
नई दिल्ली, 7 मई 2025
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई के साथ अब जल कूटनीति भी नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए कहा –
“भारत के हक का पानी, भारत के हक में बहेगा।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ व्यापक रणनीतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
क्या है सिंधु जल संधि (IWT)?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुई यह संधि, सिंधु नदी प्रणाली के जल बंटवारे को नियंत्रित करती है।
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भारत को तीन पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास, सतलज
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पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम, चिनाब
भारत हालांकि पश्चिमी नदियों पर “गैर-उपभोगतात्मक उपयोग” (non-consumptive use) कर सकता है – जैसे पनबिजली, सिंचाई और स्टोरेज, लेकिन पाकिस्तान बार-बार इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है।
भारत ने अब चिनाब नदी के प्रवाह को “आंशिक रूप से रोकते हुए” पाकिस्तान की चिंता बढ़ा दी है। बगलिहार बांध (रामबन) और सलाल बांध (रेयासी) से पानी के रिलीज को सीमित किया गया है।
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पाकिस्तान की IRSA (Indus River System Authority) ने चिनाब नदी के बहाव में अचानक गिरावट पर “गंभीर चिंता” जताई है।
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मारला में चिनाब की मात्रा सामान्य से 32% कम पाई गई है, जिससे पंजाब के सिंचाई ढांचे पर असर पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक के बाद:
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विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने घोषणा की –
“पाकिस्तान से राजनयिक संबंध घटाए जाएंगे। जब तक वह आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाता, IWT की समीक्षा और स्थगन जारी रहेगा।”
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी टिप्पणी में कहा:
“इतिहास में भारत को सिंधु जल समझौते में भारी नुकसान हुआ। अब संतुलन बदलेगा। नदियां संघर्ष का स्रोत बन सकती हैं, लेकिन भारत उन्हें राष्ट्रीय विकास के साधन के रूप में देखता है।”
उन्होंने नदियों को जोड़ने की योजना और जल प्रबंधन के नवाचार पर भी बल दिया – जिससे भारत अपनी भौगोलिक जल स्थिति को आत्मनिर्भरता में बदल सके।
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भारत की कार्रवाई संधि के तकनीकी प्रावधानों के दायरे में है, लेकिन पाकिस्तान इसे “जल युद्ध” करार देने की कोशिश कर सकता है।
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वर्ल्ड बैंक की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, जो IWT का गैर-पक्षीय पर्यवेक्षक है।
भारत की यह नीति स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि अब सिर्फ सैन्य जवाब नहीं, संसाधनों के मोर्चे पर भी सख्ती होगी। यदि पाकिस्तान बातचीत नहीं करता, तो भारत अपने जल संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर उसे कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर सकता है।