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थलपति विजय की सियासी पारी: क्या बिना गठबंधन तमिलनाडु में जीत पाएंगे मैदान?

सुपरस्टार ने मदुरै रैली से किया बड़ा ऐलान, DMK-BJP दोनों से दूरी; पर क्या अकेले दम पर मुमकिन है सत्ता का सपना?

चेन्नई, 22 अगस्त: साउथ सिनेमा के सुपरस्टार थलपति विजय अब राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं। गुरुवार को मदुरै में आयोजित अपनी पहली बड़ी रैली में उन्होंने साफ ऐलान किया कि उनकी नई पार्टी किसी भी बड़े दल से गठबंधन नहीं करेगी। विजय ने कहा कि वे न तो सत्ताधारी डीएमके से हाथ मिलाएंगे और न ही बीजेपी से। उनके बयान से यह भी स्पष्ट है कि वे एआईएडीएमके को भी गंभीरता से नहीं ले रहे।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या विजय बिना किसी गठबंधन के तमिलनाडु जैसे राजनीतिक समीकरणों से भरे राज्य में सत्ता तक पहुँच पाएंगे?


तमिलनाडु की राजनीति: गठबंधन का खेल

तमिलनाडु की राजनीति का इतिहास गवाह है कि यहां गठबंधन के बिना सत्ता तक पहुंचना लगभग असंभव रहा है।
सत्ताधारी डीएमके लगातार अपने गठबंधन को मजबूत कर रही है और पहले से ही दस से अधिक दल उनके साथ खड़े हैं। दूसरी तरफ एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन भी अपनी पकड़ बढ़ाने की कोशिश में जुटा है।

चुनावी गणित को समझने के लिए कुछ उदाहरण अहम हैं—

  • 1996 में अपने सबसे बुरे दौर में भी एआईएडीएमके को लगभग 27% वोट शेयर मिला था, लेकिन सीटें केवल 4 ही मिल पाईं।
  • 2011 के विधानसभा चुनाव में डीएमके गठबंधन ने करीब 39% वोट शेयर हासिल किया, मगर 234 सीटों में से सिर्फ 31 सीटें ही जीत सका।

इससे साफ है कि 30% से ज्यादा वोट शेयर भी सत्ता दिलाने की गारंटी नहीं है, जब तक सही गठबंधन का गणित न बैठाया जाए।


DMK और AIADMK का अटूट जनाधार

पिछले कई दशकों से तमिलनाडु की राजनीति दो ध्रुवों—डीएमके और एआईएडीएमके—के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
यहां तक कि करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता जैसे दिग्गज नेताओं के समय में भी, दोनों दलों ने गठबंधन बनाकर ही अपनी सत्ता सुनिश्चित की थी।
आज भी इन दोनों पार्टियों के पास मजबूत कैडर, स्थायी वोट बैंक और घर-घर पहचाने जाने वाले चुनाव चिन्ह हैं। यही वजह है कि नए खिलाड़ी को राजनीतिक जमीन पर पैर जमाना आसान नहीं है।


विजय का स्टारडम: प्लस या माइनस?

थलपति विजय का सिनेमा में स्टारडम निर्विवाद है। उनकी लोकप्रियता सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं, हिंदी भाषी राज्यों में भी है। यही वजह है कि उनके राजनीति में उतरते ही चर्चा तेज हो गई है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या स्टारडम वोटों में तब्दील हो पाएगा?
इतिहास बताता है कि तमिलनाडु में फिल्मी पृष्ठभूमि से आए नेताओं को जनता ने सिर-आंखों पर बैठाया है—चाहे वह एमजीआर हों या जयललिता। पर उनकी सफलता की वजह सिर्फ स्टारडम नहीं, बल्कि मजबूत राजनीतिक संगठन और गठबंधन की रणनीति भी रही।


गठबंधन से दूरी: साहस या जोखिम?

विजय का गठबंधन से दूर रहने का ऐलान उनकी राजनीति को साफ और स्वतंत्र छवि जरूर देता है, लेकिन यह रणनीति चुनावी मैदान में जोखिम भरी साबित हो सकती है।
तमिलनाडु जैसे राज्य में बिना गठबंधन के वोट शेयर को सीटों में बदलना बेहद कठिन है। विजय को न केवल नए सिरे से संगठन खड़ा करना होगा, बल्कि ग्रामीण इलाकों और पारंपरिक वोट बैंक में भी पैठ बनानी होगी।

विजय का राजनीतिक डेब्यू तमिलनाडु की राजनीति में हलचल मचा चुका है। उनका स्टारडम शुरुआती भीड़ जरूर जुटा सकता है, लेकिन क्या यह समर्थन स्थायी वोट बैंक में बदलेगा?
फिलहाल स्थिति यही कहती है कि बिना गठबंधन के सत्ता का रास्ता बेहद कठिन होगा। विजय को अगर सचमुच एमजीआर जैसा मुकाम पाना है तो उन्हें न केवल जनता से भावनात्मक जुड़ाव बनाना होगा, बल्कि जमीनी स्तर पर पार्टी को संगठित करना और सही चुनावी रणनीति अपनाना भी जरूरी होगा।

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