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भारत के अंतरिक्ष विज्ञान में ऐतिहासिक छलांग : भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे, 7 स्वदेशी प्रयोग करेंगे

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📍 नई दिल्ली | भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, अमेरिकी कंपनी एक्सिओम स्पेस के मिशन AX-4 के तहत ड्रैगन यान से सफलतापूर्वक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से जुड़ गए हैं। इस ऐतिहासिक मिशन को लेकर केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे भारत के लिए “गौरव का क्षण” बताते हुए सराहना की है।

आत्मनिर्भर भारत की उड़ान अंतरिक्ष तक

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ISS पर पूरी तरह से स्वदेशी तकनीकों पर आधारित सात वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। ये सभी प्रयोग भारतीय संस्थानों द्वारा डिजाइन और विकसित किए गए हैं, जो न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।

उन्होंने कहा, “भारत अब केवल लॉन्चपैड तक सीमित नहीं, हम अब अंतरिक्ष में जीवन और विज्ञान के भविष्य को आकार दे रहे हैं। ये प्रयोग प्रधानमंत्री मोदी जी के आत्मनिर्भर और विश्वबंधु भारत की परिकल्पना को साकार करते हैं।”

सात प्रमुख स्वदेशी प्रयोग
  1. सूक्ष्म शैवाल पर प्रयोग (ICGEB & BRIC-NIPGR, नई दिल्ली)

    • उद्देश्य: माइक्रोग्रैविटी में शैवाल की वृद्धि व चयापचय का अध्ययन

    • लाभ: अंतरिक्ष मिशनों के लिए पोषण, ऑक्सीजन उत्पादन, जल पुनर्चक्रण

  2. बीज अंकुरण और पोषण (UAS व IIT धारवाड़)

    • उद्देश्य: मूंग-मेथी जैसे बीजों के अंकुरण और पोषक गुणों की जांच

    • लाभ: अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पौष्टिक सप्लिमेंट और औषधीय उपयोग

  3. मांसपेशी क्षरण का अध्ययन (BRIC-InStem, बेंगलुरु)

    • उद्देश्य: सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में मांसपेशी के जैविक क्षरण की प्रक्रिया को समझना

    • लाभ: अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत और धरती पर मांसपेशी रोगों का इलाज

  4. टार्डिग्रेड का व्यवहार (IISc, बेंगलुरु)

    • उद्देश्य: कठोर स्थितियों में टार्डिग्रेड जीवों का अस्तित्व और पुनरुत्थान

    • लाभ: मानव अनुकूलनशीलता और अंतरिक्ष में जीवन की संभावना

  5. डिजिटल इंटरफेस की प्रतिक्रिया (IISc, बेंगलुरु)

    • उद्देश्य: माइक्रोग्रैविटी में डिस्प्ले और इंटरफेस से मानव प्रतिक्रिया

    • लाभ: अंतरिक्ष यान नियंत्रण प्रणाली को सुरक्षित और उपयोगकर्ता अनुकूल बनाना

  6. यूरिया पर साइनोबैक्टीरिया का विकास (ICGEB, नई दिल्ली)

    • उद्देश्य: अंतरिक्ष में कार्बन और नाइट्रोजन की पुनर्चक्रण प्रणाली

    • लाभ: सस्टेनेबल स्पेस फूड सिस्टम और दीर्घकालिक मिशनों के लिए संभावनाएं

  7. बीज अनुकूलन प्रयोग (विविध संस्थान)

    • उद्देश्य: चावल, तिल, टमाटर जैसे बीजों पर अंतरिक्ष का प्रभाव

    • लाभ: अंतरिक्ष कृषि की संभावनाएं और जलवायु-अनुकूल फसलें विकसित करना

डॉ. जितेंद्र सिंह ने जोर देकर कहा कि ये प्रयोग केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि इनके परिणाम पूरे वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए साझा किए जाएंगे। इससे भारत अंतरिक्ष जैव-विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

उन्होंने कहा, “भारत अब अनुसरण करने वाला नहीं रहा, हम ग्रहीय प्रासंगिकता वाले मिशनों का नेतृत्व कर रहे हैं।

यह मिशन न केवल भारतीय अंतरिक्ष यात्री की मौजूदगी के लिए यादगार है, बल्कि यह दिखाता है कि भारत अब ‘स्पेसफेरिंग नेशन’ से ‘स्पेस टेक्नोलॉजी इनोवेटर’ की ओर अग्रसर है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान आने वाले वर्षों में भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बनेगी।

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