चीन की अकड़ ढीली करने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर प्लान बनाया है। ये दोनों देश मिलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की नापाक हरकतों पर परमाणु पनडुब्बियों से नजर रखेंगे। इस कदम से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की टेंशन और बढ़ने वाली है। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच एक ऐसा एग्रीमेंट हुआ है, जो दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों को और गहरा करेगा। साथ ही हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीनी प्रभाव पर भी लगाम लगाएगा। ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की मुलाकात के बाद समझौतों की घोषणा की गई है। माना जा रहा है कि इस समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी सेना की मौजूदगी में इजाफा होगा। इससे चीन की ऑस्ट्रेलिया के करीबी समुद्री इलाकों में बढ़ती मौजूदगी पर भी लगाम कसी जा सकेगी।
समझौते के अनुसार पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में एक बेस पर अमेरिकी पनडुब्बी का दौरा, उत्तरी और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थित एयरबेस पर अमेरिकी सेना की पहुंच, अंतरिक्ष में दोनों देशों के बीच सहयोग में इजाफा होने के साथ ही ऑस्ट्रेलिया भी रक्षा क्षेत्र में तेजी से विकास करेगा। इस समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया सेल्फ गाइडेड मिसाइल को विकसित करेगा। वहीं क्षेत्र के दूसरे देशों खासकर जापान के साथ रक्षा संबंध गहरे करने की दिशा में काम कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने मीटिंग के बाद मीडिया से कहा, ‘ हम सभी ने महसूस किया है कि गठबंधन कभी भी इससे बेहतर स्थिति में नहीं रहा है।’ जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की संयुक्त सक्रियता से चीन की टेंशन बढ़ जाएगी।
ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पेनी वोंग ने अमेरिका को ‘महत्वपूर्ण सहयोगी’ करार दिया है। हाल ही में वोंग ने अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ कई मीटिंग की हैं जिनमें शांति और स्थिरता को सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी की मजबूती से चीन के वे मंसूबे नाकामयाब हो जाएंगे, जो वह इस इलाके में करना चाहता था। क्योंकि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया द्वारा जवाब देने की क्षमता इतनी कड़ी हो जाएगी कि चीन कोई हिमाकत नहीं करेगा। इस समय उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में डार्विन में अमेरिका की मरीन कोर मौजूद है। इस नए समझौते के बाद उसकी ताकत में भी इजाफा होगा।