
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है। इसका सीधा अर्थ है कि अब भारत से होकर सिंधु नदी का जो पानी पाकिस्तान जाता था, उसे रोका जाएगा। हमले के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने इस फैसले की घोषणा की थी, और अब इसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
इसी संदर्भ में शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निवास पर एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित हुई। बैठक में जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल समेत कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। चर्चा का मुख्य विषय था—सिंधु जल संधि को प्रभावी ढंग से स्थगित करने और पाकिस्तान जाने वाले जल को भारत में ही संरक्षित करने की कार्ययोजना।
बैठक में निम्नलिखित प्रमुख निर्णय लिए गए:
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सिंधु का पानी तुरंत रोका जाएगा। यह भारत सरकार की प्राथमिकता होगी कि पाकिस्तान को एक बूंद भी पानी न भेजा जाए।
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बांधों की क्षमता बढ़ाई जाएगी। सिंधु के जल को भारत में स्टोर करने के लिए मौजूदा बांधों की क्षमता को आधुनिक तकनीकों की मदद से बढ़ाया जाएगा।
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गाद हटाने पर विशेष ध्यान। बांधों की तलहटी में जमा गाद हटाने की योजना तैयार की जाएगी, ताकि जल भंडारण क्षमता में इज़ाफा हो सके।
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विश्व बैंक को जानकारी दी जाएगी। चूंकि यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, इसलिए भारत के निर्णय की सूचना उसे भी दी जाएगी।
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तीन चरणों में होगा अमल। संधि को स्थगित करने की प्रक्रिया तीन चरणों—तत्काल, मध्यकालीन और दीर्घकालीन—में लागू की जाएगी।
जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा को पत्र भेजकर इस फैसले की जानकारी दी है। पत्र में यह भी कहा गया है कि भारत ने 1960 की संधि के अनुच्छेद 12(3) के तहत संशोधन की मांग की थी, जो पाकिस्तान द्वारा लगातार नजरअंदाज की गई।
भारत ने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि:
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पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देना संधि की भावना के विपरीत है।
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पाकिस्तान ने जल मुद्दों पर भारत द्वारा प्रस्तावित वार्ता को अनदेखा किया, जो संधि का उल्लंघन है।
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बदलती परिस्थितियों, जनसंख्या वृद्धि और स्वच्छ ऊर्जा की ज़रूरतों के चलते अब संधि की पुनर्समीक्षा अनिवार्य है।
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इस समझौते के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का जल उपयोग करने का अधिकार मिला था, जबकि तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) का बहाव पाकिस्तान के लिए सुनिश्चित किया गया था।