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दूषित कफ सिरप ‘कोल्ड्रिफ’ कांड: 24 बच्चों की मौत के बाद कंपनी मालिक न्यायिक हिरासत में, दवा सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर: मध्य प्रदेश में 24 से अधिक बच्चों की मौत का कारण बनी दूषित कफ सिरप ‘कोल्ड्रिफ’ (Coldrif) बनाने वाली तमिलनाडु की कंपनी श्रीसेन फार्मा के मालिक रंगनाथन गोविंदन को सोमवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत का यह कदम उस भयावह त्रासदी के बाद आया है जिसने पूरे देश को हिला दिया है और भारत में दवा निर्माण एवं निगरानी प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है।


बच्चों की मौत के बाद शुरू हुई कड़ी कार्रवाई

जांच एजेंसियों के अनुसार, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और आसपास के जिलों में पिछले महीने दर्जनों बच्चे गंभीर रूप से बीमार पड़े थे। ये सभी बच्चे कोल्ड्रिफ सिरप पीने के बाद गुर्दे (किडनी) फेल्योर से जूझ रहे थे।
राज्य स्वास्थ्य विभाग ने पुष्टि की कि अब तक 24 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि कुछ बच्चे अभी भी इलाजरत हैं।

विशेष अन्वेषण दल (SIT) के प्रमुख जितेंद्र सिंह जाट ने बताया कि तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित श्रीसेन फार्मा की यूनिट से इस कफ सिरप की आपूर्ति की गई थी।

“प्राथमिक जांच में पाया गया है कि सिरप के सैंपल में ‘डाइथिलीन ग्लाइकॉल’ (Diethylene Glycol) और ‘इथिलीन ग्लाइकॉल’ (Ethylene Glycol) जैसे विषैले रसायनों की मात्रा अनुमेय सीमा से कई गुना अधिक थी,” — SIT प्रमुख जितेंद्र सिंह जाट ने कहा।


कंपनी मालिक और स्थानीय आपूर्तिकर्ता गिरफ्तार

राज्य पुलिस ने तमिलनाडु से कंपनी मालिक रंगनाथन गोविंदन को हिरासत में लिया था और 10 दिन की पूछताछ के बाद अब उसे परासिया (छिंदवाड़ा) की अदालत में पेश किया गया, जहां अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौतम गुर्जर ने उसे न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया।

इसके अलावा, छिंदवाड़ा के डॉ. प्रवीण सोनी, दवा के थोक विक्रेता राजेश सोनी, और डॉ. सोनी के मेडिकल स्टोर में काम करने वाले फार्मासिस्ट सौरभ जैन पहले से ही न्यायिक हिरासत में हैं।
एसआईटी ने बताया कि इन सभी पर लापरवाही, धोखाधड़ी, और मानव जीवन को खतरे में डालने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।


फैक्ट्री सील, अधिकारियों पर गाज

सरकार ने मामले की गंभीरता देखते हुए श्रीसेन फार्मा की विनिर्माण इकाई को तुरंत सील कर दिया है।
तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल विभाग ने कंपनी के लाइसेंस को निलंबित कर दिया और दवा के सभी बैचों को बाज़ार से वापस बुलाने (recall) का आदेश दिया है।

मध्य प्रदेश सरकार ने इस हादसे के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए दो औषधि निरीक्षकों और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) के एक उप निदेशक को निलंबित कर दिया है।
साथ ही, राज्य औषधि नियंत्रक का तबादला भी तत्काल प्रभाव से कर दिया गया है।


मृत बच्चों के परिजनों का दर्द: “एक बोतल सिरप ने हमारी ज़िंदगी छीन ली”

छिंदवाड़ा जिले के सावनगढ़ गांव की रीता विश्वकर्मा, जिनका दो वर्षीय बेटा आशीष इस कफ सिरप के सेवन के बाद नहीं बच सका, रोते हुए कहती हैं —

“डॉक्टर ने कहा था सर्दी-खांसी की दवा दे दो, हमने दुकान से वही सिरप लिया जो सब ले रहे थे। रात में उल्टी हुई और सुबह तक वो चला गया… अब कौन लौटाएगा मेरा बच्चा?”

