
नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर लोकसभा में विशेष चर्चा हुई। यह चर्चा मात्र सांस्कृतिक विषय भर नहीं रही, बल्कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बन गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक निर्णयों पर गंभीर सवाल उठाए, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर मुद्दों से ध्यान हटाने का आरोप लगाया।
मोदी का कांग्रेस पर हमला: “मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम् के टुकड़े किए”
चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया कि 1930 के दशक में पंडित जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी ने मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम् के उपयोग पर समझौता किया।
पीएम मोदी ने कहा,
“जब वंदे मातरम् देश की ऊर्जा और स्वतंत्रता संग्राम का मंत्र बन रहा था, तब मुस्लिम लीग के विरोध और जिन्ना के दबाव में कांग्रेस झुक गई। कांग्रेस ने 26 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया। यह तुष्टीकरण की राजनीति थी।”
उन्होंने दावा किया कि जिन्ना के विरोध के कुछ ही दिनों बाद नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा, जिसमें आनंद मठ की पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए कहा गया कि यह गीत मुसलमानों को “इरिटेट” कर सकता है।
मोदी ने कहा कि देशभक्तों ने इस निर्णय का विरोध किया और पूरे देश में प्रभात फेरियां निकालकर वंदे मातरम् का गान किया, लेकिन कांग्रेस अपने रुख पर कायम रही।
आपातकाल का संदर्भ भी जोड़ा
प्रधानमंत्री ने चर्चा के दौरान 1975 के आपातकाल का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा,
“जब राष्ट्रगीत के 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। संविधान का गला घोंट दिया गया था। जब आज़ादी कुचलने की कोशिश हुई, तब वंदे मातरम् ने देश को खड़ा किया।”
मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा, प्रेरणा और स्वतंत्रता संघर्ष की आवाज़ है।
प्रियंका गांधी: “राष्ट्रीय गीत पर चर्चा की आवश्यकता ही नहीं थी”
कांग्रेस महासचिव और लोकसभा सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह चर्चा सिर्फ ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए लाई गई है।
प्रियंका गांधी ने कहा,
“वंदे मातरम् देश के कण-कण में बसता है। यह हमारी भावना, हमारी आत्मा से जुड़ा हुआ है। इस पर चर्चा की आवश्यकता नहीं थी।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को महंगाई, बेरोज़गारी और किसानों के मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी, लेकिन वह भावनात्मक विषयों को सामने रखकर जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है।
कांग्रेस सांसद ने कहा,
“हमारा राष्ट्र गीत उस भावना का प्रतीक है जिसने गुलामी में सोए भारत को जगाया। इसे राजनीतिक हथियार बनाना उचित नहीं।”
अखिलेश यादव ने भी साधा निशाना
समाजवादी पार्टी के प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने भी राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ पर सदन में चर्चा होने पर सम्मान जताया, लेकिन BJP पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया।
अखिलेश यादव ने कहा,
“हमें गर्व है कि सदन में वंदे मातरम् को याद किया जा रहा है। मगर बीजेपी बहुत कुछ अपनाना चाहती है… इतिहास भी, विरासत भी और भावनाएं भी, लेकिन सबका उपयोग राजनीति के लिए करती है।”
उन्होंने कहा कि देश को आगे बढ़ाने के लिए ऐसी बहसें तब सार्थक होंगी जब इन्हें राजनीतिक रंग देने के बजाय एकता और भाईचारे की दिशा में आगे बढ़ाया जाए।
सदन का माहौल रहा तल्ख
सदन में कई बार तकरार के स्वर तेज हुए। सत्तापक्ष ने कांग्रेस के ऐतिहासिक निर्णयों की आलोचना की, तो विपक्ष ने सरकार को “इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने” के आरोपों से घेरा। स्पीकर को कई बार सदन को शांत करना पड़ा।
वंदे मातरम् और उसका इतिहास
बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखा गया वंदे मातरम् भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की भावना का प्रमुख स्तंभ रहा है। 1905 के विभाजन-बंग आंदोलन से लेकर आज़ादी की लड़ाई के प्रत्येक बड़े चरण में इस गीत ने आंदोलनकारियों को प्रेरित किया।
हालाँकि 1930 के दशक में मुस्लिम लीग ने इस गीत की कुछ पंक्तियों पर आपत्ति जताई थी, जिस पर कांग्रेस ने आंशिक रूप से इसे अपनाने का निर्णय लिया था। यही निर्णय आजादी के बाद भी राजनीतिक विवाद का कारण बना।
विशेष चर्चा का राजनीतिक संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वंदे मातरम् पर चर्चा केवल सांस्कृतिक विषय नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है — विशेषकर ऐसे समय में जब कई राज्यों में चुनाव नज़दीक हैं और राष्ट्रीय पहचान से जुड़े मुद्दे सुर्खियों में रहते हैं।
सत्तापक्ष इसे कांग्रेस की ऐतिहासिक “गलतियों” के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, जबकि विपक्ष कह रहा है कि जनता के वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाया जा रहा है।



