
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में हाल ही में लागू की गई वस्तु एवं सेवा कर (GST) दरों में कटौती ने राज्य की कृषि, पर्यटन और हस्तशिल्प आधारित अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है।
केंद्र सरकार के निर्णय के बाद अब पहाड़ी तूर दाल, लाल चावल और लखौरी मिर्च पर जीएसटी घटाकर 5% कर दिया गया है। वहीं, ₹7,500 तक के होटल शुल्क और पारंपरिक शिल्प उत्पादों पर भी कर में कमी आने से राज्य की स्थानीय आजीविका और पर्यटन क्षेत्र में उत्साह का माहौल है।
कृषि उत्पादों को मिली मजबूती
उत्तराखंड के 13 पहाड़ी जिलों में उगाई जाने वाली स्थानीय तूर दाल, लाल चावल और लखौरी मिर्च जैसे उत्पादों पर अब 18% या 12% से घटाकर 5% जीएसटी लागू किया गया है। इस निर्णय से छोटे किसानों और जैविक उत्पादकों को सीधा लाभ मिलेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम स्थानीय ब्रांडिंग और जीआई टैग वाले उत्पादों को देशभर के बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
देहरादून स्थित राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अनुसार, इस सुधार से लगभग 25,000 छोटे किसान लाभान्वित होंगे, जो अब अपने उत्पादों को ऑनलाइन और खुदरा चैनलों के ज़रिए बेहतर दामों पर बेच सकेंगे।
पर्यटन उद्योग को नई उड़ान
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान लगभग 13.57% है और यह करीब 80,000 लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है।
अब ₹7,500 तक के होटल शुल्क पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% किए जाने से यात्रा और आवास और अधिक किफायती होंगे।
इस सुधार से नैनीताल, मसूरी, औली, चोपता, हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों पर होमस्टे, छोटे होटल और रेस्टोरेंट संचालकों को राहत मिलेगी।
होटल एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अनुसार, इससे पर्यटन सीजन में औसत बुकिंग दर 15–20% तक बढ़ने की संभावना है।
महिलाओं के नेतृत्व वाले हस्तशिल्प को बढ़ावा
कुमाऊँ क्षेत्र की पारंपरिक “ऐपण कला” को भी इस कर सुधार से नया जीवन मिला है। जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने के बाद इस क्षेत्र से जुड़ी करीब 4,000 महिला उद्यमियों को सीधा आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है।
ऐपण अब केवल सजावट की कला नहीं रही, बल्कि बैग, उपहार वस्तुएँ और दीवार सज्जा उत्पादों के रूप में देश-विदेश में मांग पा रही है। राज्य सरकार ने ऐपण को जीआई टैग दिलाने और इसे ग्लोबल हैंडीक्राफ्ट बाजारों में ले जाने के लिए भी कदम तेज किए हैं।
रिंगाल और ऊनी शिल्प में रोजगार का संचार
रिंगाल (पहाड़ी बाँस) और पारंपरिक ऊनी उत्पादों पर जीएसटी घटाने से पहाड़ी जिलों की शिल्प अर्थव्यवस्था को नई ताकत मिली है। रिंगाल, जो मुख्यतः पिथौरागढ़, चंपावत और नैनीताल में तैयार होता है, से टोकरियाँ, ट्रे और सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने से यह सुधार अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों के लिए राहत लेकर आया है। गढ़वाल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, 47.65% पहाड़ी परिवार रिंगाल या बाँस शिल्प से आय अर्जित करते हैं, जिससे यह बदलाव ग्रामीण आजीविका को स्थायी सहारा प्रदान करेगा।
वहीं, चमोली, उत्तरकाशी और बागेश्वर में निर्मित पारंपरिक ऊनी उत्पाद (पंखी, शॉल, स्टोल) अब 6–7% सस्ते हो जाएंगे। इससे 10,000 से अधिक कारीगरों, विशेषकर महिला समूहों को सीधा लाभ मिलेगा। स्थानीय मेलों और ऑनलाइन बिक्री में भी इन उत्पादों की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
औद्योगिक क्षेत्र को भी राहत
पर्यटन और कृषि के अलावा, ऑटोमोबाइल उद्योग पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वाहनों पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% करने से अब वाहनों की कीमतें औसतन 8–10% तक कम हो जाएँगी।
हरिद्वार और रुड़की के औद्योगिक क्लस्टर में इससे उत्पादन में बढ़ोतरी और 50,000 नई नौकरियों की संभावना जताई जा रही है। राज्य उद्योग विभाग के अनुसार, इन बदलावों से छोटे और मंझोले उद्यम (MSME) सेक्टर में निवेश का प्रवाह बढ़ेगा।
‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ की दिशा में निर्णायक कदम
विश्लेषकों का मानना है कि ये कर सुधार उत्तराखंड को एक ‘सस्टेनेबल और समावेशी विकास मॉडल’ की दिशा में आगे बढ़ाते हैं। इनसे न केवल राज्य की उत्पादन लागत घटेगी, बल्कि स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय बाजारों तक पहुँच भी आसान होगी। विशेष रूप से यह कदम महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण आजीविका और हरित उद्यमिता के लक्ष्यों के अनुरूप है।
स्थानीय से वैश्विक तक: पहाड़ों से उभरती नई अर्थव्यवस्था
उत्तराखंड अब केवल देवभूमि नहीं, बल्कि ‘क्राफ्ट, कल्चर और क्रिएटिविटी की भूमि’ के रूप में भी उभर रहा है।
जीएसटी में यह व्यापक कटौती एक नीति-सुधार से बढ़कर, राज्य की पहाड़ी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी बनाने का सशक्त कदम है। कृषि से लेकर पर्यटन, और शिल्प से लेकर उद्योग तक, यह बदलाव उत्तराखंड को आने वाले वर्षों में ‘मेक इन माउंटेन्स’ मॉडल की मिसाल बना सकता है।