ऐसे कई परिवार अब भी न्याय की उम्मीद में हैं। स्वास्थ्य विभाग ने पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता और मुफ्त इलाज देने की घोषणा की है, लेकिन लोगों का गुस्सा और दुख शांत नहीं हो पा रहा।


जांच में खुलासा: मानक परीक्षण में भारी लापरवाही

एसआईटी की शुरुआती रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि ‘कोल्ड्रिफ सिरप’ का लैब परीक्षण अधूरा या सतही स्तर पर किया गया था।
नियमानुसार, किसी भी बच्चों की दवा को बाजार में लाने से पहले उसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) से मान्यता प्राप्त करनी होती है, परंतु इस दवा के टेस्ट रिपोर्ट और सर्टिफिकेट में अनियमितताएं पाई गई हैं।

जांच अधिकारियों का कहना है कि कंपनी ने बच्चों की खांसी की दवा के निर्माण में इस्तेमाल किए गए रसायनों की गुणवत्ता रिपोर्ट फर्जी दिखाई।
अब टीम यह भी जांच रही है कि क्या कंपनी ने अन्य राज्यों में भी इसी फॉर्मूले पर दवाओं की आपूर्ति की थी।


भारत की दवा सुरक्षा पर फिर उठे सवाल

यह मामला भारत की दवा निर्माण और गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
पिछले दो वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं —
2022 में गाम्बिया में भारतीय कंपनी की खांसी की दवा से 70 बच्चों की मौत,
और 2023 में उज़्बेकिस्तान में 19 बच्चों की मौत दर्ज की गई थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” कहलाता है, लेकिन अगर घरेलू स्तर पर लाइसेंसिंग, निरीक्षण और परीक्षण की प्रक्रिया इतनी कमजोर है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

वरिष्ठ फार्मास्यूटिकल विशेषज्ञ डॉ. वी. के. अग्रवाल का कहना है —

“देश में दवा निर्माण की निगरानी के लिए राज्य स्तरीय नियंत्रण बोर्ड हैं, लेकिन उनमें तकनीकी कर्मियों और आधुनिक प्रयोगशालाओं की भारी कमी है। यह मामला केवल एक फैक्ट्री की लापरवाही नहीं, बल्कि व्यवस्था की नाकामी का संकेत है।”


राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रियाएं

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस घटना पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा
उन्होंने मृत बच्चों के परिवारों के लिए ₹10 लाख मुआवज़ा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय जांच आयोग गठित करने की घोषणा की है।

कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह हादसा “सरकारी तंत्र की गहरी नींद का परिणाम” है।
विपक्ष ने मांग की है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर सभी बाल चिकित्सा दवाओं की गुणवत्ता की जांच करवाए।


न्यायिक प्रक्रिया जारी

उधर, डॉ. प्रवीण सोनी की जमानत याचिका स्थानीय अदालत से खारिज होने के बाद अब मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है। एसआईटी ने अदालत से अनुरोध किया है कि आरोपी के खिलाफ हत्या के प्रयास और धोखाधड़ी की धाराएं भी जोड़ी जाएं, क्योंकि यह लापरवाही नहीं बल्कि संगठित आपराधिक लापरवाही का मामला है।

‘कोल्ड्रिफ’ सिरप कांड ने एक बार फिर याद दिलाया है कि दवाएं केवल रसायन नहीं, बल्कि ज़िंदगी और मौत के बीच की डोर होती हैं। जब निगरानी तंत्र कमजोर हो, तो ऐसी त्रासदियां अपरिहार्य बन जाती हैं। अब सवाल यह नहीं कि कितने बच्चों की जान गई —सवाल यह है कि कितनी बार ऐसी मौतों के बाद भी देश की दवा नीति सुधरेगी?


 

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