नई दिल्ली, 17 दिसंबर। देश की सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय के एक आदेश को रद्द कर दिया है। यह आदेश उस मामले से संबंधित था, जिसमें विवाह का झूठा झांसा देकर एक महिला से बलात्कार करने के आरोपी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की पत्नी को भारत में रहने की अनुमति दी गई थी, ताकि आरोपी विदेश में नौकरी कर सके।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक आराधे की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि आपराधिक मामलों में आरोपी को राहत देते समय अदालतों को अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए, विशेषकर तब जब मामला गंभीर अपराध से जुड़ा हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के आदेश से न केवल न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि पीड़िता के अधिकारों और न्याय की भावना पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।
क्या था राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने आरोपी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था कि उसकी पत्नी को भारत में रहने दिया जाए, ताकि वह आरोपी के विदेश में नौकरी करने की योजना में बाधा न बने। हाईकोर्ट का यह आदेश उस समय आया था जब आरोपी के खिलाफ विवाह का झूठा वादा कर यौन शोषण का गंभीर आरोप दर्ज था और मामला विचाराधीन था।
इस आदेश को लेकर पीड़िता पक्ष ने आपत्ति जताई थी और इसे न्याय की प्रक्रिया के विपरीत बताया था। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च अदालत पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया आदेश?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी की व्यक्तिगत सुविधा को प्राथमिकता देते हुए ऐसे निर्देश नहीं दिए जा सकते, जो मामले की निष्पक्ष सुनवाई को प्रभावित करें। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी को विदेश में नौकरी करने की अनुमति देने से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वह न्यायिक प्रक्रिया से भागने या उसे प्रभावित करने की स्थिति में न हो।
पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में अदालतों को आरोपी के प्रति सहानुभूति दिखाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे गलत संदेश जाता है।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेशी का हलफनामा
इस बीच, आरोपी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया गया, जिसमें उसने यह आश्वासन दिया कि वह मामले की हर सुनवाई में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित रहेगा। अदालत ने इस हलफनामे को रिकॉर्ड पर ले लिया, लेकिन साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि केवल इस आधार पर हाईकोर्ट के आदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तकनीक के माध्यम से उपस्थिति एक सुविधा हो सकती है, लेकिन इससे आरोपी की जिम्मेदारी और कानूनी जवाबदेही समाप्त नहीं हो जाती।
पीड़िता के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का जोर
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी रेखांकित किया कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा करना नहीं, बल्कि पीड़िता को न्याय दिलाना भी है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आदेश पारित करते समय यह देखना आवश्यक है कि पीड़िता के हितों की अनदेखी न हो।
न्यायालय ने माना कि विवाह का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाना एक गंभीर सामाजिक और कानूनी अपराध है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों के लिए एक स्पष्ट संदेश है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं के अनुसार, यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायिक विवेक के अधिक संतुलित उपयोग की दिशा में मार्गदर्शक साबित होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि आरोपी की विदेश यात्रा या नौकरी से जुड़े मामलों में अदालतों को यह देखना चाहिए कि इससे जांच, ट्रायल या गवाहों पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा।
महिलाओं से जुड़े अपराधों पर सख्त रुख
यह फैसला ऐसे समय आया है जब देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर न्यायिक और सामाजिक स्तर पर गंभीर चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई मामलों में यह दोहरा चुका है कि यौन अपराधों में पीड़िताओं के प्रति संवेदनशीलता और त्वरित न्याय बेहद जरूरी है।
इस फैसले को महिला अधिकार संगठनों ने भी महत्वपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि इस तरह के आदेशों से यह संदेश जाता है कि कानून महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सर्वोपरि मानता है।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट का आदेश रद्द किए जाने के बाद अब मामला निचली अदालत में अपनी कानूनी प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ेगा। आरोपी को सभी सुनवाइयों में उपस्थित रहने और अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करने का निर्देश दिया गया है।
अदालत ने यह भी संकेत दिया है कि यदि आरोपी शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है।
न्यायिक संतुलन की मिसाल
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायिक संतुलन और संवेदनशीलता की एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। यह निर्णय न केवल इस विशेष मामले में, बल्कि भविष्य में भी ऐसे मामलों में अदालतों के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है।



