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न खेतों में पानी, न नलों में राहत: सिंधु जल संधि नकार कर भारत ने कैसे कसा पाकिस्तान पर शिकंजा

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नई दिल्ली/इस्लामाबाद:
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है। भारत का यह फैसला पाकिस्तान को सख्त राजनयिक और रणनीतिक संदेश देने वाला है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि जब तक इस्लामाबाद सीमा पार आतंकवाद के समर्थन को विश्वसनीय और स्थायी रूप से नहीं रोकता, तब तक यह संधि बहाल नहीं की जाएगी।

साल 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई इस ऐतिहासिक संधि के तहत:

  • भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज – का पूरा पानी मिला।

  • पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का मुख्य प्रवाह मिला।

  • भारत को पश्चिमी नदियों से सीमित सिंचाई, घरेलू उपयोग और जलविद्युत उत्पादन की अनुमति है।

  • भारत को पश्चिमी नदियों में 3.6 MAF तक जल संग्रहण की भी इजाजत है, लेकिन कुछ तकनीकी शर्तों के साथ।

भारत के पूर्व सिंधु जल आयुक्त प्रदीप कुमार सक्सेना के अनुसार:

  • संधि स्थगन से भारत अब पश्चिमी नदियों पर नए बांध, भंडारण और फ्लशिंग गतिविधियां शुरू कर सकता है।

  • भारत अब बाढ़ से संबंधित आंकड़े साझा करना भी बंद कर सकता है – जिससे पाकिस्तान को मानसून में भारी नुकसान हो सकता है।

  • भविष्य की सभी जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों को नजरअंदाज किया जा सकता है।

  • वियना कन्वेंशन का आर्टिकल 62 भारत को यह अधिकार देता है कि बदले हालातों में वह संधि को अमान्य कर सकता है।

  • पाकिस्तान का पंजाब प्रांत सिंधु और सहायक नदियों पर बुरी तरह निर्भर है।

  • संधि के निलंबन से खेती-बाड़ी, पीने का पानी और बिजली उत्पादन जैसे सभी सेक्टर प्रभावित होंगे।

  • जलाशयों की फ्लशिंग और भराव भारत जब चाहे कर सकता है – जिससे बुआई के सीजन में जल संकट पैदा हो सकता है।

  • भारत अब सिंधु और झेलम पर बड़े स्टोरेज प्रोजेक्ट बना सकता है – जो पाकिस्तान की जल सुरक्षा नीति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

भारत ने साफ कर दिया है कि आतंक का जवाब अब केवल बातों से नहीं, संसाधनों से भी दिया जाएगा। सिंधु जल संधि को रोकना कोई साधारण कदम नहीं – यह पाकिस्तान की सबसे संवेदनशील नस – जल संसाधन पर दबाव बढ़ाने की रणनीति है।

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