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भारत 2030 से पहले बहुआयामी गरीबी घटाने की राह पर, पर करोड़ों बच्चे अब भी बुनियादी सेवाओं से वंचित: यूनिसेफ

नई दिल्ली, 20 नवंबर। भारत बहुआयामी गरीबी को 2030 तक आधा करने के अपने सतत विकास लक्ष्य (SDG) को निर्धारित समय से पहले हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है। हालांकि, यूनिसेफ की नई रिपोर्ट देश के भविष्य को लेकर कुछ गंभीर सवाल उठाती है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में लाखों बच्चे अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंच पा रहे हैं, जिससे बाल गरीबी के उन्मूलन की राह चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।

यूनिसेफ द्वारा गुरुवार को जारी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2025: एंडिंग चाइल्ड पॉवर्टी – आवर शेयर्ड इम्पेरेटिव’ के अनुसार, भारत ने बीते वर्षों में बहुआयामी गरीबी कम करने में उल्लेखनीय सुधार किया है। रिपोर्ट कहती है कि यदि वर्तमान प्रगति की गति बरकरार रहती है, तो देश 2030 की समयसीमा से पहले ही इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। यह संकेत विकास नीति निर्माताओं, सामाजिक कल्याण योजनाओं और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

फिर भी, तस्वीर का दूसरा पहलू चिंताजनक है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 20.6 करोड़ बच्चे, जो देश की कुल बाल आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, अब भी छह बुनियादी सेवाओं—शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, आवास, स्वच्छ पानी और स्वच्छता—में से कम से कम एक तक पहुंच से वंचित हैं। यह स्थिति इस बात को रेखांकित करती है कि आर्थिक विकास और गरीबी में कमी के बावजूद, बच्चों तक इन सेवाओं की सुनिश्चित उपलब्धता अभी भी एक बड़ी चुनौती है।

यूनिसेफ का कहना है कि भारत ने पिछले एक दशक में गरीबी उन्मूलन के कई संकेतकों में तेज सुधार दर्ज किया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आवास, स्वच्छता और बिजली जैसी सुविधाओं की पहुंच बढ़ी है, जिससे बहुआयामी गरीबी में गिरावट आई है। केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं—जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत मिशन, आयुष्मान भारत और पोषण अभियान—ने भी गरीब परिवारों की जीवन स्थितियों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हालांकि, रिपोर्ट चेतावनी देती है कि गरीबी में कमी के बावजूद सेवाओं की असमानता बनी हुई है। कई क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं तक समान रूप से पहुंच नहीं है। यह असमानता ग्रामीण इलाकों, आदिवासी समुदायों, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों और आपदाग्रस्त क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है। इससे बच्चों के विकास, सीखने की क्षमता और उनके दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक अवसरों पर प्रभाव पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा के क्षेत्र में कोविड-19 महामारी के बाद से अब तक पूरी तरह से रिकवरी नहीं हो पाई है। कई बच्चे डिजिटल गैप, स्कूल छोड़ने की बढ़ती प्रवृत्ति और सीखने के स्तर में गिरावट जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। यूनिसेफ चेतावनी देता है कि यदि शिक्षा तक पहुंच का दायरा नहीं बढ़ाया गया, तो लाखों बच्चों का भविष्य प्रभावित हो सकता है और गरीबी का दुष्चक्र आगे की पीढ़ियों में भी जारी रह सकता है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं। भारत में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में सुधार के बावजूद, कुपोषण अभी भी एक बड़ी समस्या है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बच्चे नियमित टीकाकरण, प्राथमिक चिकित्सा और पोषण सेवाओं तक नियमित रूप से नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसका कारण स्वास्थ्य ढांचे की कमी, जागरूकता की कमी और कई क्षेत्रों में सेवाओं की धीमी उपलब्धता है।

इसी तरह, स्वच्छ पानी और स्वच्छता की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन कई गांवों और शहरी स्लमों में अब भी पीने के साफ पानी की कमी और स्वच्छ शौचालयों की अनुपलब्धता के मामले सामने आते हैं। यूनिसेफ का जोर है कि इन क्षेत्रों में सतत और मजबूत निवेश की जरूरत है, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार सुनिश्चित हो सके।

रिपोर्ट कहती है कि भारत में गरीबी कम करने के प्रयास तभी प्रभावी होंगे जब विकास की नीतियाँ बच्चों को केंद्र में रखकर तैयार की जाएं। विशेषज्ञों का मानना है कि चाइल्ड-सेंट्रिक इंवेस्टमेंट—जैसे पोषण कार्यक्रम, स्कूल शिक्षा, किशोर स्वास्थ्य और कौशल विकास—दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यूनिसेफ का तर्क है कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण जीवन देने में निवेश, केवल सामाजिक दायित्व ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है, क्योंकि इससे भविष्य में मानव पूंजी का विकास तेजी से होता है।

भारत के लिए आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि विकास की गति बनाए रखते हुए सेवाओं का दायरा अधिक से अधिक बच्चों तक पहुंचाया जाए। बहुआयामी गरीबी में कमी का लक्ष्य भले ही समय से पहले हासिल किया जा सके, लेकिन यदि देश में लाखों बच्चे अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहते हैं, तो यह प्रगति अधूरी ही रहेगी।

रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि स्थानीय प्रशासन, सामुदायिक संगठनों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को बच्चों के लिए सेवाओं में निवेश बढ़ाने के लिए एक साथ काम करना होगा। इसके साथ ही सरकार को डेटा-आधारित नीतियों, निगरानी तंत्र और लक्षित योजनाओं पर और अधिक जोर देना होगा।

कुल मिलाकर, यूनिसेफ की रिपोर्ट भारत को एक दोहरी तस्वीर दिखाती है—एक ओर गरीबी कम करने की दिशा में मजबूत कदम, और दूसरी ओर करोड़ों बच्चों तक जरूरी सेवाएं पहुंचाने की चुनौती। आने वाले वर्ष यह तय करेंगे कि भारत 2030 तक बाल गरीबी खत्म करने के वैश्विक अभियान में दुनिया के लिए एक उदाहरण बन सकता है या नहीं।

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