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भारत का पहला गहरे समुद्र सूक्ष्मजीव अनुसंधान केंद्र होगा नेल्लोर में स्थापित

समुद्री विज्ञान में नई क्रांति की ओर भारत; औद्योगिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण अनुसंधान को मिलेगी नई गति

नई दिल्ली, 7 दिसंबर। भारत समुद्री विज्ञान और जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) ने घोषणा की है कि देश का पहला गहरे समुद्र में पाए जाने वाले समुद्री सूक्ष्मजीवों का संग्रह एवं अनुसंधान केंद्र आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के पास स्थापित किया जाएगा। यह सुविधा भारत में समुद्री जैव विविधता और माइक्रोबायोम अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है।

मंत्रालय के अनुसार यह केंद्र NIOT के तटीय परिसर में विकसित किया जा रहा है, जहां वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराइयों में मौजूद चरम परिस्थितियों—जैसे अत्यधिक दबाव, बेहद कम तापमान, बहुत कम रोशनी और खनिज-समृद्ध वातावरण में पनपने वाले सूक्ष्मजीवों—का अध्ययन करने के लिए विश्वस्तरीय प्रयोगशालाएँ उपलब्ध होंगी।


क्यों खास है यह अनुसंधान केंद्र?

साधारण परिस्थितियों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की तुलना में गहरे समुद्र के माइक्रोब्स में अत्यंत अनूठी विशेषताएँ होती हैं। ये कई किलोमीटर गहराई में, सूर्य की रोशनी से दूर, लगभग शून्य डिग्री तापमान और अत्यधिक हाइड्रोस्टैटिक प्रेशर में जीवित रहते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ऐसे जीवों में—

  • उच्च तापरोधी एंजाइम,
  • एंटीबायोटिक गुण,
  • जटिल हाइड्रोकार्बन को तोड़ने की क्षमता,
  • तथा औद्योगिक रसायनों के विकल्प

जैसी क्षमताएँ पाई जाती हैं।

इन विशेषताओं के कारण गहरे समुद्री माइक्रोब्स:

  • फार्मा उद्योग,
  • जैव-चिकित्सा अनुसंधान,
  • खाद्य प्रसंस्करण,
  • बायोफ्यूल,
  • प्लास्टिक अपघटन,
  • और प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों

के लिए अत्यंत उपयोगी साबित हो सकते हैं।

NIOT के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह केंद्र भारत को समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी के वैश्विक मानचित्र पर अग्रणी स्थान दिलाने में सक्षम होगा।


अत्याधुनिक सुविधाओं से होगा शोध — माइक्रोबायोम का विस्तृत डेटाबेस तैयार

नया अनुसंधान केंद्र वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराइयों से प्राप्त नमूनों का—

  • पृथक्करण (Isolation),
  • संवर्धन (Cultivation),
  • जीनोमिक अध्ययन,
  • प्रोटीन विश्लेषण,
  • और जैव-रासायनिक परीक्षण

करने की सुविधा देगा। इन सभी का डेटा एक सुरक्षित राष्ट्रीय माइक्रोबायोम रिपॉजिटरी में दर्ज किया जाएगा।

यह रिपॉजिटरी न केवल भारत के शोधकर्ताओं बल्कि उद्योगों, विश्वविद्यालयों और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण संसाधन होगी। इससे भविष्य में नई दवाओं, नए औद्योगिक एंजाइम और समुद्री संरक्षण तकनीकों के विकास की राह खुल सकती है।


डीप ओशन मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा

यह केंद्र भारत सरकार के डीप ओशन मिशन का एक प्रमुख घटक है—एक महत्वाकांक्षी परियोजना जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की “ब्लू इकोनॉमी” को मजबूत करने के उद्देश्य से की थी। मिशन के तहत भारत समुद्री खनिज, ऊर्जा, जैव संसाधन, जलवायु अध्ययन और गहरे समुद्र तकनीकों की दिशा में अभूतपूर्व शोध कर रहा है।

