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मणिपुर के इन तीन जिलों में अलग सरकार क्यों चाहते हैं कुकी? जानिए कुकीलैंड की मांग का इतिहास

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मणिपुर में महीनों बाद भी शांति बहाल नहीं हो सकी है. हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच अब ‘कुकी-जो’ समुदाय के सबसे बड़े संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने उन तीन जिलों में सेल्फ रुल यानी स्वतंत्र तरीके से प्रशासन चलाने का ऐलान किया है, जहां ‘कुकी-जो’ समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं. ये तीन जिले चुराचांदपुर, कांगपोक्पी और टैंगनाउपोल हैं. इसके लिए आईटीएलएफ ने भारत सरकार को दो हफ्ते का अल्टीमेटम दिया है.

इन आदिवासी संगठन का मानना है कि भारत सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं नजर आ रही. जिस सेल्फ रुल यानी स्व-शासन की बात वो कर रहे हैं, उसमें अपना अलग मुख्यमंत्री और अपने समुदाय के लिए सरकारी अधिकारियों का शासन लागू कराना है. ट्राइबन फोरम का कहना है कि इन तीन जिलों में मणिपुर की एन बिरेन सरकार का कोई दखल नहीं होगा. समानांतर प्रशासन पर कुकी-जो समुदाय के लोग अड़ गए हैं, लेकिन कुकीलैंड की उनकी मांग बहुत पुरानी है.

देखा जाए तो उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर के भूगोल और आबादी को ऐसे समझिए. मणिपुर का 10 प्रतिशत इलाका घाटी वाला है, जबकि लगभग 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है. यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय रहते हैं. पहला मैतेई, दूसरा नागा और तीसरा कुकी. इनमें नागा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं, जबकि मैतेई गैर-आदिवासी हैं. मणिपुर की आबादी 38 लाख है. मैतेई की आबादी वैसे तो 53 प्रतिशत है लेकिन राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पर मैतेई समुदाय का ही कब्जा है. कुकी, जिनकी आबादी राज्य में 40 फीसदी है, वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

कुकीलैंड की मांग साल 1980 के दशक से चली आ रही है, कुकी समुदाय के लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग जोड़ पकड़ने लगी. कुकी-जोमी समुदाय के लोग जो मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं. उन्होंने कुकी राष्ट्रीय संगठन के नाम से एक विद्रोही समूह का गठन किया. उसके बाद ये मांग गाहे-बगाहे उठती रही कि हमें मैतेई लोगों के शासन में नहीं रहना. कुकी राज्य मांग समिति (केएसडीसी) का मानना था कि करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका उनका है और इसे मणिपुर से अलग किया जाना चाहिए.

मणिपुर में 4 मई के बाद से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा का दौर शुरू हुआ. मैतेई समुदाय की मांग थी कि उन्हें भी एसटी स्टेटस यानी जनजाति का दर्जा दिया जाए. इसके पीछे दलील ये कि उनकी आबादी तो ज्यादा है, लेकिन संसाधन और प्रशासन पर हक उस अनुपात में नहीं है. मणिपुर हाई कोर्ट ने भी मैतेई समुदाय की मांग को उचित मानते हुए राज्य सरकार से एसटी स्टेटस देने की सिफारिश कर दी.

 

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