
नई दिल्ली। तमाम नीतिगत उपायों, अभियानों और जागरूकता के बावजूद दिल्ली की हवा में सुधार की रफ्तार बेहद धीमी है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की अप्रैल माह की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली देश के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रही। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पीएम 2.5 का औसत स्तर 77 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और राष्ट्रीय मानकों, दोनों से काफी अधिक है।
दिल्ली में हवा अब भी मानकों से परे
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में अप्रैल महीने के दौरान:
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16 दिन हवा सामान्य,
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9 दिन खराब,
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और 5 दिन संतोषजनक श्रेणी में दर्ज हुई।
जबकि WHO के मानक के अनुसार, PM 2.5 का सुरक्षित स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, और राष्ट्रीय मानक के अनुसार यह सीमा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित की गई है। दिल्ली का औसत 77 होने का मतलब है कि राजधानी की हवा राष्ट्रीय मानक से भी ऊपर और WHO के मानक से पाँच गुना अधिक प्रदूषित रही।
बर्नीहाट, जो असम और मेघालय की सीमा पर स्थित है, अप्रैल में देश का सबसे प्रदूषित शहर रहा। यहाँ पीएम 2.5 का औसत स्तर 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। बर्नीहाट में:
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13 दिन बहुत खराब,
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6 दिन खराब,
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5 दिन सामान्य,
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और 6 दिन संतोषजनक दर्ज हुए।
सूची में बिहार के 5 शहर, उत्तर प्रदेश के 2, और दिल्ली, हरियाणा व असम/मेघालय के एक-एक शहर शामिल हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि उत्तर भारत के अधिकांश शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्र अब भी गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं।
CREA की रिपोर्ट में देशभर के 273 शहरों का विश्लेषण किया गया, जिसमें 248 शहरों की हवा WHO मानकों से खराब पाई गई। इनमें से 227 शहर ऐसे हैं, जहां पीएम 2.5 का स्तर भले ही राष्ट्रीय मानकों के अनुसार ठीक रहा, लेकिन वैश्विक मानकों पर अस्वीकृत है। केवल 7 शहरों की हवा WHO के मानकों पर खरी उतर पाई।
रिपोर्ट में यह भी चेताया गया है कि साल के पहले चार महीनों में ही प्रदूषण का स्तर इतना अधिक रहा है कि यदि शेष महीनों में सुधार हो भी जाए, तब भी सालाना औसत प्रदूषण WHO और राष्ट्रीय मानकों से अधिक ही रहेगा। यह स्थिति देश की वायु गुणवत्ता सुधार योजनाओं की प्रभावशीलता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
दिल्ली समेत उत्तर भारत के शहरी इलाकों की हवा सांस लेने लायक नहीं रह गई है। वायु गुणवत्ता सुधार हेतु किये जा रहे प्रयास अब तक पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए हैं। CREA की यह रिपोर्ट सरकारों और स्थानीय प्रशासन के लिए चेतावनी और कार्यवाही दोनों का अवसर है।