
वॉशिंगटन/नई दिल्ली, 11 मई: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम (Ceasefire) की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “ऐतिहासिक और वीरतापूर्ण निर्णय” बताते हुए कश्मीर मुद्दे के समाधान की संभावना जताई है। हालांकि, भारत ने फिलहाल इस दिशा में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने 23 अप्रैल को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को तबाह किया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में ड्रोन हमले की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। इसके बाद स्थिति तनावपूर्ण और बेहद नाजुक हो गई थी।
शनिवार को दोनों देशों ने सीजफायर पर सहमति जताई। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे सबसे पहले सार्वजनिक किया और दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता से यह समझौता संभव हुआ। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर कहा:
“मुझे भारत और पाकिस्तान के मजबूत और अडिग नेतृत्व पर बहुत गर्व है। अमेरिका को इस निर्णय में मदद करने का अवसर मिला — यह सम्मान की बात है।”
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने दावा किया कि उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत कर यह समझौता कराया।
ट्रंप ने अपनी पोस्ट में कश्मीर मुद्दे को ‘हजार साल पुराना’ बताते हुए कहा कि वे भारत और पाकिस्तान के साथ मिलकर यह देखना चाहेंगे कि क्या अब कोई स्थायी समाधान निकल सकता है।
“मैं भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार को भी काफी हद तक बढ़ाने जा रहा हूं। और यह देखने का प्रयास करूंगा कि क्या इतने वर्षों बाद कश्मीर का कोई हल निकाला जा सकता है।”
हालांकि, भारतीय सरकारी सूत्रों ने साफ किया है कि सीजफायर समझौता सीधे भारत और पाकिस्तान के DGMO स्तर की बातचीत का परिणाम है, और अमेरिका की कोई औपचारिक मध्यस्थता नहीं हुई। विदेश मंत्रालय ने कहा कि:
“यह द्विपक्षीय प्रक्रिया रही है, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता।”
भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सिंधु जल संधि पर भारत का सख्त रुख जारी रहेगा, और भविष्य में किसी भी आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई (Act of War) माना जाएगा।
डोनाल्ड ट्रंप का बयान भारत-पाक संबंधों में एक नई बहस को जन्म देता है। हालांकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अमेरिका की भूमिका और कूटनीतिक दावे आने वाले दिनों में नई दिशा तय कर सकते हैं।