
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के दूरसंचार विभाग द्वारा मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं को सभी नए स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ ऐप प्री-इंस्टॉल करने के निर्देश पर देश की राजनीति में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने इसे नागरिकों की निजता पर हमला बताते हुए इस आदेश को “असंवैधानिक, दमनकारी और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध” बताया है।
इस मुद्दे पर सोमवार को कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र सरकार पर “बिग ब्रदर बनने” का आरोप लगाया और संबंधित निर्देश को तत्काल वापस लेने की मांग की।
केसी वेणुगोपाल का हमला: “निजता हमारा मौलिक अधिकार, सरकार नहीं बन सकती बिग ब्रदर”
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि किसी भी सरकारी ऐप को बाध्यकारी रूप से मोबाइल में शामिल करना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जिसमें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार शामिल है।
उन्होंने लिखा—
“‘बिग ब्रदर’ हम पर नजर नहीं रख सकता। दूरसंचार विभाग का यह निर्देश असंवैधानिक है। निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अभिन्न अंग है।”
वेणुगोपाल का स्पष्ट आरोप है कि संचार साथी ऐप को मोबाइल में पहले से डालकर तथा उसे हटाने का विकल्प न देकर सरकार नागरिकों पर व्यापक निगरानी तंत्र खड़ा करना चाहती है।
कांग्रेस का दावा—“यह सरकारी ऐप नागरिकों पर निगरानी का खतरनाक औज़ार”
कांग्रेस का कहना है कि ‘संचार साथी’ जैसा अन-रिमूवेबल सरकारी ऐप हर नागरिक की गतिविधियों, बातचीत, लोकेशन और डिजिटल व्यवहार पर नजर रखने का रास्ता खोलता है।
वेणुगोपाल ने आगे लिखा—
“पहले से मौजूद सरकारी ऐप, जिसे हटाया नहीं जा सकता, हर भारतीय पर नजर रखने का दमनकारी उपकरण है। यह हर नागरिक की हर गतिविधि, बातचीत और फैसले पर निगरानी का जरिया है।”
कांग्रेस ने इन निर्देशों को “नागरिक अधिकारों पर लगातार हमले की लंबी श्रृंखला” का हिस्सा बताया और कहा कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की यह कोशिश अब किसी भी हालत में नहीं चलेगी।
कांग्रेस की मांग—“निर्देश तुरंत वापस लिया जाए”
अपनी पोस्ट में कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने साफ कहा कि पार्टी इस आदेश का सख़्त विरोध करती है और इसकी तत्काल वापसी की मांग करती है।
उन्होंने कहा—
“हम इस निर्देश का विरोध करते हैं और इसे तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं।”
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में डिजिटल धोखाधड़ी रोकना चाहती है, तो ऐसे किसी ऐप को अनिवार्य बनाना समाधान नहीं है, बल्कि यह गोपनीयता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
क्या है सरकार का आदेश?
दूरसंचार विभाग ने हाल में मोबाइल फोन निर्माताओं और आयातकों को अनिवार्य निर्देश जारी किया है कि:
- भारत में बिकने वाले सभी नए मोबाइल हैंडसेट
- चाहे वह किसी भी ब्रांड, सेगमेंट या मूल्य श्रेणी के हों
- उनमें ‘संचार साथी’ ऐप पहले से इंस्टॉल होना चाहिए
यह ऐप साइबर फ्रॉड, मोबाइल चोरी, फर्जी सिम कार्ड और डिजिटल ठगी की रिपोर्टिंग के लिए बनाया गया है।
सरकार का दावा है कि इस ऐप के माध्यम से उपभोक्ता:
- चोरी हुए मोबाइल की शिकायत,
- फर्जी सिम की जानकारी,
- धोखाधड़ी की रिपोर्ट
- और कुछ मामलों में डिवाइस ट्रैकिंग
जैसे फीचर्स का लाभ उठा सकेंगे।
डेपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) के अनुसार, इसका उद्देश्य “डिजिटल सुरक्षा को सुदृढ़ करना” है और उपभोक्ताओं को एक केंद्रीय प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध कराना है।
हालाँकि, ऐप को अनइंस्टॉल करने का विकल्प नहीं होने से इसे लेकर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं।
गोपनीयता और डिजिटल निगरानी पर छिड़ी बहस
इस निर्देश के बाद तकनीकी विशेषज्ञ और डिजिटल राइट्स संगठनों ने भी सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं।
साइबर लॉ के जानकारों के अनुसार, किसी भी सरकारी ऐप को बाध्यकारी बनाना अपने आप में समस्या है, क्योंकि:
- उपभोक्ता को अपने डिवाइस पर क्या रखना है, इसका अधिकार होना चाहिए
- कोई भी अनरिमूवेबल ऐप डेटा संग्रह का जोखिम बढ़ा सकता है
- सरकार पर पहले भी निगरानी और डेटा सुरक्षा को लेकर सवाल उठ चुके हैं
- कई देशों में प्री-इंस्टॉल्ड और अन-रिमूवेबल ऐप्स के खिलाफ कानून हैं
तकनीकी विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यदि ऐप के माध्यम से डिवाइस से लगातार डेटा एक्सेस होता है, तो यह गोपनीयता का उल्लंघन माना जाएगा।
कांग्रेस बनाम केंद्र: एक और बड़ा राजनीतिक टकराव
कांग्रेस ने इस मुद्दे को सीधे-सीधे लोकतांत्रिक अधिकारों से जोड़कर केंद्र सरकार पर करारा हमला बोला है।
हाल के वर्षों में देश में:
- आधार डाटा सुरक्षा,
- पेगासस स्पाइवेयर विवाद,
- इंटरनेट निगरानी,
- सोशल मीडिया कंट्रोल,
- और डेटा प्रोटेक्शन कानूनों
को लेकर व्यापक बहसें चलती रही हैं। ऐसे में ‘संचार साथी’ ऐप को लेकर जारी यह निर्देश विपक्ष के लिए सरकार पर हमला करने का नया मौका लेकर आया है।
कांग्रेस इसे नागरिक स्वतंत्रता और गोपनीयता पर सीधा हमला बता रही है, जबकि सरकार इसे डिजिटल सुरक्षा का अनिवार्य कदम कह रही है—दोनों पक्षों की यह तकरार आगे और तेज होने की पूरी संभावना है।
आगे सरकार क्या करेगी?
सरकार ने अभी इस राजनीतिक विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। DoT की ओर से कहा गया है कि ऐप का उद्देश्य केवल “उपभोक्ता सुरक्षा बढ़ाना” है और इसमें कोई निगरानी सुविधा नहीं है। परंतु कांग्रेस, डिजिटल अधिकार समूह और विपक्षी दल इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं और इस मुद्दे को संसद सत्र में भी उठाने की तैयारी कर रहे हैं।



