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बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग की सख्ती, 334 निष्क्रिय राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द

2019 से कोई चुनाव न लड़ने और भौतिक अस्तित्व न मिलने पर आयोग ने की कार्रवाई, पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम

पटना/नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चुनाव आयोग ने राजनीतिक पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने 334 ऐसे रजिस्टर्ड लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPP) का पंजीकरण रद्द कर दिया है, जो 2019 से अब तक किसी भी चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय नहीं रहे और जिनका जमीनी स्तर पर कोई भौतिक अस्तित्व नहीं मिला।

चुनाव आयोग के मुताबिक, यह कार्रवाई Representation of the People Act, 1951 के प्रावधानों के तहत की गई है। जांच के दौरान पाया गया कि कई दलों का कार्यालय अस्तित्व में नहीं है, उनके पदाधिकारी लंबे समय से निष्क्रिय हैं और वे किसी भी निर्वाचन में भाग नहीं ले रहे हैं। कुछ मामलों में पते और संपर्क विवरण भी गलत पाए गए।


पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में कदम

चुनाव आयोग का यह कदम ऐसे समय में आया है जब बिहार में चुनावी माहौल गरमा रहा है। आयोग ने कहा कि निष्क्रिय राजनीतिक दल न केवल चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करते हैं, बल्कि कुछ मामलों में इनका इस्तेमाल टैक्स चोरी, धन शोधन या अन्य अवैध गतिविधियों के लिए भी हो सकता है। ऐसे दलों की पहचान कर उन्हें रजिस्टर से हटाना लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है।


2019 से कोई चुनावी गतिविधि नहीं

आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इन 334 दलों ने 2019 के बाद से किसी भी प्रकार के लोकसभा, विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनाव में न तो प्रत्याशी उतारे और न ही चुनाव प्रचार में भाग लिया। इनमें से अधिकांश के पते पर कोई गतिविधि नहीं पाई गई।


चुनावी सुधार का हिस्सा

विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग की यह कार्रवाई चुनावी सुधार के एजेंडे का हिस्सा है। बीते कुछ वर्षों से आयोग निष्क्रिय और फर्जी राजनीतिक दलों के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है। पिछले साल भी कई राज्यों में इस तरह की छंटनी की गई थी, ताकि केवल सक्रिय और वैध दल ही राजनीतिक प्रक्रिया में बने रहें।


बिहार चुनाव पर असर

बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में इस कदम का असर साफ नजर आ सकता है। इससे वोटरों के सामने केवल सक्रिय और वास्तविक विकल्प मौजूद रहेंगे। इसके साथ ही, चुनावी पारदर्शिता और मतदाताओं के विश्वास में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

चुनाव आयोग का यह फैसला न केवल निष्क्रिय राजनीतिक दलों को चुनावी सिस्टम से बाहर करने का है, बल्कि यह साफ संदेश भी देता है कि लोकतंत्र में केवल वही दल टिकेंगे जो जनता के प्रति जवाबदेह और सक्रिय रहेंगे।

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