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पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक में खामोश भूचाल: मालदा–मुर्शिदाबाद में TMC को चुनौती, हुमायूं कबीर ने AIMIM संग खोला मोर्चा

कोलकाता/मुर्शिदाबाद: पश्चिम बंगाल की राजनीति में लंबे समय से ममता बनर्जी का सबसे बड़ी ताकत माने जाने वाला “मुस्लिम वोट बैंक” अब तेजी से खिसकता दिख रहा है। मालदा और मुर्शिदाबाद—दो ऐसे जिले जहां मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है—वहां तृणमूल कांग्रेस (TMC) की पकड़ कमजोर पड़ना शुरू हो गई है। स्थिति इतनी बदल चुकी है कि TMC से निष्कासित विधायक हुमायूं कबीर अब AIMIM के साथ गठबंधन कर एक बड़े राजनीतिक मोर्चे की घोषणा कर चुके हैं, जो सीधे TMC के सामाजिक आधार पर चोट करता है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बदलाव बंगाल की 2026 विधानसभा राजनीति की दिशा बदल सकता है, क्योंकि राज्य की लगभग 30% आबादी मुस्लिम है और 100 से अधिक सीटों पर इनकी अहम भूमिका होती है।


बाबरी मस्जिद की बरसी पर बड़ा राजनीतिक ऐलान: हुमायूं कबीर का नया समीकरण

मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में हजारों लोगों की भीड़ जुटी। इसी मंच से हुमायूं कबीर ने एक नई मस्जिद की नींव रखी और इसे मुसलमानों की “प्रतिष्ठा की लड़ाई” बताया।

कबीर ने ऐलान किया कि:

  • वे 22 दिसंबर को अपनी नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च करेंगे,
  • राज्य की 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे,
  • और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन फाइनल हो चुका है।

यह पहला मौका है जब बंगाल में कोई स्थानीय मुस्लिम नेतृत्व, TMC से बाहर निकलकर AIMIM जैसे पैन-इंडिया मुस्लिम राजनीतिक दल के साथ गठबंधन कर रहा है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह गठबंधन सीधे तौर पर “मुस्लिम वोट के पूरी तरह TMC में सिमट जाने” वाले समीकरण को तोड़ सकता है।


2024 के लोकसभा चुनावों के आंकड़े क्या बताते हैं?

हालांकि, 2024 में TMC ने राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन असली खतरे की घंटी मालदा और मुर्शिदाबाद में बजी है—वे जिले जहां मुस्लिम आबादी 60–90% के बीच है।

मालदा जिला

  • कुल 8 मुस्लिम-बहुल विधानसभा क्षेत्र
  • कांग्रेस 6 सीटों पर आगे
  • भाजपा ने 2 सीटों पर बढ़त ली
  • TMC यहाँ तीसरे नंबर पर खिसकती दिखी

मुर्शिदाबाद जिला

  • कुल 11 मुस्लिम-बहुल सीटें
  • TMC सिर्फ 5 सीटों पर आगे
  • बाकी सीटें कांग्रेस, वामदल और भाजपा के खाते में गईं

ये आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि मुस्लिम वोटों में TMC का “वन-साइडेड” समर्थन अब टूट रहा है और विपक्षी दलों की पकड़ मजबूत हो रही है।


मुस्लिम मतदाताओं में बढ़ती नाराज़गी — इसके कारण क्या हैं?

जमीनी रिपोर्टों और स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिल रही जानकारियों के अनुसार, मुस्लिम युवाओं, शिक्षित वर्ग और पारंपरिक मतदाताओं के बीच कई कारणों से TMC के प्रति असंतोष बढ़ा है।


1. “भाजपा का डर दिखाकर वोट लेने” का आरोप

कई मुस्लिम मतदाताओं को अब लगने लगा है कि:

“ममता बनर्जी हमें भाजपा के नाम पर डराकर अपना वोट बैंक बनाए रखती हैं।”

पिछले तीन वर्षों में मुस्लिम इलाकों में यह भावना काफी मजबूत हुई है।


2. मंदिर निर्माण और हिंदुत्व-नरम नीति से नाराज़गी

ममता सरकार द्वारा:

  • जगन्नाथ मंदिर निर्माण
  • महाकाल पथ
  • धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

जैसे फैसलों ने कट्टरपंथी और रूढ़िवादी मुस्लिम मतदाताओं के एक हिस्से को बेहद नाराज किया है।

