
मुंबई: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने चुनाव परिणामों की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। बिहार के ताज़ा नतीजों में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को मात्र 25 सीटें मिली हैं, जिससे विपक्ष में निराशा का माहौल है। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ने पूछा कि यदि नतीजे इतने एकतरफा आने थे, तो तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ने वाली भारी भीड़ का क्या अर्थ था?
उद्धव ठाकरे ने आरोप लगाया कि चुनाव परिणाम जनता की वास्तविक भावना का प्रतिबिंब नहीं हैं और यह सवाल उठाया कि “जहां जनसभाओं में अपार समर्थन दिख रहा था, वहां हार कैसे संभव हुई?” उन्होंने यह भी पूछा कि “जो उम्मीदवार कमजोर माने जा रहे थे या जिनकी सभाओं में भीड़ नहीं दिख रही थी, वही भारी बहुमत से कैसे जीत गए?”
“भीड़ असली थी या एआई?”— ठाकरे का कटाक्ष
उद्धव ठाकरे ने अपने बयान में तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि बिहार चुनावों में तेजस्वी यादव की रैलियों में दिख रही भीड़ वास्तव में जनता थी या कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)?
उन्होंने कहा—
“अगर तेजस्वी यादव वास्तव में हार रहे थे, तो उनकी सभाओं में इतनी विशाल भीड़ कहाँ से आ रही थी? क्या वो सारी भीड़ AI से बनाई गई थी? क्या यह भी अब तकनीक का कमाल था?”
उनका यह बयान न केवल चुनाव आयोग की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि विपक्ष इन नतीजों को लेकर गहरे अविश्वास की स्थिति में है।
“जनता रोज जो पीड़ा झेल रही है, वही असली सच्चाई”— उद्धव ठाकरे
उद्धव ने आगे कहा कि बिहार में 10,000 रुपये के कथित वितरण को लेकर भी लोगों में चर्चा है, लेकिन जनता की असली समस्या और उसके दर्द को समझना जरूरी है।
उन्होंने कहा—
“₹10,000 भी एक चुनावी फैक्टर हो सकता है, लेकिन जनता रोज-रोज जो तकलीफ़ झेल रही है, वही असली सच्चाई है। जनता की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता।”
उद्धव ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग विपक्ष के सवालों का जवाब देने में असमर्थ या अनिच्छुक दिखाई दे रहा है।
“हम महाराष्ट्र के बारे में सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग कोई जवाब नहीं दे रहा। आखिर किससे डर है?”
चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर विपक्ष में बढ़ती नाराज़गी
बिहार चुनाव के बाद विपक्ष के कई नेताओं ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। महागठबंधन के नेताओं का आरोप है कि ईवीएम की विश्वसनीयता, मतगणना प्रक्रिया और अंतिम परिणामों के बीच कई विसंगतियाँ हैं।
इन आरोपों के बीच ठाकरे का बयान राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग पर इस तरह के लगातार आरोप लोकतंत्र की विश्वसनीयता को चुनौती देते हैं। जबकि आयोग बार-बार साफ कर चुका है कि सभी प्रक्रियाएँ पारदर्शी और निष्पक्ष हैं, लेकिन विपक्ष संतुष्ट नहीं दिख रहा।
बीएमसी चुनाव को लेकर कांग्रेस-शिवसेना की अलग राह?
मुंबई में पत्रकारों ने जब उद्धव ठाकरे से पूछा कि कांग्रेस बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का विकल्प देख रही है, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया—
“वे अपनी पार्टी के लिए निर्णय ले सकते हैं और हम अपनी पार्टी के लिए। किसी पर दबाव नहीं है।”
यह बयान संकेत करता है कि महाराष्ट्र की विपक्षी एकजुटता में दरारें गहराती दिख रही हैं। बीएमसी— एशिया की सबसे धनी नगरपालिका—को लेकर पार्टियों में रणनीतिक मतभेद लंबे समय से मौजूद हैं।
“रीजनल पार्टियों को समाप्त करने की कोशिश” — ठाकरे का आरोप
उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह क्षेत्रीय दलों को समाप्त करने की रणनीति पर काम कर रही है।
उन्होंने कहा—
“वे रीजनल पार्टियों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें राष्ट्रगीत याद दिलाना चाहिए—‘पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा’। भारत विविधताओं का देश है, और यह विविधता क्षेत्रीय दलों से भी आता है।”
उनके अनुसार, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग आवाजों का होना भारतीय लोकतंत्र की ताकत है, और इन आवाज़ों को दबाना भविष्य में बड़े खतरे की ओर संकेत करेगा।
बिहार चुनाव: क्या भीड़ बनाम वोट का अंतर बढ़ रहा है?
बिहार चुनाव परिणामों ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा किया है कि क्या चुनावी रैलियों की भीड़ वास्तव में वोटों में बदलती है या नहीं?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कई बार भीड़ केवल उत्साह का संकेत होती है, लेकिन वोटिंग पैटर्न को उससे पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
विशेषज्ञ कहते हैं कि—
- कई लोग सिर्फ देखने के लिए रैली में जाते हैं,
- कई क्षेत्रों में जातिगत समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते हैं,
- संगठनात्मक मजबूती भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करती है,
- और कई बार लोग रैलियों में तो जाते हैं, लेकिन वोट दूसरे को देते हैं।
लेकिन विपक्ष यही सवाल उठा रहा है कि इतना बड़ा फर्क इस बार क्यों दिखाई दिया?
राजनीतिक परिदृश्य पर असर
उद्धव ठाकरे के बयान को महागठबंधन के अन्य दलों का भी समर्थन मिलने की संभावना है। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष पहले से ही ईवीएम से संबंधित चिंताएँ उठा रहा है।
वहीं, एनडीए इसे विपक्ष की “हार की हताशा” बताकर खारिज कर रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विपक्ष चुनाव आयोग पर अविश्वास जताता रहा, तो आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा और बड़ा बन सकता है।
बिहार चुनाव में महागठबंधन की खराब प्रदर्शन ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है और उद्धव ठाकरे के बयान ने इस बहस को और तेज कर दिया है।
उनके सवाल—
- “तेजस्वी की भीड़ असली थी या AI?”
- “जो जीता वही सिकंदर, लेकिन सिकंदर जीत कैसे रहा है?”
—अब राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय बन चुके हैं।
अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इन आरोपों पर क्या प्रतिक्रिया देता है और विपक्ष आगे किस रणनीति के साथ चुनावी लड़ाई को आगे बढ़ाता है।



