
Uttrakhand Foundation day 2023: आज उत्तराखंड को बने 23 साल पूरे हो जाते है. हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले से ही एक सुन्दर पहाड़ी राज्य का सपना देखा था. उस सपने को साकार करने के लिए कई लोगों ने अपना बलिदान भी दिया . कई आन्दोलनों के बाद हमें आज के ही दिन 2000 में उत्तर प्रदेश से एक पृथक राज्य ‘उत्तराखंड’ मिला. हलाकि इस पहाड़ी राज्य बनाने का मकशद यहाँ के सभी निवासियों को जल, जंगल, जमीन और रोजगार देना था. हालांकि इन 23 वर्षों में डैम, पहाड़ों पर सड़कें और सुरंगें बहुत सारी बनी और बहुत विकास भी हुआ लेकिन पहाड़ का आदमी आज भी वही का वही पर है.

आज 23 बाद भी यहाँ का नौजवान इन बुनियादी चीजों के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है. एक नजर डालते है उत्तराखंड आज किन-किन चुनौतियों का सामना कर रहा है-
पलायन-
जिस राज्य की स्थापना पहाड़ी लोगों के भले के लिए की थी. उस राज्य का मूल निवासी आज भी उफनाती अलकनंदा की तरह तीव्र वेग से मैदानी भागों में पलायन कर रहा है. और बेचारा पलायन भी क्यों ना करे! जिस राज्य की सरकारों की योजनाएं मैदानी भागों में बनती हो और पहाड़ पर आते-आते योजनाएं कमीशनखोरी की आंच में झुलसने लगे तो वो योजना पहाड़ों पर खाक सफल होगी. बस उत्तराखंड के पहाड़ निवासियों का यही दुर्भाग्य है. की उन्हें चार पैसे के लिए खूबसूरत पहाड़ों से मैदान की तरफ पलायन करना ही होता है.
ख़राब स्वास्थ्य सेवाएं-
उत्तराखंड राज्य में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति काफी निराशाजनक है. हालांकि बीते साल में छोटे-छोटे कई प्रयास किए गए पर अब भी कई चुनौतियां ज्यों की त्यों खड़ी हैं. स्थिति यह कि दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ सेवाओं की पहुंच, चिकित्सकों की संख्या में बढ़ोत्तरी और संसाधन विकसित करने के सरकारी दावों के बीच जच्चा-बच्चा सड़क पर दम तोड़ रहे है. सामान्य बीमारी तक के लिए व्यक्ति प्राइवेट अस्पताल का रुख करने को मजबूर है. उस पर नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट आइना दिखाने वाली है. 23 साल का यह पहाड़ी प्रदेश एकमात्र राज्य है, सेहत के मामले में जिसका प्रदर्शन बेहतर होने की बजाए बदतर हुआ है.

भू-कानून-
उत्तराखंड राज्य में पहली बार भू कानून 9 नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना के बाद 2002 में एक प्रावधान किया गया था कि अन्य राज्य के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे लेकिन बाद में 2007 में इसे घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया. लेकिन आज भी नियमों को अपनी जेबों में रखे भूमाफिया उत्तराखंड की जमीनों का सौदा खुलेआम कर रहे है. हलाकि इस गोरख-धंधे में इस राज्य के रखवाले नेता भी शामिल है.
रोजगार-
आज उत्तराखंड 23 वर्ष का हो जाता है. लेकिन आज भी इस राज्य में लाखों नौजवान रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे है. पड़े लिखे लोग आठ-आठ हजार वेतन के लिए धक्के खा रहे है. सरकारी नौकरियां तो जेठ माह के बादलों की तरह कही खो जैसे गए है. अगर विज्ञप्तियां आती भी है तो कभी नक़ल माफियाओं की वजह से रद्द हो जाती है या फिर उस वैकेंसी पर नेताओं के रिश्तेदारों का कब्ज़ा हो जाता है और देखा रह जाता है अपनी सुर्ख आँखों से पहाड़ का नौजवान. अंत में उसे पलायन का सहारा लेना पड़ता है.

महिलाओं की स्थिति-
उत्तराखंड में महिलाओं की स्थिति पर नजर डालें तो पहाड़ में आज भी महिलाओं की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है. यहाँ के समाचार पत्रों में प्रतिदिन आपको महिलाओं के ऊपर घरेलु हिंसा, जंगली जानवरों का हमला, महिला तस्करी व अन्य जघन्य अपराधों से सबंधित ख़बरें मिलती रहती होगी. लेकिन 23 बाद भी हम इन अपराधों पर पूर्ण विराम नहीं लगा पाए. हालांकि ‘महिला एवं बाल विकास विभाग’ में करोड़ों की योजनाएं हर साल बनती है. लेकिन आज भी उन योजनाओं का देहरादून से पहाड़ों तक पहुंचते-पहुंचते दम निकल जाता है.
कृषि एवं बागवानी-
कुछ प्रगतिशील किसानों का तो यह कहना है कि “जब से उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई है तब से राज्य की कृषि एवं बागवानी का ह्रास हुआ है” हालांकि ये उन किसानों की निजी राय थी लेकिन देखा जाए तो आज राज्य में खेती योग्य भूमि बहुत मात्रा में बंजर पड़ी है. इसका मुख्य कारण समय पर बारिस का न होना, जंगली जानवरों का आतंक और किसानों का प्रशिक्षण न होना है.
लेकिन उत्तराखंड का ‘कृषि विभाग’ और ‘उद्यान विभाग’ की मोटी-मोटी धुल से लथपथ फाइलों के अंदर झाँका जाये तो उनमे किसानों के विकास और योजनाओं की पूरी रामायण पढ़ने को मिल जाएगी. और बगैर धरातल पर गए ही फसलों की पैदावार भी इन्ही फाइलों की बोरों में दिख जायेगा. हालांकि बहुत बार कृषि एवं उद्यान के इस विकास का गुबार भ्रष्टाचार के रूप में जनता को दिख भी जाता है. लेकिन हमारे किसानों को इन सबकी अब आदत सी हो गयी है.

इतना ही नहीं आज पूरा उत्तराखंड का युवा नशा रूपी मशाण के आगोश में आ चूका है. काम-धंदा न मिलने की वजह से नौजवान नशा करने लग गया है. कुछों को लत लग चुकी है. स्कूल में पढ़ने वाले किशोरों में नशे की प्रवर्ति दिन पर दिन बढ़ाते जा रही है. यही नौजवान और किशोर फिर कई अपराधों को जन्म दे रहे है. हालांकि सरकार पोस्टरों व विज्ञापनों के माध्यम से जनता को जगाने का एक थका हुआ प्रयास कर रही है. लेकिन नशे के तस्करों की ऊर्जा इन पोस्टरों को खोखला कर देता है.
हालांकि आज उत्तराखंड स्थापना दिवस पर नेतालोग इसे देवभूमि कहकर सम्बोधित करेंगे. और राज्य के विकास और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के बारे में लम्बे-लम्बे भाषण देंगे लेकिन सच तो ये है कि आज भी पहाड़ में न तो कोई योजनाओं के द्वारा सर्वांगीण विकास हुआ है और न ही कोई योजनाएं धरातल पर शत प्रतिशत सफल हुयी है. फिर भी उम्मीदों के हिमालय हम अपनी आँखों में सजाए हुए है कि कोई तो सरकार आएगी और उत्तराखंड को वास्तव में देवभूमि बनाएगी.