
नई दिल्ली, 6 अगस्त | विशेष संवाददाता: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान 65 लाख नामों को हटाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग (ECI) से विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए हटाए गए मतदाताओं से जुड़ी पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता का आरोप – नाम हटाए, लेकिन कोई डेटा सार्वजनिक नहीं
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने पीठ को बताया कि ड्राफ्ट रोल में 65 लाख नाम हटा दिए गए हैं, लेकिन इस बारे में कोई सूची जारी नहीं की गई। चुनाव आयोग की ओर से केवल इतना बताया गया कि 32 लाख लोग राज्य से प्रवास कर चुके हैं, बाकी 33 लाख के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई।
भूषण ने यह भी कहा कि केवल दो विधानसभा क्षेत्रों में ही बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) की सिफारिशों को सार्वजनिक किया गया है, जबकि शेष क्षेत्रों की जानकारी अभी भी सामने नहीं आई है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – SOP के अनुसार सभी दलों को मिलनी चाहिए जानकारी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को नामों के हटाए जाने की जानकारी दी जानी चाहिए।
चुनाव आयोग की ओर से अदालत को बताया गया कि उन्होंने संबंधित जानकारी राजनीतिक दलों को प्रदान कर दी है, जिसे रिकॉर्ड में लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा कि वह शनिवार तक एक विस्तृत हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करे:
- किन आधारों पर नाम हटाए गए,
- कितने मतदाता मृत पाए गए,
- कितने प्रवास कर गए,
- और कितनों को BLO की सिफारिश पर सूची से बाहर किया गया।
साथ ही, यह भी बताना होगा कि किन-किन राजनीतिक दलों को यह जानकारी साझा की गई।
12 अगस्त को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अब 12 अगस्त को अगली सुनवाई करेगा। न्यायालय की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब देश में आगामी चुनावों की तैयारी जोरों पर है और मतदाता सूची को लेकर पारदर्शिता बनाए रखना बेहद आवश्यक है।