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Uttarakhand: हिन्दी दिवस 2025: CM पुष्कर सिंह धामी बोले – “हिन्दी हमारी संस्कृति, अस्मिता और राष्ट्र की आत्मा है”

देहरादून। हिन्दी दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए हिन्दी की महत्ता पर गहन विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि “हिन्दी केवल भाषा नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति, सभ्यता, अस्मिता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। यह हमारी परंपराओं और हमारी विरासत का बोध कराने वाला सतत अनुष्ठान भी है।”

मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में हिन्दी के बहुआयामी स्वरूप, उसके ऐतिहासिक योगदान और वैश्विक मंच पर उसके बढ़ते प्रभाव पर प्रकाश डाला।


हिन्दी हमारी सांस्कृतिक पहचान और विरासत की ध्वजवाहक

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हिन्दी हमारी सांस्कृतिक भावनाओं, आकांक्षाओं और आदर्शों का प्रतीक है। किसी भी देश की भाषा केवल संवाद का माध्यम ही नहीं होती, बल्कि वह अपनी संस्कृति और परंपराओं को जोड़ने वाली जीवनधारा भी होती है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हिन्दी ने न केवल समाज को जोड़ा है बल्कि हमारी सभ्यता को भी समृद्ध किया है। आज जब दुनिया बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक हो चुकी है, तब भी हिन्दी अपने सहज और सरल स्वरूप के कारण करोड़ों लोगों के दिलों में विशेष स्थान बनाए हुए है।


एकता और अखंडता का सूत्र

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिन्दी देश की एकता और अखंडता का आधार है। यह विविधता से भरे समाज को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है। सहजता, सरलता और सामर्थ्य से परिपूर्ण हिन्दी में समन्वय की अद्भुत क्षमता है। यही कारण है कि यह भाषा भारत के अलग-अलग प्रांतों, बोलियों और समुदायों को एक-दूसरे से जोड़ती है।


प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से बढ़ा हिन्दी का वैश्विक प्रभाव

सीएम धामी ने विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा हिन्दी को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं।

  • ‘मन की बात’ कार्यक्रम में हिन्दी का प्रयोग करने से इसे वैश्विक पहचान मिली।
  • संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दी के प्रयोग ने भारत की भाषा-संस्कृति को नया सम्मान दिलाया।

उन्होंने कहा कि आज कई देशों के विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। यह इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक भाषा के रूप में उभर रही है।


स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक हिन्दी का योगदान

मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय हिन्दी ने संघर्ष की भाषा बनकर देशवासियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों ने हिन्दी को ही संवाद और चेतना का माध्यम बनाया।

आजादी के बाद भी हिन्दी सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रीय चेतना की धड़कन बनी हुई है। चाहे साहित्य हो, पत्रकारिता हो या जनसंचार, हिन्दी ने हमेशा समाज को दिशा देने का कार्य किया है।


राज्य सरकार के प्रयास और प्रतिबद्धता

सीएम धामी ने कहा कि राज्य सरकार हिन्दी के उत्थान और प्रसार के लिए निरंतर कार्य कर रही है।

  • सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • विद्यार्थियों को हिन्दी साहित्य और भाषा से जोड़ने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं।
  • हिन्दी को तकनीक और डिजिटल युग के साथ जोड़ने की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं।

हिन्दी दिवस पर संकल्प

मुख्यमंत्री धामी ने प्रदेशवासियों से आह्वान किया कि हिन्दी दिवस केवल औपचारिकता का दिन न बने, बल्कि यह हमारे संकल्प का दिन होना चाहिए। उन्होंने कहा –
“हमें अपने दैनिक जीवन में हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी के गौरव और सम्मान को बनाए रखना हम सभी का दायित्व है। जब हम सब मिलकर इसके विकास के लिए काम करेंगे, तभी हिन्दी को वह वैश्विक सम्मान मिलेगा जिसकी वह हकदार है।”


हिन्दी – भारत की आत्मा और विश्व की लोकप्रिय भाषा

सीएम धामी ने कहा कि हिन्दी आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषाओं में से एक है। यह न केवल भारतीयों के बीच बल्कि विदेशों में बसे भारतीय समुदाय के लिए भी सांस्कृतिक सेतु का काम कर रही है।

देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों के साथ सामंजस्य बनाने की ताकत हिन्दी में है। यही विशेषता इसे राष्ट्र की आत्मा और भारतीयता का प्रतीक बनाती है।

हिन्दी दिवस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायी विचार है। उनके शब्द बताते हैं कि हिन्दी भाषा हमारे लिए केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा, संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक है।

हिन्दी दिवस 2025 के इस अवसर पर आवश्यकता है कि हम सभी हिन्दी के संरक्षण, संवर्धन और अधिकतम प्रयोग का संकल्प लें, ताकि यह भाषा आने वाली पीढ़ियों तक उसी गौरव के साथ पहुँचे जैसी इसे स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक प्राप्त होती रही है।

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