
देहरादून/नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय में वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जुड़ा मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। अदालत ने अब इस विवादित मामले की सुनवाई के लिए नई दो सदस्यीय बेंच का गठन किया है। यह कदम तब उठाया गया जब अब तक 16 न्यायाधीश इस केस से स्वयं को अलग (Recuse) कर चुके हैं — जो भारतीय न्यायिक इतिहास में अपने आप में एक “अद्वितीय रिकॉर्ड” बन गया है।
नई बेंच करेगी 30 अक्टूबर को सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को करेगी। यह बेंच केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) और उसकी रजिस्ट्री के सदस्यों के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर विचार करेगी।
यह मामला न केवल एक अधिकारी की व्यक्तिगत लड़ाई का प्रतीक बन गया है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत देता है कि उच्च न्यायपालिका के भीतर संवेदनशील मामलों में न्यायिक निष्पक्षता और संभावित हितों के टकराव को लेकर कितनी सावधानी बरती जा रही है।
क्या है पूरा मामला?
वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी लंबे समय से सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर आवाज रहे हैं। उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) में मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO) के रूप में कार्य करते हुए कई गंभीर भ्रष्टाचार मामलों का खुलासा किया था।
उनकी इसी ईमानदारी और सख्त रुख के कारण वे बार-बार प्रशासनिक और कानूनी विवादों में फंसे रहे।
2024 में, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने उनके खिलाफ स्वतः संज्ञान (Suo Moto) लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी।
हालांकि, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 7 अक्टूबर 2025 तक इस कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
इसके बावजूद, CAT ने 12 सितंबर 2025 को एक वरिष्ठ अधिवक्ता को न्यायमित्र (Amicus Curiae) नियुक्त करते हुए आगे की प्रक्रिया जारी रखी।
संजीव चतुर्वेदी ने इस कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी, यह कहते हुए कि यह आदेश हाईकोर्ट के स्थगन निर्देश का उल्लंघन है।
अब तक 16 न्यायाधीशों ने खुद को अलग किया
इस मामले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अब तक 16 न्यायाधीश इस केस से स्वयं को अलग कर चुके हैं। इनमें हाईकोर्ट के कई वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल हैं —
न्यायमूर्ति आलोक वर्मा, न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी, न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी समेत कुल 16 जजों ने विभिन्न कारणों से इस प्रकरण की सुनवाई से Recuse किया है।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह देश में शायद पहली बार हुआ है जब किसी एक ही केस में इतने अधिक न्यायाधीशों ने सुनवाई से खुद को अलग किया हो।
यह न्यायपालिका के भीतर पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी दिखाता है कि यह मामला कितना संवेदनशील और विवादास्पद बन चुका है।
निचली अदालत और CAT के जज भी पीछे हटे
सिर्फ उत्तराखंड हाईकोर्ट ही नहीं, बल्कि नैनीताल स्थित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने भी चतुर्वेदी से जुड़े एक आपराधिक मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
इसके अलावा, CAT की जस्टिस हरविंदर कौर ओबेरॉय और बी. आनंद की खंडपीठ ने भी इस केस से Recuse करने का निर्णय लिया।
इससे यह मामला और जटिल हो गया, क्योंकि सुनवाई करने के लिए उपयुक्त पीठ का गठन बार-बार बदलना पड़ा।
संजीव चतुर्वेदी कौन हैं?
संजीव चतुर्वेदी हरियाणा कैडर के 2002 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी हैं, जिन्हें देश के सबसे साहसी “व्हिसलब्लोअर” अफसरों में गिना जाता है।
उन्होंने एम्स में कार्यकाल के दौरान चिकित्सा उपकरणों की खरीद और निर्माण परियोजनाओं में हुए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था। इसके अलावा, वे हरियाणा में भी कई बार राजनीतिक दबावों और ट्रांसफर विवादों का सामना कर चुके हैं।
उनकी ईमानदारी और भ्रष्टाचार विरोधी रुख के कारण उन्हें कई सम्मान भी मिले हैं, जिनमें रामनाथ गोयनका अवार्ड और सतर्कता में उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक शामिल हैं।
CAT और हाईकोर्ट के बीच कानूनी टकराव
इस पूरे विवाद की जड़ में CAT द्वारा की गई स्वत: अवमानना कार्यवाही है, जिसे चतुर्वेदी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
उनका कहना है कि CAT ने अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर कार्यवाही की और न्यायिक आदेशों की अवहेलना की है।
हाईकोर्ट ने इस पर फिलहाल रोक लगाई हुई है, लेकिन CAT द्वारा बाद में Amicus Curiae नियुक्त किए जाने से विवाद और गहरा गया।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की पीठ इस मामले में क्या रुख अपनाती है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी विश्लेषकों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में जजों का खुद को अलग करना “संवेदनशीलता और संस्थागत मर्यादा” दोनों का संकेत है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. त्रिपाठी कहते हैं —
“यह मामला सिर्फ एक अधिकारी या CAT तक सीमित नहीं है। यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल बन गया है।”
दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार पीठ बदलने से न्याय में देरी हो रही है और इससे जनता का भरोसा प्रभावित हो सकता है।
30 अक्टूबर को तय होगी अगली दिशा
अब सबकी निगाहें 30 अक्टूबर की सुनवाई पर हैं, जब नई गठित दो सदस्यीय बेंच इस मामले में अगला कदम तय करेगी। क्या अदालत CAT के खिलाफ सख्त टिप्पणी करेगी, या फिर कोई मध्य रास्ता अपनाया जाएगा — यह सुनवाई बेहद अहम मानी जा रही है।
संजीव चतुर्वेदी का यह केस अब केवल एक अवमानना याचिका नहीं, बल्कि भारतीय न्यायपालिका में निष्पक्षता, पारदर्शिता और संस्थागत जिम्मेदारी की परीक्षा बन चुका है। 16 जजों का Recuse होना इस बात का प्रतीक है कि न्यायिक प्रणाली अपने नैतिक मानकों से समझौता नहीं करना चाहती। अब देखना यह है कि 17वीं बेंच आखिरकार इस लंबे चले आ रहे विवाद में कौन-सी नई दिशा तय करती है।