
कोच्चि/नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद और कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सदस्य डॉ. शशि थरूर ने शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा बयान दिया है जिसे राजनीतिक हलकों में विचारोत्तेजक और चर्चित माना जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “मेरे लिए राष्ट्र पहले है, पार्टी बाद में।” उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब कई बार उनके विचार पार्टी लाइन से अलग माने गए हैं।
थरूर ने कहा कि,
“आपकी पहली निष्ठा किसके प्रति होनी चाहिए? मेरे विचार में राष्ट्र सर्वोपरि है। राजनीतिक पार्टियां तो केवल देश को बेहतर बनाने का माध्यम हैं। अगर देश ही नहीं रहेगा, तो फिर बाकी सब निरर्थक है।”
उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों और देश की सरकार को समर्थन देने पर उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन वह अपने रुख पर कायम हैं क्योंकि यह राष्ट्रहित में है।
कांग्रेस का जवाब: थरूर का रुख पार्टी की मूल भावना से मेल खाता है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में उपनेता प्रमोद तिवारी ने थरूर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“यह स्टैंड कांग्रेस का हमेशा से रहा है… राष्ट्र पहले है, पार्टी बाद में। शशि थरूर का बयान पार्टी की परंपरा के अनुरूप ही है।”
उन्होंने कहा कि हो सकता है थरूर को कांग्रेस के इतिहास और विचारधारा की गहरी समझ हो, लेकिन उन्होंने न तो थरूर की बात को गलत ठहराया, न ही सही बताया।
“सरकार का समर्थन करना देशद्रोह नहीं” – थरूर
थरूर ने कहा कि सरकार का समर्थन करना देशद्रोह नहीं होता, खासकर तब जब बात देश की सीमाओं, सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की हो। उन्होंने कहा कि वह राजनीति में इसीलिए लौटे हैं ताकि राजनीति के ज़रिए और उसके बाहर भी देश की सेवा कर सकें।
“मैंने हरसंभव तरीके से देश की सेवा करने की कोशिश की है – विचारों से, लेखन से, और संसद में बोलकर।”
कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद पर बोले- “मैं बहस करने नहीं आया”
कार्यक्रम के बाद जब उनसे कांग्रेस आलाकमान से संभावित मतभेदों पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा:
“मैं यहां किसी राजनीतिक मुद्दे या समस्या पर चर्चा करने नहीं आया हूं। मैं दो विषयों पर भाषण देने आया हूं – एक विकास और उद्योगों की भूमिका पर, और दूसरा सांप्रदायिक सद्भाव पर।”
पार्टी लाइन से इतर होते भी थरूर का राष्ट्रप्रेम का संदेश स्पष्ट
शशि थरूर के विचार भले ही कभी-कभी कांग्रेस की पारंपरिक लाइन से अलग प्रतीत होते हैं, लेकिन उनका मूल संदेश स्पष्ट है – “राष्ट्र सर्वोपरि, और राजनीति देश को बेहतर बनाने का एक साधन भर।” इस बयान को कांग्रेस के भीतर एक वैचारिक स्वतंत्रता की मिसाल भी माना जा सकता है, जहां देशहित की बात प्राथमिकता पा रही है।