
देहरादून : उत्तराखंड सरकार ने पंचायत चुनावों को लेकर एक अहम निर्णय लेते हुए उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के तहत अब 25 जुलाई 2019 से पहले जिन उम्मीदवारों के तीन या अधिक बच्चे हैं, वे भी पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे। इससे पहले, अधिनियम के प्रावधानों के तहत दो से अधिक संतानों वाले व्यक्तियों को पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया था।
क्या है संशोधन?
2001 में लागू पंचायती राज अधिनियम में एक प्रावधान जोड़ा गया था, जिसके अनुसार 27 सितंबर 2019 के बाद जिन व्यक्तियों के दो से अधिक संतान होंगी, वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकते थे। यह प्रावधान जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में उठाया गया एक कदम माना गया था।
हालांकि, इस प्रावधान में कट-ऑफ डेट को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद जुड़वा बच्चों को एक ही संतान इकाई मानने का आदेश दिया गया। इसके बावजूद शासन की ओर से जारी आदेशों में 25 जुलाई 2019 की कट-ऑफ डेट दी गई, जिससे 27 सितंबर 2019 और 25 जुलाई 2019 की दो अलग-अलग तिथियों के कारण विरोधाभास उत्पन्न हो गया।
अब राज्य सरकार ने स्पष्टता लाते हुए 25 जुलाई 2019 को ही अंतिम मान्यता प्राप्त कट-ऑफ तिथि घोषित किया है, जिसे अधिनियम में संशोधन के माध्यम से अधिसूचित किया गया है।
मुख्यमंत्री की स्वीकृति और राज्यपाल की मंजूरी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में इस संशोधन को मंजूरी दी गई और इसे “उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अध्यादेश 2025” के रूप में राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अधिसूचित कर दिया गया है। इसके साथ ही यह नया नियम अब पूरे राज्य में लागू हो गया है।
कौन-कौन चुनाव लड़ सकेगा?
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25 जुलाई 2019 से पहले जिनके पास तीन या अधिक संतान हैं – पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे।
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25 जुलाई 2019 या इसके बाद जिनके पास दो से अधिक बच्चे हैं – चुनाव लड़ने से वंचित रहेंगे।
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25 जुलाई 2019 या इसके बाद जुड़वा बच्चों के कारण संतान संख्या तीन हो गई है – ऐसे लोग भी चुनाव लड़ सकेंगे, क्योंकि जुड़वाओं को एक संतान इकाई माना जाएगा।
आगामी पंचायत चुनावों की तैयारी
हरिद्वार को छोड़ राज्य के अन्य 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। राज्य सरकार ने प्रशासनिक प्रबंधन के लिए प्रशासकों की नियुक्ति की थी। अब संभावना जताई जा रही है कि जून 2025 में नए पंचायत चुनाव कराए जा सकते हैं। इस नए संशोधन से पहले अयोग्य माने जा रहे कई उम्मीदवारों को अब चुनाव लड़ने का अवसर मिल सकेगा।
इस संशोधन को जहां कुछ वर्ग परिवार नियोजन के सख्त नियमों में ढील के रूप में देख सकते हैं, वहीं यह निर्णय न्यायालय के आदेश और व्यावहारिक जरूरतों को ध्यान में रखकर लिया गया प्रतीत होता है। इससे न केवल चुनावी भागीदारी का दायरा बढ़ेगा, बल्कि जुड़वा संतानों के मामले में हो रहे अन्याय को भी समाप्त किया जा सकेगा।