
नई दिल्ली, 17 मई — भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने शनिवार को देशवासियों से आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना को अपनाने की अपील करते हुए कहा कि अब वह समय आ गया है जब हमें यह तय करना होगा कि क्या हम उन देशों को सशक्त करने का जोखिम उठा सकते हैं, जो संकट के समय भारत के विरोध में खड़े होते हैं।
भारत मंडपम में जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हम अब यात्रा या आयात के माध्यम से ऐसे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने का जोखिम नहीं उठा सकते, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध खड़े होते हैं। प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय सुरक्षा में अपनी भूमिका निभाने का अधिकार और कर्तव्य है। राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए।”
ऑपरेशन सिंदूर की सराहना, आतंकवाद विरोधी नीति को बताया ऐतिहासिक
उपराष्ट्रपति ने हाल ही में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रशंसा करते हुए इसे “उल्लेखनीय प्रतिशोध” बताया। उन्होंने इसे पहलगाम में हुए बर्बर हमले का करारा जवाब करार देते हुए कहा, “यह कार्रवाई हमारे शांति और संयम के लोकाचार के अनुरूप थी, और यह संदेश पूरी दुनिया में गया है कि अब भारत सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है।”
उन्होंने कहा कि भारत ने बहावलपुर और मुरीदके जैसे आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाकर एक नया मानक स्थापित किया है। “अब कोई भारत से सबूत नहीं मांग रहा है। दुनिया ने देखा और स्वीकार किया है कि भारत की कार्रवाई निर्णायक और न्यायसंगत है।”
राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तियों और विदेशी विश्वविद्यालयों को लेकर सतर्कता की अपील
श्री धनखड़ ने राष्ट्रविरोधी विचारों और बयानों पर चिंता जताते हुए कहा, “हम राष्ट्र विरोधी वक्तव्यों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? विदेशी विश्वविद्यालयों की भारत में उपस्थिति को लेकर भी सावधानी आवश्यक है। हमें गहराई से विचार करना चाहिए कि ये संस्थान हमारे समाज और संस्कृति के लिए किस हद तक उपयुक्त हैं।”
शिक्षा और शोध में व्यावसायीकरण के विरुद्ध चेतावनी
उपराष्ट्रपति ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यावसायीकरण पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “भारत शिक्षा और स्वास्थ्य को धनार्जन का माध्यम नहीं बना सकता। हमारी सभ्यता में इनका उद्देश्य समाज को देना है, कमाना नहीं।” उन्होंने कॉर्पोरेट जगत से आह्वान किया कि सीएसआर फंड का उपयोग अनुसंधान और उच्च शिक्षा में निवेश के लिए किया जाए।
उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे आत्मनिर्भरता और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ें। “अब वह युग नहीं रहा जब हम तकनीकी प्रगति के लिए दूसरों पर निर्भर रहते थे। यदि हम ऐसा करते हैं तो प्रारंभ से ही पराश्रित बन जाएंगे।”
संस्कृति और सभ्यता पर गर्व, पूर्व-पश्चिम को जोड़ने की बात
भारत की 5,000 वर्षों पुरानी सभ्यता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत जैसे समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास वाला कोई देश नहीं है। “हमें पूर्व और पश्चिम के बीच की खाई को खत्म नहीं, बल्कि पाटने की ज़रूरत है।”
इस मौके पर जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के चेयरमैन श्री शरद जयपुरिया, उपाध्यक्ष श्री श्रीवत्स जयपुरिया, और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।