“भारत में असमानता रिपोर्ट समावेश और बहिष्करण, दोनों ही स्थिति को प्रदर्शित करती है”
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष डॉक्टर बिबेक देबरॉय ने “भारत में असमानता की स्थिति” पर रिपोर्ट जारी की। संस्थान द्वारा यह रिपोर्ट प्रतिस्पर्धा बनाने और भारत में असमानता की प्रवृत्ति व गहराई के समग्र विश्लेषण को प्रदर्शित करने के लिए जारी की जाती है। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों की असमानताओं पर जानकारी इकट्ठा करती है। जैसा रिपोर्ट कहती है, इन क्षेत्रों की असमानताएं आबादी अधिक संवेदनशील बनाती हैं और बहुआयामी गरीबी की ओर फिसलन को मजबूर करती हैं।
डॉ बिबेक देबरॉय ने कहा, “असमानता एक भावात्मक मुद्दा है। यह एक अनुभवजन्य मुद्दा भी है, क्योंकि इसकी परिभाषा और माप, उपयोग किए गए पैमानों और आंकड़ों पर निर्भर करती है।” वे आगे कहते हैं, “गरीबी को कम करने और रोजगार को बढ़ाने के लिए 2014 के बाद से केंद्र सरकार ने मापन के अलग-अलग पैमाने जारी किए हैं, जो समावेश को बुनियादी जरूरत का प्रावधान मानते हैं। यह ऐसे पैमाने हैं जिन्होंने भारत को कोविड महामारी के झटके को बेहतर ढंग से सहने के लिए तैयार किया।” यह रिपोर्ट समावेश और बहिष्कार दोनों का मापन करती है और नीतिगत बहस में योगदान देती है।
रिपोर्ट को जारी करने के लिए बनाए गए पैनल में एनसीएईआर की डॉयरेक्टर जनरल और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्या डॉ पूनम गुप्ता, फॉउंडेशन फॉर इक्नॉमिक ग्रोथ एंड वेलफेयर (ईजीआरओएडब्ल्यू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ चरण सिंह और आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर सुरेश बाबू शामिल थे। रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए पैनल में शामिल लोगों ने कुछ मार्मिक टिप्पणियां भी कीं।
रिपोर्ट के दो हिस्से हैं- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक पहलू। रिपोर्ट उन पांच अहम क्षेत्रों पर ध्यान देती है, जो असमानता की प्रवृत्ति और अनुभव को प्रभावित करते हैं। इनमें, आय का वितरण व श्रम बाजार गतिशीलता, स्वास्थ्य, शिक्षा और पारिवारिक विशेषताएं शामिल हैं। यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस), राष्ट्रीय परिवार, स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) और यूडीआईएसई+ से हासिल किए गए आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में असमानता की मौजूदा स्थिति, चिंता के क्षेत्र, अवसंरचनात्मक क्षमताओं में सफलता व असफलताओं के साथ-साथ असमानता पर प्रभाव डालने वाले अलग-अलग विषयों पर कई अध्याय शामिल हैं। रिपोर्ट देश में मौजूद अलग-अलग वंचनाओं पर समग्र विश्लेषण को पेश कर असमता की अवधारणा को विस्तार देती है। यही वह वंचनाएं हैं, जो आबादी के समग्र विकास और कल्याण को प्रभावित करती हैं। यह अध्ययन भिन्न वर्गों, लिंग और क्षेत्रों को समाहित करता है और बताता है कि कैसे असमानता हमारे समाज को प्रभावित करती है।
यह रिपोर्ट 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में संपदा-संपत्ति अनुमानों के परे जाती है, क्योंकि संपदा अनुमान सिर्फ आंशिक तस्वीर ही पेश करते हैं। पहली बार रिपोर्ट में पूंजी के प्रवाह को समझने के लिए आय के वितरण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। रिपोर्ट जोर देते हुए कहती है कि संपदा का संकेंद्रण, असमानता के कारक के तौर परिवारों की खरीद क्षमता में हुए बदलाव की सही तस्वीर पेश नहीं करता। पीएलएफएस 2019-20 से खोजे गए आंकड़ों से पता चलता है कि जितनी संख्या में कमाने वाले लोग होते हैं, उनमें से शुरुआती 10% का मासिक वेतन 25,000 है। शुरुआती 1% कमाने वाले लोग, कुल मिलाकर कुल आय का 6-7% कमाते हैं। जबकि शुरुआती 10% कमाऊ लोग, कुल एक तिहाई आय की हिस्सेदारी रखते हैं। 2019-20 में भिन्न रोजगार वर्गों में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी स्वरोजगार कर्मियों (45.78%), नियमित वेतनकर्मी (33.5%) और अनौपचारिक कर्मचारी (20.71%) की थी। सबसे कम आय वाले वर्ग में भी स्वरोजगार वाले कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है। देश की बेरोजगारी दर 4.8% (2019-20) है और कामगार-आबादी का अनुपात 46.8% है।