डीप ओशन मिशन का उद्देश्य है—

  • भारत को गहरे समुद्र अनुसंधान में आत्मनिर्भर बनाना,
  • समुद्री संसाधनों का टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करना,
  • और गहरे समुद्र में मौजूद जैविक खजाने को वैज्ञानिक रूप से समझना।

नेल्लोर में बन रहा सूक्ष्मजीव केंद्र इसी मिशन के उस स्तंभ को मजबूत करेगा जो जैव-प्रौद्योगिकी और समुद्री पारिस्थितिकी से जुड़ा हुआ है।


औद्योगिक क्षेत्र को मिलेगी नई दिशा—बायोटेक उद्योग के लिए वरदान

समुद्री सूक्ष्मजीवों से प्राप्त एंजाइम और प्रोटीन पहले से ही दुनिया में—

  • डिटर्जेंट
  • खाद्य प्रसंस्करण
  • दवाओं
  • बायो-प्लास्टिक
  • और पर्यावरण उपचार तकनीकों

में उपयोग किए जा रहे हैं। भारत अभी तक इन तकनीकों के लिए बड़े पैमाने पर विदेशों पर निर्भर था।

अब यह केंद्र देश को—

  • स्वदेशी औद्योगिक बायो-इनोवेशन,
  • नई दवा खोज,
  • वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक,
  • और हरी ऊर्जा अनुसंधान

के लिए एक विश्वसनीय आधार प्रदान करेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 10 वर्षों में गहरे समुद्र बायोटेक सेक्टर में भारत अरबों डॉलर की संभावनाओं वाले वैश्विक बाजार का हिस्सा बन सकता है।


पर्यावरण संरक्षण में भी होगा बड़ा योगदान

विश्वभर में समुद्री प्रदूषण और प्लास्टिक कचरे को नष्ट करने में गहरे समुद्री माइक्रोब्स की भूमिका पर शोध जारी है। कई सूक्ष्मजीव:

  • तेल रिसाव (Oil Spill)
  • भारी धातुओं
  • प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों
  • और गहरे समुद्री प्रदूषकों

को विघटित करने की क्षमता रखते हैं।

भारत में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर इन क्षमताओं पर वैज्ञानिक अध्ययन संभव हो पाएगा।


NIOT: समुद्री विज्ञान का राष्ट्रीय केंद्र

चेन्नई स्थित NIOT पिछले दो दशकों से समुद्री तकनीकों पर देश का अग्रणी संस्थान रहा है। संस्थान—समुद्री रोबोट, गहरे समुद्र में खनन उपकरण, पनडुब्बी तकनीक, समुद्री ऊर्जा और तटीय सुरक्षा—पर कई उपलब्धियाँ हासिल कर चुका है।

नेल्लोर में नया अनुसंधान केंद्र NIOT को समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी का भी प्रमुख केंद्र बना देगा।


भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है गहरे समुद्र का अध्ययन?

भारत के पास 7 हजार किमी लंबी तटीय रेखा और 20 लाख वर्ग किमी का समुद्री क्षेत्र (EEZ) है। इस विशाल समुद्री क्षेत्र में—

  • पेट्रोलियम संसाधन,
  • खनिजों,
  • जैव संसाधनों,
  • और नई औद्योगिक तकनीकों

की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं कि “महासागर 21वीं सदी के सबसे बड़े संसाधन केंद्र हैं। जो देश समुद्र को समझेगा, भविष्य उसी का होगा।”


निष्कर्ष: भारत समुद्री विज्ञान के वैश्विक मंच पर मजबूत खिलाड़ी बनने की ओर

नेल्लोर में स्थापित होने वाला गहरे समुद्र सूक्ष्मजीव अनुसंधान केंद्र न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं का विस्तार करेगा, बल्कि—

  • वैश्विक अनुसंधान सहयोग,
  • औद्योगिक नवाचार,
  • समुद्री संरक्षण,
  • और स्वदेशी बायो टेक्नोलॉजी

के नए युग की शुरुआत करेगा।

यह केंद्र भारत के समुद्री संसाधनों को वैज्ञानिक रूप से समझने और उपयोग में लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो “विकसित भारत” के संकल्प को समुद्री विज्ञान के क्षेत्र में नया आधार देगा।

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