नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार को जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNV) की स्थापना को लेकर कड़ा संदेश देते हुए कहा कि राज्य सरकार को ‘माय स्टेट–माय स्टेट’ जैसा रवैया नहीं अपनाना चाहिए और इस विषय को भाषा विवाद में नहीं बदलना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला राजनीति या भाषा का नहीं, बल्कि ग्रामीण और प्रतिभाशाली छात्रों के भविष्य से जुड़ा हुआ है।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वे राज्य में नवोदय विद्यालयों की स्थापना को लेकर संयुक्त परामर्श (Joint Consultation) करें और उसकी विस्तृत रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें।
हर ज़िले में नवोदय विद्यालय के लिए भूमि चिन्हित करने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि तमिलनाडु के प्रत्येक ज़िले में जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना के लिए आवश्यक भूमि की पहचान की जाए। अदालत ने साफ किया कि यह निर्देश राज्य के ग्रामीण छात्रों के हित में है, जो इन केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले के पात्र होते हैं।
पीठ ने कहा कि नवोदय विद्यालयों का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के मेधावी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना है, ताकि वे राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें।
तमिलनाडु की आपत्ति: तीन-भाषा बनाम दो-भाषा नीति
सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने राज्य की पुरानी आपत्ति दोहराई। उन्होंने अदालत को बताया कि—
- जवाहर नवोदय विद्यालय तीन-भाषा फॉर्मूला अपनाते हैं
- जबकि तमिलनाडु में कानूनी रूप से दो-भाषा नीति लागू है
- ऐसे में JNV की स्थापना राज्य की भाषा नीति के विपरीत होगी
तमिलनाडु सरकार का यह भी तर्क रहा है कि भाषा के मुद्दे पर राज्य की एक स्पष्ट और लंबे समय से चली आ रही नीति है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
जस्टिस नागरत्ना की दो टूक टिप्पणी
तमिलनाडु सरकार की दलीलों पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने सख्त लेकिन संतुलित टिप्पणी की। उन्होंने कहा—
“इसे भाषा का मुद्दा मत बनाइए। हम एक संघीय समाज हैं और आप गणराज्य का हिस्सा हैं। आप एक कदम आगे बढ़ेंगे तो केंद्र भी एक कदम आगे बढ़ेगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मामला संघीय ढांचे के भीतर संवाद और सहयोग का है, न कि टकराव का। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य पर कुछ भी जबरन थोपा नहीं जा रहा है।
‘आज शिलान्यास की बात नहीं हो रही’ — सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने तमिलनाडु सरकार को आश्वस्त करते हुए कहा कि—
“हम आपसे आज शिलान्यास करने को नहीं कह रहे हैं। यह केवल एक अभ्यास है, एक प्रक्रिया है।”
अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल उसका उद्देश्य केवल यह जानना है कि व्यवहारिक रूप से नवोदय विद्यालयों की स्थापना को लेकर क्या संभावनाएं हैं और केंद्र व राज्य किस तरह मिलकर समाधान निकाल सकते हैं।
संघीय ढांचे पर सुप्रीम कोर्ट का जोर
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अवलोकन में भारत के संघीय ढांचे (Federal Structure) पर विशेष जोर दिया। अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते हुए सहयोग की भावना से काम करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि शिक्षा जैसे विषयों में टकराव के बजाय संवाद से समाधान निकालना ही संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है।
ग्रामीण छात्रों के हित को सर्वोपरि बताया
अदालत ने कहा कि उसके सभी निर्देश तमिलनाडु के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों के हित में हैं। नवोदय विद्यालयों के माध्यम से देश के कई राज्यों में ग्रामीण प्रतिभाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का अवसर मिला है।
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु जैसे शिक्षित और प्रगतिशील राज्य में ग्रामीण छात्रों को इस अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
भूमि और खर्च को लेकर राज्य की चिंता
तमिलनाडु सरकार ने अदालत को यह भी बताया कि—
- प्रत्येक ज़िले में नवोदय विद्यालय के लिए लगभग 30 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी
- भूमि उपलब्ध कराने और उससे जुड़े बुनियादी ढांचे के खर्च राज्य सरकार को उठाने होंगे
राज्य सरकार का कहना है कि यह आर्थिक और प्रशासनिक रूप से एक बड़ा दायित्व है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्या है जवाहर नवोदय विद्यालय योजना
जवाहर नवोदय विद्यालय केंद्र सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों की श्रृंखला है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली छात्रों को निःशुल्क, गुणवत्तापूर्ण और आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराना है।
इन विद्यालयों में—
- प्रवेश प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से होता है
- पढ़ाई पूरी तरह निःशुल्क होती है
- छात्र-छात्राओं को आवास, भोजन और शिक्षा एक साथ मिलती है
वर्तमान में देश के अधिकांश राज्यों और जिलों में JNV कार्यरत हैं।
भाषा बनाम शिक्षा: राष्ट्रीय बहस
यह मामला केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाषा नीति और शिक्षा अधिकार के बीच संतुलन की एक राष्ट्रीय बहस को भी उजागर करता है। एक ओर राज्य अपनी भाषा नीति को लेकर सतर्क हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार समान शिक्षा अवसरों पर जोर दे रही है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख इस बहस में संवैधानिक संतुलन स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
आगे की राह क्या होगी
अब केंद्र और तमिलनाडु सरकार को—
- संयुक्त परामर्श करना होगा
- हर ज़िले में भूमि की संभावनाओं का आकलन करना होगा
- अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करनी होगी
इसके बाद अदालत तय करेगी कि इस मुद्दे पर आगे क्या दिशा-निर्देश दिए जाएं।
निष्कर्ष
नवोदय विद्यालयों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी और निर्देश स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि अदालत शिक्षा के मुद्दे को राजनीतिक या भाषाई विवाद से ऊपर मानती है। कोर्ट का फोकस तमिलनाडु के ग्रामीण छात्रों को समान अवसर दिलाने पर है।
यह मामला आने वाले समय में संघीय ढांचे, भाषा नीति और शिक्षा अधिकार के बीच संतुलन की दिशा तय कर सकता है। अब सबकी नजरें केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो इस संवेदनशील मुद्दे का भविष्य तय करेगी।



