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दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर किरेन रीजीजू की टिप्पणी से भड़का चीन, भारत को चेताया

नई दिल्ली/बीजिंग |भारत के केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू द्वारा दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर दिए गए बयान पर चीन ने तीखी आपत्ति जताई है। बीजिंग ने भारत को चेताया है कि वह तिब्बत से जुड़े मामलों में “सावधानी” बरते और चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे”, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में और तनाव न आए।

चीन ने जताई आपत्ति, भारत को दी चेतावनी

चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता में कहा कि,

“भारत को 14वें दलाई लामा की ‘चीन विरोधी और अलगाववादी प्रकृति’ को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। शिजांग (तिब्बत) से जुड़े मुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचाने वाले बयानों और गतिविधियों से बचना चाहिए।”

माओ ने यह भी दोहराया कि दलाई लामा और पंचेन लामा के उत्तराधिकारी का चयन चीन की पारंपरिक प्रक्रिया, धार्मिक अनुष्ठानों, और केंद्र सरकार की स्वीकृति के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा 14वें दलाई लामा का चयन भी इसी प्रक्रिया के तहत किया गया था।

क्या कहा था किरेन रीजीजू ने?

अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने गुरुवार को कहा था कि,

“अगले दलाई लामा के चयन का निर्णय केवल दलाई लामा और उनके संस्थान का अधिकार है। इसमें किसी अन्य की भूमिका नहीं होनी चाहिए।”

यह बयान ऐसे समय पर आया है जब दलाई लामा स्वयं भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके उत्तराधिकारी का चयन तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार ही होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत।

भारत-चीन संबंधों पर फिर छाया तनाव

पूर्वी लद्दाख में वर्ष 2020 में हुई सैन्य झड़पों के बाद भारत और चीन के संबंधों में तनाव बरकरार है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गतिरोध अब तक पूरी तरह से सुलझा नहीं है। ऐसे में चीन का यह बयान उन तमाम प्रयासों को प्रभावित कर सकता है जो दोनों देशों द्वारा संबंधों को सामान्य बनाने के लिए किए जा रहे हैं।

संपादकीय दृष्टिकोण:

चीन लगातार दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध परंपरा के मामलों पर अपना प्रभुत्व कायम रखने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत में यह विषय धार्मिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार से जुड़ा माना जाता है। रीजीजू का बयान जहां भारत की पारंपरिक नीति की पुष्टि करता है, वहीं चीन की प्रतिक्रिया बताती है कि तिब्बत अब भी दोनों देशों के बीच एक संवेदनशील और असहज कूटनीतिक मुद्दा बना हुआ है.

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