
वॉशिंगटन/ओस्लो, 10 अक्टूबर 2025: नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मच गई है। 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिए जाने पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों ने नाराजगी जताई है।
व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि “नोबेल कमिटी ने शांति की जगह राजनीति को चुना है” और राष्ट्रपति ट्रंप भविष्य में भी “युद्ध समाप्त करने और शांति स्थापित करने के प्रयास जारी रखेंगे।”
व्हाइट हाउस का बयान: “राष्ट्रपति ट्रंप शांति समझौते कराना जारी रखेंगे”
व्हाइट हाउस के कम्युनिकेशन डायरेक्टर ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा कि “राष्ट्रपति ट्रंप दुनिया भर में शांति समझौते कराने का कार्य जारी रखेंगे। उनके पास मानवता से भरा हृदय है और उनकी इच्छाशक्ति उन्हें विशिष्ट बनाती है। उन्होंने बार-बार साबित किया है कि उनकी नेतृत्व क्षमता के बल पर असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।”
बयान में आगे कहा गया कि, “ट्रंप प्रशासन ने अपने कार्यकाल में कई क्षेत्रों में संघर्ष विराम और शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था। बावजूद इसके, नोबेल कमिटी ने एक बार फिर राजनीति से प्रेरित होकर अपना फैसला दिया है।”
“नोबेल कमिटी ने शांति की जगह राजनीति को तरजीह दी”
व्हाइट हाउस की ओर से जारी तीखे बयान में कहा गया कि, “नोबेल कमिटी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह वैश्विक शांति की भावना से अधिक राजनीतिक विचारधारा के प्रभाव में है। जब कोई नेता वास्तविक रूप से युद्ध खत्म करने की दिशा में कदम उठाता है, तो उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि प्रतीकात्मक कार्यों को पुरस्कृत किया जाता है।”
अमेरिकी प्रशासन के इस बयान को लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक गलियारों में हलचल है, क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका की किसी सरकार या नेता ने नोबेल कमिटी के निर्णय पर खुलकर सवाल उठाया हो।
मचाडो को लोकतंत्र की रक्षा के लिए मिला सम्मान
दूसरी ओर, नोबेल कमिटी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि “मारिया कोरिना मचाडो को वेनेजुएला में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करने पर यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।”
मचाडो को यह पुरस्कार ऐसे समय में मिला है जब वेनेजुएला लगातार राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और तानाशाही शासन की चुनौतियों से जूझ रहा है।
नोबेल कमिटी ने कहा कि, “मचाडो ने साहस, दृढ़ता और अहिंसक तरीकों से लोकतंत्र की बहाली के लिए काम किया है। उनका संघर्ष इस बात का प्रतीक है कि अहिंसा के माध्यम से भी राजनीतिक परिवर्तन संभव है।”
मचाडो को पुरस्कार स्वरूप 1.2 मिलियन डॉलर (करीब 10 करोड़ रुपये) की राशि दी जाएगी। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि “यह पुरस्कार सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि वेनेजुएला के उन सभी नागरिकों का है जिन्होंने भय, दमन और गरीबी के बीच लोकतंत्र में विश्वास बनाए रखा।”
ट्रंप समर्थक बोले— ‘उनसे बड़ा शांति दूत कोई नहीं’
डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर नोबेल कमिटी की आलोचना करते हुए कहा कि “ट्रंप को इस दशक का सबसे बड़ा शांति निर्माता माना जाना चाहिए।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन ने अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के तहत इज़रायल, यूएई, बहरीन और मोरक्को के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते कराए थे। इसके अलावा उन्होंने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच संवाद शुरू करवाया था, जो शीत युद्ध के बाद पहली बार संभव हुआ था।
ट्रंप समर्थक समूह “Peace Through Strength Coalition” ने बयान जारी कर कहा कि, “नोबेल कमिटी को ट्रंप के उन प्रयासों को मान्यता देनी चाहिए थी, जिनसे मध्य पूर्व और एशिया में तनाव कम हुआ। यह पुरस्कार राजनीतिक पक्षपात का परिणाम प्रतीत होता है।”
नोबेल कमिटी का जवाब: “निर्णय पूरी तरह स्वतंत्र और पारदर्शी”
नोबेल कमिटी ने अमेरिकी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पुरस्कार का चयन प्रक्रिया “पूरी तरह स्वतंत्र, पारदर्शी और विशेषज्ञ मूल्यांकन पर आधारित” होती है। कमिटी ने स्पष्ट किया कि “हम किसी भी राजनीतिक दबाव या प्रचार से प्रभावित नहीं होते। मचाडो का संघर्ष मानवाधिकार और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है।”
ओस्लो विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक प्रो. लार्स एंडरसन ने कहा कि, “ट्रंप की प्रतिक्रिया राजनीतिक रूप से समझी जा सकती है, लेकिन नोबेल कमिटी का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन लोगों को सम्मानित करना है जो बिना हिंसा के लोकतंत्र को सशक्त बनाते हैं।”
अमेरिका-वेनेजुएला संबंधों पर संभावित असर
विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद अमेरिका और वेनेजुएला के बीच कूटनीतिक संबंधों को एक बार फिर प्रभावित कर सकता है।
ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने वेनेजुएला की मादुरो सरकार पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे और विपक्षी दलों को समर्थन दिया था। अब मचाडो को नोबेल मिलने से वेनेजुएला के लोकतांत्रिक गुटों को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला है, जो ट्रंप खेमे के लिए राजनीतिक चुनौती बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रो. ऐनी रॉबर्ट्स का कहना है, “यह सिर्फ एक पुरस्कार का विवाद नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन और लोकतंत्र बनाम राष्ट्रवाद की विचारधारा की टकराहट भी है।”
ट्रंप की संभावित रणनीति और 2026 के चुनाव पर नजर
विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रंप इस विवाद को अपनी राजनीतिक रणनीति के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 2026 के चुनावी अभियान की शुरुआत से पहले वह खुद को “विश्व शांति का वास्तविक दूत” के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। अमेरिकी मीडिया विश्लेषक जेम्स क्लार्क ने कहा कि, “ट्रंप के बयानों का उद्देश्य न केवल नोबेल कमिटी पर दबाव बनाना है, बल्कि अपने समर्थकों को यह दिखाना भी है कि उन्हें विश्व मंच पर जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।”
निष्कर्ष: शांति पुरस्कार के बहाने बढ़ी कूटनीतिक सियासत
नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर इस बार की बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक राजनीति में “शांति” भी अब राजनीतिक दृष्टिकोणों के बीच फंसी हुई अवधारणा बन चुकी है।
जहां एक ओर मचाडो को लोकतंत्र की बहाली का प्रतीक माना जा रहा है, वहीं अमेरिका के ट्रंप खेमे के लिए यह निर्णय उनकी राजनीतिक पुनर्स्थापना की पृष्ठभूमि भी बन गया है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब यह देख रहा है कि क्या यह विवाद केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा, या आने वाले समय में यह अमेरिका-लैटिन अमेरिका संबंधों में नई चुनौतियाँ पैदा करेगा।