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नई दिल्ली : वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू, मुस्लिम पक्ष ने रखी संवैधानिक अधिकारों की दलीलें

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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऐतिहासिक सुनवाई की शुरुआत हुई। याचिकाएं मुस्लिम समुदाय से जुड़े संगठनों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दाखिल की गई हैं। इनका कहना है कि वक्फ अधिनियम संविधान के मौलिक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ है। मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन और अन्य ने जोरदार पैरवी की।

कपिल सिब्बल की दलीलें:
सिब्बल ने कोर्ट के समक्ष कहा कि वक्फ बोर्ड में पहले सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, जैसा कि हिंदू और सिख धार्मिक बोर्डों में होता है। लेकिन अब संशोधित कानून में गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में स्थान देने का प्रावधान किया गया है, जो अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि नए प्रावधानों के अनुसार कोई व्यक्ति जो पांच साल से कम समय से मुस्लिम धर्म में है, वह वक्फ में दान नहीं कर सकता। सिब्बल ने इसे व्यक्ति की संपत्ति के अधिकार में हस्तक्षेप करार दिया।

सिंघवी की पैरवी:
अभिषेक मनु सिंघवी ने नए संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों पर तत्काल रोक लगाने की मांग की। उनका कहना था कि यह कोई सामान्य मामला नहीं, बल्कि संवैधानिक प्रभाव वाला मामला है और जब तक विस्तृत सुनवाई न हो, तब तक इन प्रावधानों को लागू न किया जाए। हालांकि कोर्ट ने फिलहाल स्टे देने से इनकार किया लेकिन आगे विचार करने का संकेत दिया।

“संसद की जमीन भी वक्फ?”
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने एक रोचक टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ लोगों का दावा है कि संसद की जमीन भी वक्फ संपत्ति है। इस पर मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने स्पष्ट किया कि सभी वक्फ संपत्तियों को गलत नहीं कहा जा सकता, लेकिन कुछ मामलों को लेकर गंभीर चिंताएं जरूर हैं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट को भेजी जा सकती है।

वक्फ डीड और ऐतिहासिक संपत्तियां:
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि सदियों पुरानी वक्फ संपत्तियों के लिए अब दस्तावेज मांगना व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा कि कई संपत्तियां 300 साल से भी अधिक पुरानी हैं, जिनकी वक्फ डीड अब उपलब्ध नहीं हो सकती।

राम जन्मभूमि का उल्लेख:
सिब्बल ने राम जन्मभूमि मामले का उदाहरण देते हुए धारा 36 का हवाला दिया और कहा कि अगर कोई संपत्ति का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए करता है तो उसे पंजीकरण कराने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए।

अनुच्छेद 31 और संपत्ति का अधिकार:
वरिष्ठ वकील राजीव शकधर ने कहा कि संविधान से अनुच्छेद 31 को हटाया गया, जिससे संपत्ति के अधिकार पर सवाल उठने लगे हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पहचान के लिए अब 5 साल की शर्त रखी जा रही है, जो भेदभावपूर्ण है।

धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप:
राजीव धवन ने तर्क दिया कि वक्फ प्रणाली इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा है और इस पर किसी भी तरह का हस्तक्षेप धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि धर्म में दान और परोपकार की व्यवस्था आवश्यक तत्व है और इस पर कानून बनाना संवैधानिक मूल्यों को ठेस पहुंचा सकता है।

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