
देहरादून/उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग—34 के चौड़ीकरण प्रोजेक्ट को तेज़ी मिलने के साथ ही एक बड़ी पर्यावरणीय बहस फिर से जन्म ले रही है। यह पूरा इलाका भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (BESZ) में आता है, जहां बड़े निर्माण, पहाड़ी कटान और पेड़ों की कटाई पर विशेष प्रतिबंध लागू है। इसके बावजूद परियोजना को विभिन्न स्तरों से औपचारिक स्वीकृति मिल चुकी है, क्योंकि सरकार इसे सामरिक और आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मान रही है।
6,822 पेड़ों पर खतरा—ट्रांसलोकेशन और कटाई की प्रक्रिया तय
सड़क चौड़ीकरण के लिए कुल 6,822 पेड़ों को हटाने की प्रक्रिया चिह्नित की गई है।
- 4366 पेड़ों को ट्रांसलोकेट (स्थानांतरण) किया जाएगा।
- 2456 पेड़ों को पूर्णतः काटना पड़ेगा।
ट्रांसलोकेशन पर 324.44 लाख रुपये की लागत स्वीकृत की गई है। पेड़ कटान की राशि वन विभाग को उपलब्ध कराई जाएगी। इन पेड़ों में 0 से 30 व्यास वर्ग तक की प्रजातियाँ शामिल हैं—जिसमें कई स्थानीय और पहाड़ी वनस्पतियाँ हैं जो इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, पेड़ों के हटाए जाने का निर्णय व्यापक मूल्यांकन और सड़क सुरक्षा से जुड़े अध्ययन के बाद लिया गया है।
वरिष्ठ वन अधिकारियों ने दी औपचारिक मंजूरी
गंगोत्री—उत्तरकाशी मार्ग चौड़ीकरण प्रस्ताव को पहले ही तत्कालीन प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (HOF) समीर सिन्हा ने अनुमोदन दे दिया था। इसके अलावा PCCF (लैंड ट्रांसफर) एस.पी. सुबुद्धि ने भी इसे “अत्यंत महत्वपूर्ण और समय-सापेक्ष” परियोजना बताते हुए अपने स्तर से अनुमति दी है।
वन अधिकारियों का मानना है कि सड़क के वर्तमान स्वरूप में चौड़ीकरण और सुरक्षा सुधार अपरिहार्य है, विशेषकर तब जब यह मार्ग सेना, आपदा राहत टीमों और तीर्थयात्रियों की मुख्य लाइफलाइन है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह प्रोजेक्ट?—भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र
उत्तरकाशी भारत—चीन सीमा से लगा रणनीतिक जनपद है।
- सेना की आवाजाही
- आपदा प्रबंधन (बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियर टूटने जैसी परिस्थितियाँ)
- गंगोत्री धाम और आसपास के तीर्थ मार्गों पर बढ़ता यातायात
इन सब कारणों से सड़क को चौड़ा और मज़बूत बनाना केंद्र व राज्य सरकार की प्राथमिक योजनाओं में शामिल है।
सरकार का तर्क है कि आधुनिक और चौड़ी सड़कें आपात स्थितियों में तेज़ राहत कार्य सुनिश्चित करती हैं और सामरिक रूप से यह मार्ग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।
कहां तक फैला है प्रोजेक्ट?—20.600 किमी क्षेत्र में निर्माण कार्य
राष्ट्रीय राजमार्ग–34 के भैरोघाटी से झाला तक कुल 20.600 किमी क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण किया जाएगा।
प्रोजेक्ट के लिए 41.9240 हेक्टेयर भूमि को गैर–वानिकी उपयोग के लिए स्वीकृति मिली है।
इसके बदले नियमों के अनुसार 76.924 हेक्टेयर क्षेत्र में compensatory afforestation (प्रतिपूरक वनीकरण) किया जाएगा। अधिकारी मानते हैं कि भूमि हस्तांतरण और प्रारंभिक निर्माण प्रक्रिया पूरी होने में अभी लगभग एक वर्ष का समय लग सकता है।
इको–सेंसिटिव ज़ोन में अनुमति कैसे मिली?—पृष्ठभूमि समझना ज़रूरी
