नई दिल्ली। भारत में आरक्षण नीति हमेशा से राजनीतिक बहस, सामाजिक विमर्श और संवैधानिक व्याख्या का केंद्र रही है। शिक्षा से लेकर नौकरी और स्थानीय निकाय चुनावों में OBC कोटे को लेकर समय-समय पर नए विवाद सामने आते रहे हैं। इसी श्रृंखला में महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसने पूरे राजनीतिक परिदृश्य में नई हलचल पैदा कर दी है।
सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी यह स्पष्ट संकेत है कि संविधान द्वारा निर्धारित 50% की सीमा को तोड़ने की कोशिशों को अदालत स्वीकार नहीं करेगी। न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को फटकारते हुए कहा कि उसने सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों की गलत व्याख्या कर ली और इस बहाने कुल आरक्षण को बढ़ाने का प्रयास किया।
“हमने कभी 50% से अधिक आरक्षण की इजाजत नहीं दी” — सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
“हमने कभी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की इजाजत नहीं दी है। आरक्षण 50% से ऊपर कैसे जा सकता है? महाराष्ट्र ने OBC आरक्षण पर हमारे आदेश का गलत अर्थ निकाला है।”
यह टिप्पणी तब आई जब अदालत महाराष्ट्र सरकार की उस दलील पर विचार कर रही थी, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों में OBC के लिए अतिरिक्त आरक्षण देने की आवश्यकता बताई गई थी। अदालत ने अपने पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की अवधारणा महत्वपूर्ण है, लेकिन यह संवैधानिक सीमाओं के भीतर ही संभव है।
महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों का विवाद क्या है?
महाराष्ट्र में 2024–25 के दौरान स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से पहले OBC आरक्षण को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ। राज्य सरकार ने स्थानीय निकायों में OBC श्रेणी के लिए अतिरिक्त आरक्षण प्रस्तावित किया था।
लेकिन विपक्षी दलों और कई याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यदि यह कोटा लागू होता है, तो कुल आरक्षण 50% की सीमा से अधिक हो जाएगा, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानकों के खिलाफ है।
मामला अदालत पहुंचा और सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में कहा कि जब तक “ट्रिपल टेस्ट” पूरा नहीं होता, तब तक OBC आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।
ट्रिपल टेस्ट में शामिल हैं:
- प्रत्येक स्थानीय निकाय में OBC की वास्तविक जनसंख्या का आंकलन,
- एनआईसी (Dedicated Commission) द्वारा प्रभाव अध्ययन,
- आरक्षण सीमित रखते हुए कुल कोटे को 50% से नीचे रखना।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि महाराष्ट्र सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के लिए जरूरी आंकड़े तैयार किए बिना मनमाने तरीके से OBC आरक्षण लागू कर दिया।
सॉलिसिटर जनरल का तर्क, लेकिन अदालत सख्त
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि चुनाव प्रक्रिया बहुत आगे बढ़ चुकी है, इसलिए चुनाव रोकना उचित नहीं होगा।
उन्होंने कहा,
“नामांकन प्रक्रिया अगले दिन से शुरू होने वाली है। इस चरण पर किसी भी तरह का हस्तक्षेप चुनावी प्रक्रिया को बाधित करेगा।”
लेकिन अदालत इस दलील से असहमत दिखी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
“हम चुनाव रोकना नहीं चाहते। लेकिन संविधान की सीमा तोड़ना गलत है। यदि आरक्षण 50% से ऊपर जाता है, तो यह संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन होगा।”
अदालत की यह टिप्पणी स्पष्ट कर देती है कि चुनावी प्रक्रिया की जल्दबाज़ी संवैधानिक सिद्धांतों पर हावी नहीं हो सकती।
50% सीमा पर सुप्रीम कोर्ट का पुराना रुख
आरक्षण को 50% तक सीमित करने का सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (मंडल आयोग) मामले में स्थापित किया था।
इस फैसले में अदालत ने कहा था कि:
- कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए,
- विशेष परिस्थितियों में ही यह सीमा पार की जा सकती है,
- और ऐसी परिस्थितियों को “असाधारण” माना जाएगा, न कि सामान्य।
महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने इस सीमा को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा 50% सीमा को बरकरार रखा। 2021 में मराठा आरक्षण मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि राज्यों के पास 50% सीमा तोड़ने का अधिकार नहीं है।
OBC राजनीति और चुनावी गणित पर प्रभाव
महाराष्ट्र में OBC वोट बैंक राजनीतिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
- स्थानीय निकायों में यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है,
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में OBC समुदाय की बड़ी उपस्थिति है,
- चुनावी रणनीतियों में OBC आरक्षण एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
लेकिन अदालत की टिप्पणी के बाद राज्य सरकार के सामने यह स्पष्ट संकेत है कि बिना उचित डेटा और ट्रिपल टेस्ट के OBC को आरक्षण देना संभव नहीं होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के समीकरण बदल सकता है। विपक्ष पहले से ही सरकार पर OBC समुदाय को भ्रमित करने के आरोप लगा रहा है।
क्या चुनाव टल सकते हैं?
अदालत ने अभी चुनाव टालने का कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया है, लेकिन उसकी टिप्पणी का संकेत है कि यदि आवश्यक हुआ तो अदालत चुनावी कार्यक्रम में हस्तक्षेप करने में हिचकिचाएगी नहीं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि 50% सीमा टूटती है, तो चुनाव की अधिसूचना भी चुनौती के दायरे में आ सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल महाराष्ट्र बल्कि देशभर के राज्यों के लिए महत्वपूर्ण संदेश है। यह फैसला पुनः स्पष्ट करता है कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक संतुलन दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
राज्य सरकारों को राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर ट्रिपल टेस्ट, डेटा संग्रहण और संवैधानिक सीमाओं का पालन करते हुए आरक्षण नीति बनानी होगी। अदालत की टिप्पणी से महाराष्ट्र सरकार पर अब दोहरी चुनौती है—
- चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना,
- साथ ही 50% सीमा के भीतर रहते हुए OBC के लिए न्यायसंगत व्यवस्था करना।
आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश से यह तय होगा कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव अपने निर्धारित समय पर होंगे या इसमें कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।



