
PM मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 9 सालों के अपने अब तक के कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया। यह अविश्वास प्रस्ताव भी पिछले वाले की तरह नाकाम साबित हुआ और विपक्ष की गैरमौजूदगी में ध्वनिमत से खारिज हो गया। दरअसल, यह पहले से ही तय था कि विपक्ष का यह अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरेगा और ऐसा हुआ भी। इस प्रस्ताव पर मतदान नहीं हुआ क्योंकि विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के जवाब देने के समय ही सदन से बहिर्गमन कर गया था। इससे पहले, जुलाई 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था।
सबसे पहले मोदी सरकार के खिलाफ 2018 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था। इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय था क्योंकि संख्या बल स्पष्ट रूप से बीजेपी के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी दलों के 150 से कम सदस्य हैं। लेकिन उनकी दलील थी कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे। बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए जरूरी है कि उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो।
इतना ही नहीं जवाहर लाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए और इनमें से किसी भी मौके पर सरकार नहीं गिरी, हालांकि विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए 3 सरकारों को जाना पड़ा। आखिरी बार 1999 में विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी थी।