
देहरादून, 27 मई 2025: उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मंगलवार को राजधानी देहरादून के संस्कृत भवन में एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रभावी क्रियान्वयन और राज्य में गुणवत्तापूर्ण, समावेशी एवं सुरक्षित शिक्षा सुनिश्चित करना था। कार्यशाला का केंद्रीय विषय था—“शिक्षा का अधिकार: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सुरक्षा एवं सामाजिक न्याय की ओर एक ठोस कदम”।
शिक्षा मंत्री ने की पहल की सराहना
कार्यक्रम का शुभारंभ राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना केवल नीति नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है। राज्य सरकार इस दिशा में ठोस और संवेदनशील कदम उठा रही है।”
आयोग के सचिव डॉ. शिव कुमार बरनवाल ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षा के माध्यम से बच्चों के संपूर्ण विकास को सुनिश्चित करना ही समाज के स्वस्थ भविष्य की गारंटी है।
डॉ. गीता खन्ना का आह्वान: शिक्षा नहीं, तो न्याय नहीं
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए आयोग की अध्यक्षा डॉ. गीता खन्ना ने कहा, “शिक्षा तक समान और सुरक्षित पहुंच के बिना सामाजिक न्याय की कल्पना अधूरी है।” उन्होंने विद्यालयी शिक्षा को समसामयिक मुद्दों से जोड़ने की आवश्यकता जताते हुए नशामुक्ति, साइबर सुरक्षा, सड़क सुरक्षा और राष्ट्रीय चेतना जैसे विषयों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत की।
उन्होंने कक्षा 9 और 11 में अनुचित रूप से छात्रों को फेल करने, अवैध कोचिंग संस्थानों और स्कूल परिसरों के आसपास नशे के बढ़ते प्रभाव जैसे गंभीर मुद्दों पर चिंता जताई और तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की मांग की।
तकनीकी सत्र: शिक्षा की व्यापकता पर विमर्श
प्रथम सत्र में शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की व्यावहारिक चुनौतियों, शिक्षक प्रशिक्षण और समावेशी शिक्षा पर विचार साझा किए।
वहीं द्वितीय सत्र में “शैक्षणिक प्रदर्शन बनाम समग्र विकास” विषय पर विचार-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने कहा कि शिक्षा केवल अंकों का खेल नहीं, बल्कि बच्चों के मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास का माध्यम होनी चाहिए।
सामाजिक न्याय के लिए शिक्षा को हथियार बनाने का आह्वान
समापन सत्र में डॉ. बरनवाल ने शिक्षा के अधिकार के समक्ष खड़ी चुनौतियों पर चर्चा का संचालन किया। उन्होंने विशेष रूप से वंचित वर्गों के बच्चों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एकजुट प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रतिभाओं का हुआ सम्मान, भविष्य की नीति का संकेत
कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न स्कूलों से आए मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने अकादमिक क्षेत्र में अनुकरणीय प्रदर्शन किया है।
कार्यशाला का समापन अनु सचिव श्री एस.के. सिंह ने किया और यह आश्वासन दिया कि कार्यक्रम में व्यक्त सुझावों को नीति निर्धारण की प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जाएगी।
एक दूरदर्शी पहल, जो उत्तराखंड के शिक्षा भविष्य की दिशा तय करेगी
यह कार्यशाला न केवल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की संवेदनशीलता का प्रतीक थी, बल्कि उत्तराखंड राज्य की उस प्रतिबद्धता का भी प्रमाण है, जो बच्चों के लिए एक समावेशी, सुरक्षित और न्यायपूर्ण शिक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने की दिशा में लगातार अग्रसर है।