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उत्तराखंड के चमोली में भूकंप के झटके, अफगानिस्तान, तिब्बत और म्यांमार में भी कांपी धरती

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देहरादून/नई दिल्ली, 18 जुलाई | उत्तराखंड के चमोली जिले में गुरुवार को भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.3 मापी गई, जबकि गहराई 10 किलोमीटर बताई गई है। हालांकि, अब तक कहीं से भी जान-माल के नुकसान की सूचना नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों में भूकंप को लेकर दहशत का माहौल जरूर रहा।


एक साथ कई देशों में महसूस हुए झटके

उत्तराखंड के अलावा, अफगानिस्तान, म्यांमार और तिब्बत में भी धरती हिली है:

  • अफगानिस्तान: 4.2 और 4.0 तीव्रता के दो भूकंप, गहराई क्रमशः 190 और 125 किमी
  • तिब्बत: 3.6 तीव्रता, गहराई 10 किमी
  • म्यांमार: 3.7 तीव्रता, गहराई 105 किमी

विशेषज्ञों के अनुसार यह भूकंपीय गतिविधियाँ टेक्टोनिक प्लेट्स की सक्रियता का संकेत हैं, खासतौर पर हिमालय बेल्ट के आस-पास।


हाल में हरियाणा में भी आया था भूकंप

कुछ दिन पहले ही हरियाणा के रोहतक और झज्जर जिलों में भी हल्के भूकंप दर्ज किए गए थे:

  • रोहतक: 3.3 तीव्रता
  • झज्जर: 2.5 तीव्रता

इन दोनों घटनाओं में भी किसी प्रकार की हानि नहीं हुई, लेकिन वैज्ञानिकों ने लगातार हो रही भूकंपीय हलचलों को सावधानी का संकेत माना है।


भूकंप क्यों आता है?

भूकंप का मूल कारण होता है — पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल
जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं, फिसलती हैं या अलग होती हैं, तो उनके बीच संचित ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के रूप में बाहर निकलती है, जिससे धरती कांपती है।

अन्य संभावित कारणों में शामिल हैं:

  • ज्वालामुखी विस्फोट
  • मानवजनित गतिविधियाँ (खनन, बांध निर्माण)
  • भूस्खलन या ग्लेशियर मूवमेंट

भारत में भूकंप जोखिम सबसे अधिक कहां?

भारत में हिमालयी क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल, कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्य) सबसे अधिक संवेदनशील माने जाते हैं, क्योंकि यहां इंडियन टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट का टकराव लगातार हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह क्षेत्र सिस्मिक ज़ोन-5 में आता है — जो भूकंप के लिए सबसे उच्च जोखिम वाली श्रेणी है।


सावधानी ही सुरक्षा

हालांकि चमोली समेत अन्य स्थानों पर कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप-पूर्व जागरूकता और आपदा तैयारी ही भविष्य में जान-माल की रक्षा कर सकती है।

सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग समय-समय पर मॉक ड्रिल, भवन संरचना के नियम और जन-जागरूकता अभियान चलाते रहे हैं, लेकिन अब आम लोगों को भी सतर्क रहना जरूरी है।

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