
नई दिल्ली, 23 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस कार्रवाई पर कड़ी टिप्पणी की, जिसमें जमानत याचिका को 27 बार स्थगित किया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत देने का फैसला सुनाते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में हाईकोर्ट द्वारा इस तरह की लंबी स्थगनाएं स्वीकार्य नहीं हैं।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को चार साल से अधिक समय से हिरासत में रखा गया है और मामले में शिकायतकर्ता के साक्ष्य भी दर्ज किए जा चुके हैं। ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा बार-बार मामले को स्थगित करना उचित नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील राजा चौधरी ने कोर्ट को बताया कि उनका मामला 28वीं बार हाईकोर्ट की सुनवाई सूची में है, जबकि याचिकाकर्ता 3 साल, 8 महीने और 24 दिन से हिरासत में है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 33 अन्य मामले दर्ज हैं, जिनमें से वह सभी जमानत पर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में हाईकोर्ट से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे मामले को इतने लंबे समय तक स्थगित रखें।” कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस रवैये को निरर्थक बताया और याचिकाकर्ता को जमानत देने का निर्देश दिया।
इस मामले में सीबीआई की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजा ठाकरे ने जमानत देने का विरोध किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की लंबी हिरासत और स्थगनाओं को देखते हुए राहत प्रदान की।
यह फैसला न्यायपालिका में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण और जमानत याचिकाओं के शीघ्र निपटारे के महत्व को रेखांकित करता है।