स्वास्थ्य अवसंरचना के क्षेत्र में, अवसंरचना क्षमता में काफी विकास हुआ है, जिसमें ग्रामीण इलाकों पर ध्यान अधिक केंद्रित रहा है। भारत में 2005 में 1,72,608 स्वास्थ्य केंद्र थे, अब 2020 में इनकी संख्या 1,85,505 है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और चंडीगढ़ जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2005 से 2020 के बीच स्वास्थ्य केंद्रों (इनमें उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं) में बहुत बढ़ोत्तरी की है। एनएफएचएस-4 (2015-16) और एनएफएचएस-5 (2019-21) के नतीजे बताते हैं कि 2015-16 के शुरुआती तीन महीनों में गर्भवती महिलाओं में से 58.6 % महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, जो 2019-21 में बढ़कर 70% हो गया। बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं में से 78% को बच्चे के जन्म के बाद, दो दिन के भीतर नर्स या डॉक्टर की तरफ से सेवा-सुविधा उपलब्ध कराई गई। जबकि 79.1% शिशुओं को प्रसव के दो दिन के भीतर सेवा उपलब्ध करवाई गई। रिपोर्ट आगे कहती है, लेकिन अधिक वजन, कम वजन और एनीमिया (खासकर बच्चों, किशोरी बालिकाओं और गर्भवती महिलाओं में) की स्थिति को प्रदर्शित करने वाला कुपोषण चिंता का विषय है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही अल्प स्वास्थ्य उपलब्धता, जिसके चलते जेब से अधिक धन खर्च करना पड़ता है, उससे भी गरीबी की तरफ गिरावट बढ़ती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा और पारिवारिक स्थितियां, कुछ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की लक्षित कोशिशों की वजह से काफी अच्छी हुई हैं। खासतौर पर जल उपलब्धता और स्वच्छता के क्षेत्र में ऐसा हुआ है, जिससे रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है। रिपोर्ट कहती है कि बुनियादी सालों में किया गया शिक्षा और संज्ञानात्मक विकास असमानता के लिए दीर्घकालीन सुधार उपाय हैं। 2019-20 तक 95% स्कूलों में परिसर के भीतर शौचालय सुविधाएं (लड़कों के 95.9% सुचारू शौचालय और लड़कियों के 96.3% सुचारू शौचालय) थीं। 80.16% स्कूलों में सुचारू विद्युत कनेक्शन था, जबकि गोवा, तमिलनाडु, चंडीगढ़, दिल्ली और दादरा व नगर हवेली के साथ-साथ दमन व दीव, लक्ष्यद्वीप, पुडुचेरी में 100% स्कूलों में विद्युत कनेक्शन मौजूद थे। 2018-19 और 2019-20 के बीच सकल नामांकन अनुपात भी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक में बढ़ा है। जबकि पारिवारिक स्थितियों की बात करें, तो स्वच्छता और सुरक्षित पीने योग्य जल तक पहुंच से ज्यादातर परिवार सम्मानजनक जीवन की ओर अग्रसर हुए हैं। एनएफएचएस-5 (2019-20) के मुताबिक, 97% परिवारों के पास विद्युत पहुंच उपलब्ध है, जबकि 70% के पास बेहतर सफाई सेवाओं तक पहुंच है और 96% को सुरक्षित पीने योग्य पानी उपलब्ध है।
असमानता पर उपलब्ध जानकारी, जिसे यह रिपोर्ट सामने लाती है, वह रणनीतियां बनाने, सामाजिक विकास और साझा खुशहाली के लिए रोडमैप तैयार करने में मददगार साबित होगी। कुछ सुझाव भी दिए गए, जैसे- आय का वर्गीकरण; जिससे संबंधित वर्ग की जानकारी भी मिलती है, सार्वभौमिक बुनियादी आय, नौकरियों के सृजन, खासतौर पर उच्च शिक्षित लोगों के लिए और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने का सुझाव।