उनकी नजर में ममता बनर्जी “मुस्लिम हितों को नजरअंदाज कर हिंदू वोट बैंक को बढ़ाने में लगी हैं।”


3. मुस्लिम नेतृत्व का TMC में उपेक्षित महसूस करना

TMC में बड़े मुस्लिम चेहरों की कमी लगातार उठता सवाल रहा है।
हुमायूं कबीर का निष्कासन और दूसरे स्थानीय मुस्लिम नेताओं की शिकायतें इस नाराज़गी को और बढ़ा रही हैं।


4. नौकरियों, शिक्षा और आर्थिक मुद्दों पर असंतोष

मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे जिलों में:

  • रोजगार के अवसर बेहद सीमित
  • युवाओं में शिक्षा स्तर कम
  • उद्योग और विकास के बड़े प्रोजेक्ट नहीं

ऐसे में मुस्लिम युवा TMC सरकार से निराश हो रहा है और नए विकल्प तलाश रहा है।


5. कांग्रेस और वामदलों की धीरे-धीरे वापसी

जहां TMC कमजोर पड़ रही है, वहां कांग्रेस और वामदलों की स्थानीय पकड़ फिर से मजबूत हो रही है।
मुस्लिम नेतृत्व पर भरोसा न होने की वजह से यह वर्ग पुरानी पार्टियों की ओर लौट रहा है।


हुमायूं कबीर–AIMIM गठबंधन: क्या बदल सकता है यह समीकरण?

यह गठबंधन तीन बड़े कारणों से चुनावी मैदान में खतरनाक साबित हो सकता है:


1. स्थानीय + राष्ट्रीय मुस्लिम नेतृत्व का कॉम्बिनेशन

AIMIM के पास संगठन, मुद्दे और आक्रामक मुस्लिम नेतृत्व है,
जबकि
हुमायूं कबीर के पास स्थानीय नेटवर्क और तृणमूल विरोध की लहर का सीधा फायदा है।


2. सीधा नुकसान TMC का, फायदा कांग्रेस/वाम का?

विशेषज्ञों का मानना है कि:

  • AIMIM और कबीर का गठबंधन मुस्लिम वोटों को 2–3 हिस्सों में बांट देगा
  • इससे सीधा नुकसान टीएमसी का होगा
  • कांग्रेस और वामदलों को अप्रत्यक्ष फायदा हो सकता है
  • भाजपा को भी कुछ सीटों पर बढ़त का लाभ मिल सकता है क्योंकि मुस्लिम वोट के बंटवारे से बहकोल (polarized) सीटों में उसकी जीत आसान हो सकती है

3. 2026 विधानसभा चुनाव TMC के लिए चुनौती बन सकते हैं

यदि मालदा–मुर्शिदाबाद का ट्रेंड अन्य मुस्लिम इलाकों में फैलता है, तो TMC की परंपरागत ताकत कमजोर हो सकती है।
2026 में TMC को 2011–2021 जैसी एकतरफा बढ़त नहीं मिल पाएगी।


TMC की प्रतिक्रिया और पार्टी के भीतर चिंता

TMC नेताओं के मुताबिक:

  • हुमायूं कबीर मौका देखकर राजनीति कर रहे हैं
  • उनका प्रभाव सीमित है
  • AIMIM बंगाल में जड़ नहीं जमा पाएगी

लेकिन दूसरी ओर, जमीनी कार्यकर्ताओं और जिला नेताओं के बीच चिंता गहरा रही है कि मुस्लिम वोटों के विभाजन से पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है।


निष्कर्ष: बंगाल की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव

मालदा और मुर्शिदाबाद में जो भी राजनीतिक उफान दिख रहा है, वह महज स्थानीय असंतोष नहीं है। यह संकेत है कि ममता बनर्जी का अभेद्य मुस्लिम वोट बैंक अब टूट रहा है और आने वाले महीनों में यह राज्य की राजनीति को पूरी तरह नया रूप दे सकता है।

क्या AIMIM–कबीर गठबंधन 2026 की तस्वीर बदल पाएगा? क्या TMC फिर से मुस्लिम इलाकों पर पकड़ मजबूत कर पाएगी? और क्या कांग्रेस–वामदलों की वापसी संभव है? अगले कुछ महीनों में बंगाल की राजनीति में कई बड़े मोड़ आ सकते हैं।

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