
देहरादून। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती और बेरोजगार नर्सिंग अभ्यर्थियों को न्याय दिलाने की मांग को लेकर उत्तराखंड नर्सिंग महासंघ लगातार सक्रिय है। सोमवार को महासंघ के पदाधिकारियों ने राजपुर रोड विधायक खजान दास से मुलाकात कर राज्य की नर्सिंग भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और सीनियरिटी आधारित नियुक्तियों को लागू करने की मांग उठाई। इस दौरान महासंघ ने प्रदेश में 1000 नए नर्सिंग पदों के सृजन का भी मुद्दा प्रमुखता से रखा और ज्ञापन सौंपा।
हरिद्वार-पिथौरागढ़ में 480 पदों पर त्वरित भर्ती की मांग
महासंघ के पदाधिकारियों ने बताया कि हरिद्वार और पिथौरागढ़ जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक है। यहां नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी के चलते मरीजों को समय पर उपचार नहीं मिल पा रहा। पदाधिकारियों ने कहा कि इन दोनों जिलों में कम से कम 480 नर्सिंग पदों पर तत्काल भर्ती प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।
महासंघ ने तर्क दिया कि यदि भर्ती प्रक्रिया में सीनियरिटी को प्राथमिकता दी जाए, तो लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे योग्य अभ्यर्थियों को न्याय मिलेगा और दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाएं भी मजबूत होंगी।
वर्षवार भर्ती प्रक्रिया की जरूरत
विधायक खजान दास ने महासंघ की चिंताओं को गंभीरता से सुना और भरोसा दिलाया कि इन मांगों को उचित मंच पर उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य में वर्षवार भर्ती प्रक्रिया लागू करना बेहद जरूरी है ताकि योग्य युवाओं को समय पर अवसर मिल सके और नर्सिंग क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या कम हो।
खजान दास ने यह भी माना कि स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए नर्सिंग स्टाफ की अहम भूमिका होती है और प्रदेश सरकार इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही है।
महासंघ का स्पष्ट संदेश: पारदर्शिता ही समाधान
नर्सिंग महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया में बार-बार देरी और अस्पष्ट नियमों से अभ्यर्थियों में गहरी नाराजगी है।
- कई योग्य उम्मीदवार उम्र सीमा पार करने के कगार पर हैं।
- चयन प्रक्रिया की धीमी रफ्तार उनके करियर को प्रभावित कर रही है।
- पारदर्शिता की कमी से अभ्यर्थियों का विश्वास तंत्र से उठ रहा है।
महासंघ ने चेतावनी दी कि यदि मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो नर्सिंग अभ्यर्थी आंदोलन की राह भी अपना सकते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ है नर्सिंग कैडर
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती नर्सिंग कैडर पर टिकी होती है।
- डॉक्टर उपचार की दिशा तय करते हैं, लेकिन मरीजों की 24 घंटे की देखभाल नर्सिंग स्टाफ ही करता है।
- कोविड महामारी के दौरान भी यह स्पष्ट हुआ कि नर्सिंग स्टाफ की कमी से स्वास्थ्य प्रणाली पर कितना दबाव बढ़ जाता है।
- उत्तराखंड जैसे भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण राज्य में, जहां पहाड़ी और दूरस्थ इलाकों में अस्पतालों की पहुंच सीमित है, वहां नर्सिंग स्टाफ की उपस्थिति और भी जरूरी है।
महासंघ का कहना है कि यदि राज्य सरकार नए पद सृजित कर नियमित भर्ती प्रक्रिया चलाए, तो प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे को बड़ी राहत मिलेगी।
राजनीतिक संदर्भ और भविष्य की तस्वीर
नर्सिंग भर्ती का मुद्दा केवल स्वास्थ्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक महत्व भी रखता है।
- राज्य में बेरोजगार युवाओं का बड़ा वर्ग नर्सिंग और पैरा-मेडिकल सेक्टर से जुड़ा है।
- यदि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाती है तो यह आने वाले चुनावों में भी प्रभाव डाल सकता है।
- दूसरी ओर, मांगों की अनदेखी से असंतोष बढ़ सकता है और आंदोलन की स्थिति बन सकती है।
विधायक खजान दास की ओर से मिले सकारात्मक संकेत के बाद नर्सिंग महासंघ को उम्मीद है कि आने वाले समय में सरकार इस दिशा में ठोस नीति बनाएगी।
नेतृत्व और प्रतिनिधित्व
महासंघ की ओर से मुलाकात करने वाले प्रतिनिधियों में प्रदेश अध्यक्ष नवल पुंडीर, प्रवक्ता राजेंद्र कुकरेती, प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रवेश रावत, सदस्य अखिलेश सेमवाल सहित कई पदाधिकारी शामिल रहे। सभी ने एक स्वर में यह मांग रखी कि राज्य सरकार नर्सिंग क्षेत्र की वास्तविक जरूरतों को समझते हुए नए पद सृजन, सीनियरिटी आधारित चयन और वर्षवार भर्ती प्रक्रिया को तत्काल लागू करे।
देहरादून में हुई यह मुलाकात केवल औपचारिकता भर नहीं, बल्कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं और बेरोजगार नर्सिंग अभ्यर्थियों की उम्मीदों से जुड़ी है। नर्सिंग महासंघ की मांगें स्वास्थ्य क्षेत्र के यथार्थ को उजागर करती हैं।
अब देखना यह है कि विधायक खजान दास द्वारा दिए गए आश्वासन को प्रदेश सरकार किस रूप में अमल में लाती है। यदि सरकार ने समय रहते कदम उठाए, तो इससे न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, बल्कि नर्सिंग अभ्यर्थियों में भी नई उम्मीद जगेगी।