ने सीखे कई रणनीतिक सबक: सीडीएस जनरल अनिल चौहान
थिएटर कमांड व्यवस्था में मिले अनुभव होंगे शामिल, रक्षा तंत्र में आत्मनिर्भरता और तत्परता पर ज़ोर

नई दिल्ली, 5 नवंबर। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (CDS) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को कहा कि भारत के सशस्त्र बलों ने हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से कई अहम सैन्य और रणनीतिक सबक सीखे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन अनुभवों को अब आगामी थिएटराइजेशन (Theaterisation) मॉडल में शामिल किया जाएगा, ताकि भारतीय सशस्त्र बल भविष्य की किसी भी चुनौती का और अधिक प्रभावी ढंग से सामना कर सकें।
जनरल चौहान नई दिल्ली में रक्षा क्षेत्र के प्रमुख थिंक टैंक ‘भारत शक्ति’ द्वारा आयोजित ‘इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव 2025’ में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने भारत की बदलती सैन्य रणनीति, थिएटर कमांड व्यवस्था, सीमा सुरक्षा और तकनीकी आधुनिकीकरण पर विस्तार से चर्चा की।
“ऑपरेशन सिंदूर ने हमें नई सैन्य वास्तविकताओं से रूबरू कराया”
सीडीएस चौहान ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक अभियान नहीं था, बल्कि यह भारत की सामरिक तत्परता और सहयोगात्मक रक्षा सोच की परीक्षा भी थी।
“हमने इस ऑपरेशन से कई सबक सीखे हैं। यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य के किसी भी सैन्य अभियान में तीनों सेनाओं—थलसेना, नौसेना और वायुसेना—के बीच निर्बाध समन्वय कितना आवश्यक है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने बताया कि आधुनिक युद्ध केवल गोलाबारी का नहीं, बल्कि इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस (ISR) क्षमताओं के समुचित उपयोग का भी होता है। जनरल चौहान ने कहा कि मई 2025 में हुए इस निर्णायक सैन्य अभियान के बाद भारत को अपनी खुफिया और युद्धक क्षमताओं को पाकिस्तान के हर कोने तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
“अब यह नई सामान्य स्थिति (new normal) बननी चाहिए,” उन्होंने दृढ़ता से कहा।
थिएटराइजेशन: समन्वित युद्ध क्षमता की दिशा में बड़ा कदम
सीडीएस ने थिएटर कमांड की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि रणनीतिक दक्षता बढ़ाने की दिशा में क्रांतिकारी पहल है।
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित किया है कि किसी भी ऑपरेशन में सूचना साझा करने की गति, संसाधनों की एकीकृत तैनाती और संयुक्त योजना बनाना निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
“हमारा उद्देश्य है कि थिएटर कमांड संरचना में तीनों सेनाएं एक साझा लक्ष्य के तहत, साझा संसाधनों के साथ, एकीकृत रूप से कार्य करें,” जनरल चौहान ने कहा।
उन्होंने बताया कि इस दिशा में कई पायलट प्रोजेक्ट और क्षेत्रीय अध्ययन चल रहे हैं, ताकि जमीनी हकीकत को ध्यान में रखकर कमांड की सीमाएं और जिम्मेदारियां तय की जा सकें।
‘ऑपरेशन सिंदूर’: सामरिक प्रतिबद्धता का उदाहरण
हालांकि इस ऑपरेशन के तकनीकी विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सीमापार आतंकवादी गतिविधियों पर निर्णायक जवाबी कार्रवाई थी। इस अभियान में तीनों सेनाओं का संयुक्त संचालन हुआ, जिसमें प्रिसीजन-स्ट्राइक तकनीक, ड्रोन्स और सैटेलाइट सर्विलांस सिस्टम का उपयोग किया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह अभियान भारत की नई “सर्जिकल रेस्पॉन्स” रणनीति का विस्तार था, जिसने आतंकवाद के ढांचे पर गहरा असर डाला।
रक्षा मामलों के विश्लेषक मेजर जनरल (से.नि.) एस.के. सिन्हा ने कहा —
“ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की रणनीतिक क्षमता को न केवल प्रदर्शित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि नई तकनीक और रियल-टाइम इंटेलिजेंस से किस तरह भविष्य के युद्ध लड़े जाएंगे।”
स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता पर फोकस
कॉन्क्लेव के दौरान जनरल चौहान ने यह भी कहा कि भारत को अपने रक्षा उपकरणों और तकनीक में पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करनी होगी। उन्होंने कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत सशस्त्र बलों ने कई स्वदेशी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है — जिनमें लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, आकाश मिसाइल सिस्टम, ड्रोन स्वार्म प्रोजेक्ट और एडवांस्ड कम्युनिकेशन नेटवर्क शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि अब लक्ष्य यह है कि भारतीय सेनाएं न केवल विदेशी तकनीक पर निर्भरता घटाएं, बल्कि अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास केंद्रों से युद्ध-तैयारी को गति दें।
“हमारी रणनीतिक सोच यह है कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा अपने ही संसाधनों से करने में सक्षम हो,” उन्होंने कहा।
नयी सैन्य सोच: सीमा पार स्थिरता और त्वरित प्रतिक्रिया
सीडीएस चौहान ने कहा कि वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों में ‘त्वरित प्रतिक्रिया और निरंतर निगरानी’ (Swift Response and Continuous Vigilance) सबसे महत्वपूर्ण कारक बन चुके हैं।
उन्होंने कहा कि भारत की सीमाएं अब केवल भौगोलिक सुरक्षा का प्रश्न नहीं रहीं, बल्कि साइबर, स्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे नए डोमेन भी आधुनिक युद्ध का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
“हमारे पास पाकिस्तान के हर हिस्से में आईएसआर और स्ट्राइक क्षमता होनी चाहिए। यह केवल ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी है,” उन्होंने कहा।
रक्षा सहयोग और नीति-निर्माण में नए आयाम
कॉन्क्लेव में मौजूद कई वरिष्ठ अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों ने भारत के सहयोगी देशों के साथ रक्षा साझेदारी को भी चर्चा में रखा।
रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, भारत वर्तमान में अमेरिका, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संयुक्त रक्षा अभ्यास, लॉजिस्टिक सपोर्ट और तकनीकी साझेदारी को और मजबूत कर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का उद्देश्य केवल अपनी सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और शांति बनाए रखना है।
आधुनिक और सजग भारत की झलक
सीडीएस जनरल चौहान के वक्तव्य ने यह स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारतीय रक्षा तंत्र की दिशा में हो रहे व्यापक परिवर्तन का प्रतीक है।
थिएटराइजेशन मॉडल के माध्यम से भारत तीनों सेनाओं की संयुक्त शक्ति को एकीकृत रूप में विकसित करने जा रहा है, जिससे भविष्य की किसी भी चुनौती के सामने देश और अधिक सुरक्षित, तत्पर और आत्मनिर्भर बन सके।



