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मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: बॉम्बे हाईकोर्ट आज सुना सकता है बड़ा फैसला, 12 दोषियों की सजा पर अंतिम निर्णय संभव

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मुंबई। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट आज (सोमवार) को बहुप्रतीक्षित फैसला सुना सकता है। करीब 19 साल बाद देश को झकझोर देने वाले इस आतंकी हमले में दोषियों को दी गई सजाओं की अंतिम वैधानिक समीक्षा होने जा रही है।

हाईकोर्ट के समक्ष कुल 11 अपीलें विचाराधीन थीं—इनमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा ट्रायल कोर्ट की ओर से सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि की याचिका और दोषियों द्वारा सजा व दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली अपीलें शामिल थीं।

क्या था मामला: 11 मिनट में 7 धमाके, 189 की मौत

11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के भीतर सात अलग-अलग स्थानों पर शक्तिशाली बम धमाके हुए थे।
इन धमाकों में 189 लोग मारे गए थे और 827 से अधिक घायल हुए थे। यह घटना उस वक्त भारत की आंतरिक सुरक्षा पर अब तक के सबसे बड़े हमलों में गिनी गई।

अब तक की न्यायिक कार्रवाई:

  • 13 आरोपी गिरफ्तार, 15 अन्य फरार घोषित किए गए, जिनमें से कई के पाकिस्तान में होने की आशंका जताई गई।
  • महाराष्ट्र एटीएस ने MCOCA और UAPA जैसे सख्त आतंकवाद निरोधक कानूनों के तहत मामला दर्ज किया।
  • नवंबर 2006 में चार्जशीट दायर की गई।
  • 2015 में ट्रायल कोर्ट का फैसला:
    • 12 आरोपी दोषी करार,
    • 5 को मौत की सजा,
    • 7 को आजीवन कारावास

राज्य सरकार ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए उसी वर्ष बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी, जबकि दोषियों ने भी अपनी सजा और दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलें दायर कीं।

सुनवाई में देरी, अब अंतिम चरण में मामला

सुनवाई के दौरान कई बार बेंचों के बदलने, सबूतों की व्यापकता और कानूनी जटिलताओं के चलते अपीलें वर्षों तक लंबित रहीं। हालांकि, दोषी एहतेशाम सिद्दीकी द्वारा अपील की त्वरित सुनवाई की मांग के बाद अदालत ने सक्रियता दिखाई और सुनवाई को अंतिम चरण में पहुंचाया।

आज आएगा फैसला?

यदि सब कुछ नियमानुसार रहा तो हाईकोर्ट आज दोषियों की सजा को लेकर अंतिम निर्णय सुना सकता है—जिसमें ट्रायल कोर्ट की ओर से दी गई मौत की सजा की पुष्टि, परिवर्तन या निरस्तीकरण शामिल हो सकता है।


न्यायिक प्रक्रिया पर राष्ट्रीय निगाहें

यह मामला न केवल भारत के न्यायिक इतिहास में एक अहम पड़ाव है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ कानूनी लड़ाई में न्यायिक प्रणाली की दृढ़ता का भी प्रतीक माना जा रहा है। आज का निर्णय पीड़ित परिवारों, सुरक्षा एजेंसियों और न्याय व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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