
नई दिल्ली। भारत सरकार ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत तैयार हो रहे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के नए परिसर को आधिकारिक रूप से ‘सेवा तीर्थ’ नाम देने का निर्णय लिया है। अब तक ‘एक्जीक्यूटिव एन्क्लेव’ के नाम से पहचान रखने वाला यह परिसर आने वाले समय में देश की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाइयों का केंद्र बनेगा। अधिकारियों के अनुसार परिसर का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है और अंतिम चरण की समीक्षा प्रक्रिया जारी है।
प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मंत्रिमंडल सचिवालय तक—कई प्रमुख इकाइयाँ होंगी ‘सेवा तीर्थ’ में
नया परिसर सिर्फ पीएमओ का विस्तारित संस्करण नहीं होगा, बल्कि इसमें भारत शासन के कई प्रमुख संस्थानों के अत्याधुनिक कार्यालय शामिल होंगे।
इनमें प्रमुख हैं—
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO)
- मंत्रिमंडल सचिवालय (Cabinet Secretariat)
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS)
- ‘इंडिया हाउस’ — जहां विदेशी गणमान्य व्यक्तियों, राष्ट्राध्यक्षों और उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ वार्ता आयोजित की जाएगी।
अधिकारियों के अनुसार ‘इंडिया हाउस’ को भारत की वैश्विक कूटनीति के नए प्रतीक के रूप में विकसित किया जा रहा है, जो भविष्य में उच्च-स्तरीय अंतरराष्ट्रीय संवाद और राजनयिक गतिविधियों का प्रमुख स्थल होगा।
‘सेवा तीर्थ’ नाम का अर्थ—सत्ता से सेवा की ओर बढ़ता भारत
अधिकारियों ने बताया कि यह नाम सिर्फ एक औपचारिक बदलाव नहीं, बल्कि शासन की बदलती धारा का प्रतीक है। उनके अनुसार भारत के सार्वजनिक संस्थान इस समय “शांत लेकिन गहन बदलाव” के दौर से गुजर रहे हैं, जहां शासन के मूल विचार में एक बड़ा परिवर्तन दर्ज किया जा रहा है।
उन्होंने कहा,
“शासन का विचार अब ‘सत्ता’ से ‘सेवा’ और ‘अधिकार’ से ‘उत्तरदायित्व’ की ओर बढ़ रहा है। यह परिवर्तन केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक भी है।”
सेंट्रल विस्टा के अधिकारियों ने बताया कि नया परिसर इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि यह एक आधुनिक, पारदर्शी, जवाबदेह और नागरिक-केंद्रित प्रशासन की कार्यसंस्कृति का प्रतीक बने।
सेंट्रल विस्टा परियोजना—नए शक्ति केंद्र का उभार
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना भारत सरकार की एक दीर्घकालिक और महत्वाकांक्षी पहल है, जिसका उद्देश्य राजधानी के प्रशासनिक बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना है। इस परियोजना में पहले ही नया संसद भवन निर्मित हो चुका है। अब नया पीएमओ परिसर, नए मंत्रालय भवन, राष्ट्रपति परिसर से जुड़ी इमारतों का पुनर्विकास और अन्य अधोसंरचनाओं पर कार्य चल रहा है।
‘सेवा तीर्थ’ इसी क्रम की अगली और अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी है। अधिकारी बताते हैं कि यहां कार्यस्थल का हर आयाम—from spatial planning to technological infrastructure—इस बात को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है कि सरकारी तंत्र अधिक कुशल, त्वरित और नागरिक-केंद्रित बने।
राज्यपाल आवासों का भी नाम बदला जाएगा—अब ‘लोक भवन’
प्रधानमंत्री कार्यालय के परिसर के नाम बदलने के साथ ही राज्यों के राज्यपाल निवास ‘राजभवन’ को भी नया नाम मिलने जा रहा है। अधिकारियों ने पुष्टि की है कि अब इन्हें ‘लोक भवन’ के नाम से जाना जाएगा।
इस नाम परिवर्तन का उद्देश्य, अधिकारियों के अनुसार, संविधानिक पदों और भवनों को जनसेवा की भावना से जोड़ना है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शासन व्यवस्था को पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और जनहित से जोड़ने की दिशा में निरंतर सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं।
नामों में बदलाव क्यों?—सरकार ने बताया कारण
अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि शासन के बुनियादी विचार में आ रहे परिवर्तन को प्रदर्शित करता है।
उन्होंने कहा—
“हर नाम, हर इमारत और हर प्रतीक अब एक सरल विचार को व्यक्त कर रहा है—सरकार सत्ता का केंद्र नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम है।”
सरकार के अनुसार ‘सेवा तीर्थ’ और ‘लोक भवन’ जैसी नामावली भारतीय लोकतंत्र में कर्तव्य, सेवा, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भावना को मजबूत करेगी। साथ ही यह भी कहा गया कि यह परिवर्तन भारत की वैचारिक प्रतिबद्धता और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब है, जहां सत्ता जनता के प्रति जवाबदेह है, न कि स्वयं में लक्ष्य।
नया पीएमओ—भविष्य की प्रशासनिक चुनौतियों के लिए तैयार
अधिकारियों के मुताबिक ‘सेवा तीर्थ’ की वास्तुकला, सुरक्षा व्यवस्था और कार्यस्थल आधुनिक प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त है।
यहाँ अत्याधुनिक इंटेलिजेंस नेटवर्किंग, डिजिटल वर्कफ़्लो सिस्टम, सुरक्षित संचार व्यवस्था और एकीकृत कमांड सेंटर स्थापित किया जा रहा है।
नया परिसर 21वीं सदी के भारत की उन आकांक्षाओं को दर्शाता है, जहाँ प्रशासन आधुनिक, तकनीकी रूप से संपन्न और वैश्विक मानकों के अनुरूप हो।
निष्कर्ष
सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत पीएमओ के नए परिसर को ‘सेवा तीर्थ’ नाम देने का निर्णय सरकार की उस व्यापक दृष्टि का हिस्सा है, जिसका मकसद भारत के शासन ढांचे को आधुनिक, पारदर्शी और जनता-केंद्रित बनाना है। नाम परिवर्तन के साथ ही भारत प्रशासनिक संरचना के स्तर पर एक नए युग की ओर बढ़ता प्रतीत हो रहा है—जहाँ शासन का केंद्र बिंदु शक्ति नहीं, बल्कि नागरिक सेवा है।



