
स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में अमेरिका और चीन के बीच दो दिवसीय उच्च स्तरीय व्यापार वार्ता आखिरकार सकारात्मक संकेतों के साथ समाप्त हुई। दोनों पक्षों ने संकेत दिए हैं कि बहुचर्चित टैरिफ वॉर अब समाप्ति की ओर है।
अमेरिकी अधिकारियों ने इसे अमेरिका के भारी व्यापार घाटे को कम करने की दिशा में “व्यावहारिक प्रगति” बताया है, जबकि चीन ने इसे “दुनिया के लिए अच्छी खबर” करार दिया है।
हालांकि, अभी तक दोनों देशों ने वार्ता के बिंदुओं की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। चीनी उपप्रधानमंत्री हे लिफेंग के अनुसार, सोमवार को एक संयुक्त बयान जारी किया जाएगा जिसमें स्पष्ट रूप से बताया जाएगा कि किन विषयों पर सहमति बनी है।
जनवरी 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित उत्पादों पर 145% टैरिफ लगा दिया था। बीजिंग ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए कुछ अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ थोप दिया था।
इसके बाद यह जिनेवा वार्ता पहली औपचारिक मुलाकात थी, जहां चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उपप्रधानमंत्री हे लिफेंग और अमेरिकी पक्ष का नेतृत्व ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट और व्यापार प्रतिनिधि जैमिसन ग्रीर ने किया।
हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या दोनों देश इन ऊँचे टैरिफ से पीछे हटने पर सहमत हुए हैं या नहीं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों ने व्यापार और आर्थिक विवादों को सुलझाने के लिए एक नया कंसल्टेशन मैकेनिज्म स्थापित करने पर सहमति जताई है।
इससे पहले, 2023 में बाइडेन प्रशासन ने एक इकनॉमिक वर्किंग ग्रुप बनाया था, जो अब इस नई संरचना का आधार बनेगा।
ट्रंप प्रशासन के टैरिफ नीति का नतीजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ा है। 2025 की पहली तिमाही में GDP 0.3% की दर से सिकुड़ी है। आने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनज़र ट्रंप को अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की ज़रूरत है।
चीनी निर्यातक अमेरिकी टैरिफ से जूझ रहे हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि सोरबो टेक्नोलॉजी नाम की कंपनी के आधे उत्पाद अमेरिकी बाज़ार में जाने के बजाय अब चीन के गोदामों में धूल फांक रहे हैं।
सोमवार को जारी होने वाला संयुक्त बयान यह स्पष्ट करेगा कि किन क्षेत्रों में समझौता हुआ है, और क्या 145% बनाम 125% टैरिफ को हटाया जाएगा। यदि ऐसा होता है, तो यह वैश्विक व्यापार के लिए बड़ी राहत और चीन-अमेरिका संबंधों में नया मोड़ हो सकता है।
ट्रंप और जिनपिंग के लिए यह “हाथ मिलाना” केवल व्यापार नहीं, बल्कि राजनीतिक अनिवार्यता भी बन चुका है। वैश्विक आर्थिक स्थिरता और घरेलू दबावों ने इन दोनों महाशक्तियों को समझौते की टेबल तक लाया है।
अब दुनिया की निगाहें सोमवार के संयुक्त बयान पर टिकी हैं — क्या यह सचमुच एक ऐतिहासिक मोड़ होगा, या सिर्फ एक और ‘संधि संकेत’?