
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को राष्ट्रपति के संदर्भ पर चल रही सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व है और यह दुनिया के सबसे मज़बूत लोकतांत्रिक ढाँचों में से एक है। उन्होंने पड़ोसी देशों की स्थिति का हवाला देते हुए कहा – “देखिए हमारे पड़ोसी राज्यों में क्या हो रहा है, नेपाल में भी हमने देखा।”
जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि “बांग्लादेश में भी ऐसा ही हुआ।”
राज्यपालों की शक्तियों पर दलीलें
यह पूरा मामला संविधान में राज्यपालों की शक्तियों से जुड़ा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में दलील दी कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने का मामला बेहद दुर्लभ है। उन्होंने कहा कि उनके पास अनुभवजन्य आंकड़े (Empirical Data) हैं, जो यह साबित करते हैं।
एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया:
- 1970 से 2025 तक राज्यपालों के पास करीब 17,000 बिल भेजे गए।
- इनमें से 90% बिल एक महीने के भीतर पास कर दिए गए।
- अब तक केवल 20 विधेयक ऐसे हैं जिन्हें लंबित रखा गया या रोक दिया गया।
सीजेआई ने आंकड़ों पर जताई आपत्ति
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश गवई ने स्पष्ट कहा कि अदालत आंकड़ों में नहीं जाएगी। उन्होंने एसजी से कहा:
“हम आंकड़े नहीं ले सकते। यह उनके साथ न्याय नहीं होगा। आपने याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए आंकड़ों पर आपत्ति जताई थी। ऐसे में हम आपके आंकड़े कैसे ले सकते हैं?”
सीजेआई ने साफ कर दिया कि कोर्ट का फोकस संविधान की व्याख्या और सिद्धांतों पर रहेगा, न कि केवल आंकड़ों पर।
“हमारा संविधान 75 सालों से मज़बूत” – जस्टिस विक्रम नाथ
जस्टिस विक्रम नाथ ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत का संविधान पिछले 75 सालों से पूरी तरह संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से चलता आ रहा है। उन्होंने कहा:
“इस दौरान चाहे 50 प्रतिशत बिल पास हुए हों या 90 प्रतिशत, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। असली मायने यह है कि हमारा संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है।”
नेपाल और बांग्लादेश का जिक्र क्यों?
सीजेआई गवई ने हाल ही में नेपाल यात्रा भी की थी। वहां उन्होंने नेपाल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रकाश मानसिंह राउत से मुलाकात की थी और भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी जाकर दर्शन किए थे। शायद इसी संदर्भ में उन्होंने नेपाल की संवैधानिक परिस्थितियों की ओर इशारा किया।
नेपाल और बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बताने की कोशिश की कि पड़ोसी देशों में संविधानिक स्थिरता पर सवाल उठते रहे हैं, जबकि भारत का संविधान लगातार मज़बूत होता गया है।
SG की दलील: हर बिल की स्थिति अलग
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि कुछ ही विधेयक ऐसे होते हैं जो “अत्यंत आपत्तिजनक” या संविधान की भावना के खिलाफ होते हैं। ऐसे मामलों में राज्यपाल निर्णय लेने में अधिक समय लेते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि हर बिल की स्थिति अलग होती है और उसी के आधार पर राज्यपाल अपना रुख तय करते हैं।
कोर्ट की साफ़ टिप्पणी: “आंकड़ों में नहीं जाएंगे”
कोर्ट ने दोहराया कि मामला केवल प्रतिशत या आंकड़ों पर आधारित नहीं है। सीजेआई गवई ने कहा कि यदि अदालत आंकड़ों के आधार पर फैसला देगी तो यह संविधान की मूल भावना के साथ न्याय नहीं होगा।
सुनवाई का अगला चरण
आज प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का विरोध करने वाले राज्यों की दलीलें पूरी हुईं। कल से केंद्र सरकार की ओर से बहस जारी रहेगी। माना जा रहा है कि यह सुनवाई आगे भी कई संवैधानिक पहलुओं को स्पष्ट करेगी।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल मौजूदा मामले से जुड़ी है बल्कि यह भारतीय संविधान की ताकत और उसकी स्थिरता पर भी एक बड़ा बयान है। नेपाल और बांग्लादेश का हवाला देते हुए कोर्ट ने यह संदेश दिया कि भारत का लोकतंत्र और संविधान विश्वसनीयता की मिसाल हैं.



