
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट आज उस अहम याचिका पर अपना आदेश सुनाएगा, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा है। मामला है आवारा कुत्तों का, जिन्हें लेकर पिछले कई सालों से समाज में बहस चल रही है। 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से ‘डॉग शेल्टर्स’ में भेजने का निर्देश दिया था। इस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए विशेष पीठ (जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन. वी. अंजारिया) ने 14 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो अब 22 अगस्त को सुनाया जाएगा।
आदेश पर रोक क्यों मांगी गई?
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 11 अगस्त का आदेश न केवल व्यावहारिक रूप से असंभव है बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवित प्राणियों के जीवन के अधिकार) और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन भी करता है। उनका तर्क है कि लाखों आवारा कुत्तों को अचानक पकड़कर शेल्टर होम्स में रखना न तो प्रशासन के लिए संभव है और न ही पशुओं के लिए मानवीय।
सुनवाई में गूंजी 10 बड़ी दलीलें
सुप्रीम कोर्ट में चली लंबी बहस के दौरान दोनों पक्षों से कई अहम दलीलें सामने आईं। इनमें प्रमुख रूप से ये 10 तर्क उभरे:
- मानव सुरक्षा बनाम पशु अधिकार – समर्थक पक्ष ने कहा कि आवारा कुत्तों के हमलों से बच्चों और बुजुर्गों की जान खतरे में है, इसलिए मानव जीवन की सुरक्षा पहले होनी चाहिए।
- संविधान का अनुच्छेद 21 – याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि कुत्ते भी “जीवित प्राणी” हैं और उन्हें भी जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार है।
- रेबीज़ का खतरा – सरकारी पक्ष ने बताया कि हर साल हजारों लोग कुत्तों के काटने से रेबीज़ का शिकार होते हैं।
- शेल्टर क्षमता – विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि देश में वर्तमान में इतने बड़े पैमाने पर शेल्टर उपलब्ध ही नहीं हैं।
- टिकाऊ समाधान की जरूरत – सिर्फ पकड़कर हटाना अस्थायी समाधान है; स्थायी रास्ता है “ABC (Animal Birth Control)” और टीकाकरण।
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 – इस कानून के तहत जानवरों को अनावश्यक पीड़ा देना प्रतिबंधित है।
- स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी – कोर्ट ने कई बार कहा कि नगर निगम और स्थानीय निकाय अपने दायित्वों में विफल रहे हैं।
- सामाजिक संगठनों का रोल – एनजीओ ने दलील दी कि अचानक हटाने से कई कुत्तों की मौत हो सकती है, इसलिए योजना चरणबद्ध हो।
- वैश्विक मॉडल – अदालत में यह भी रखा गया कि यूरोप और एशिया के कई देशों ने नसबंदी और टीकाकरण से समस्या पर काबू पाया है।
- जनभावनाएं – कुछ पक्षकारों ने कहा कि कुत्ते ‘समुदाय का हिस्सा’ बन चुके हैं और उन्हें जबरन हटाना समाज में टकराव पैदा कर सकता है।
अदालत का रुख और अगली चुनौती
सुनवाई के दौरान बेंच ने कई बार कहा कि “मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है, लेकिन पशुओं के अधिकारों को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।” अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से यह भी पूछा कि अब तक कितने शेल्टर बने और कितने कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण हुआ।
जनता की नजरें फैसले पर
दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि पूरे देश की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर टिकी हैं। क्योंकि यह फैसला केवल स्थानीय समस्या का हल नहीं देगा, बल्कि देशभर में पशु-मानव सहअस्तित्व की दिशा तय करेगा।
आवारा कुत्तों का मुद्दा केवल “सड़क पर सुरक्षा” का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत के संविधान, कानून, प्रशासन और मानवीय संवेदनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला आने वाले वर्षों के लिए नजीर बन सकता है कि भारत किस तरह अपने नागरिकों की सुरक्षा और पशुओं के अधिकारों के बीच संतुलन साधता है।