2012 में केंद्र सरकार ने गोमुख से उत्तरकाशी तक 4179.59 वर्ग किमी क्षेत्र को ‘भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन (BESZ)’ घोषित किया था।
इसका उद्देश्य था—
- गंगा—भागीरथी घाटी में अनियंत्रित निर्माण
- पहाड़ कटान
- नदी तटों पर संरचनाओं
को रोककर पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करना।
2018 में आया संशोधन—कुछ सीमित निर्माणों को छूट
चारधाम ऑल-वेदर रोड प्रोजेक्ट को ध्यान में रखते हुए 2018 में संशोधन किया गया, जिसमें—
- भूमि उपयोग परिवर्तन,
- ढलानों पर सीमित निर्माण,
- सड़क चौड़ीकरण
को “विशेष परिस्थितियों” में अनुमति दी गई।
इसके बाद 17 जुलाई 2020 को केंद्र सरकार ने 135 किमी क्षेत्र का रीजनल मास्टर प्लान भी मंजूर किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दी।
इस मास्टर प्लान के अनुरूप ही गंगोत्री—उत्तरकाशी मार्ग के इस नए चौड़ीकरण को स्वीकृति मिली है।
विरोध तेज़—मामला राज्यसभा तक पहुंचा
हजारों पेड़ों पर खतरे की जानकारी सामने आने के बाद पर्यावरणविदों ने गहरी चिंता जताई है।
भागीरथी BESZ निगरानी समिति की सदस्य मल्लिका भनोट ने पहले भी चेतावनी दी थी कि—
“यह पूरा क्षेत्र हिमालय की सबसे संवेदनशील पर्वतीय घाटियों में से एक है। बड़े पैमाने पर निर्माण से प्राकृतिक संतुलन प्रभावित होगा, और आपदा जोखिम बढ़ सकता है।”
इस बीच, यह मुद्दा राज्यसभा तक पहुंच गया है।
छत्तीसगढ़ की एक सांसद ने केंद्र सरकार से पूछा कि—
- इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों का हटाया जाना
- BESZ की मूल भावना के विपरीत तो नहीं?
- और क्या सर्वोत्तम पर्यावरणीय विकल्पों की समीक्षा की गई है?
पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने की मांग अब संसद के भीतर से भी उठने लगी है।
पहले भी रद्द हो चुकी हैं परियोजनाएँ—क्यों है ये क्षेत्र इतना संवेदनशील
2006 में गंगा–भागीरथी तट पर तीन जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी मिली थी, लेकिन बड़े जनविरोध और पर्यावरणीय जोखिमों के चलते उन्हें रद्द करना पड़ा।
इसी पृष्ठभूमि में 2012 में BESZ घोषित किया गया था ताकि इस पारिस्थितिकी को भविष्य के खतरों से बचाया जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में—
- भूमि धंसाव
- भूस्खलन
- बादल फटना
- ग्लेशियर झील फटना (GLOF)
जैसी आपदाएँ बढ़ रही हैं, जिन्हें देखते हुए अत्यधिक निर्माण बेहद जोखिम भरा हो सकता है।
सार — विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की परीक्षा
गंगोत्री हाईवे चौड़ीकरण प्रोजेक्ट सामरिक दृष्टि से आवश्यक माना जा रहा है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर सवाल लगातार गहराते जा रहे हैं।
जहाँ सरकार इसे “आवश्यक राष्ट्रीय परियोजना” बता रही है, वहीं विशेषज्ञ इसे हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी पर अतिरिक्त दबाव मान रहे हैं। आने वाला वर्ष यह तय करेगा कि—
- क्या परियोजना पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के साथ आगे बढ़ेगी?
- या विरोध और समीक्षा प्रक्रिया के चलते इसमें संशोधन की जरूरत पड़ेगी?
लेकिन इतना तय है कि गंगा—भागीरथी घाटी में विकास और पर्यावरण—दोनों के बीच संतुलन बनाना अब एक बड़ी चुनौती है।



