
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आगामी 13 अक्टूबर को उस जनहित याचिका पर सुनवाई करने जा रहा है, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में कथित बड़े पैमाने पर हेरफेर की जांच की मांग की गई है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि मतदाता सूची में डुप्लिकेट नाम, फर्जी पहचान, और अवैध प्रविष्टियां शामिल की गईं, जिससे वैध मतों का मूल्य कमजोर हुआ और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगा।
याचिका कांग्रेस से जुड़े अधिवक्ता रोहित पांडे ने दायर की है, जिन्होंने कोर्ट से यह भी आग्रह किया है कि जब तक अदालत इस मामले में निर्देश नहीं देती और मतदाता सूची का स्वतंत्र ऑडिट पूरा नहीं हो जाता, तब तक मतदाता सूची में किसी भी प्रकार का संशोधन या अंतिम रूप नहीं दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस केस की tentative listing 13 अक्टूबर की बताई गई है।
राहुल गांधी के आरोप बने जांच की पृष्ठभूमि
इस जनहित याचिका की जड़ में कांग्रेस नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी की 7 अगस्त को की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि बेंगलुरु सेंट्रल के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ है। राहुल गांधी ने कहा था कि “लोकतंत्र की आत्मा तभी बची रह सकती है जब हर नागरिक का वोट समान मूल्य रखे, लेकिन अगर मतदाता सूची ही दूषित हो जाए तो यह मूल सिद्धांत खतरे में पड़ जाता है।”
याचिकाकर्ता रोहित पांडे का कहना है कि उन्होंने राहुल गांधी के दावों का स्वतंत्र रूप से सत्यापन किया और प्राथमिक स्तर पर पर्याप्त प्रमाण पाए जो कथित गड़बड़ियों की ओर संकेत करते हैं।
याचिका में क्या-क्या आरोप लगाए गए हैं
दायर याचिका के अनुसार, बेंगलुरु सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में 40,009 अवैध मतदाता और 10,452 डुप्लिकेट प्रविष्टियां पाई गईं। इसमें दावा किया गया है कि कई मतदाताओं के EPIC (Elector’s Photo Identity Card) नंबर दो या अधिक राज्यों में पाए गए, जबकि EPIC नंबर को अद्वितीय (unique) माना जाता है।
कुछ मामलों में पाया गया कि मतदाताओं के घर के पते और पिता के नाम समान थे, जबकि वे अलग-अलग मतदाता के रूप में दर्ज थे। वहीं एक मतदान केंद्र में 80 से अधिक मतदाताओं का एक ही छोटे से मकान का पता दर्ज पाया गया। याचिकाकर्ता के अनुसार, ये तथ्य मतदाता सूची की प्रामाणिकता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं और फर्जी मतदान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
याचिका की मुख्य मांगें
रोहित पांडे ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि:
- पूर्व जज की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए, जो पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करे।
- भारत के चुनाव आयोग (ECI) को यह निर्देश दिया जाए कि वह मतदाता सूची की तैयारी, रखरखाव और प्रकाशन में पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले दिशा-निर्देश जारी करे।
- मतदाता सूची में डुप्लिकेट या काल्पनिक प्रविष्टियों का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए एक स्वतंत्र और तकनीकी रूप से उन्नत प्रणाली तैयार की जाए।
- जब तक अदालत के निर्देशों का पालन नहीं होता और स्वतंत्र ऑडिट पूरा नहीं होता, तब तक मतदाता सूची में किसी भी तरह का संशोधन या फाइनलाइजेशन न किया जाए।
लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप
याचिका में कहा गया है कि मतदाता सूची में इस प्रकार की हेराफेरी भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का सीधा उल्लंघन करती है—
- अनुच्छेद 326, जो सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है,
- अनुच्छेद 324, जो चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का अधिकार देता है,
- तथा अनुच्छेद 14 और 21, जो नागरिकों को समानता और जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देते हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यदि मतदाता सूची में इतनी बड़ी हेराफेरी सिद्ध होती है, तो यह “एक व्यक्ति, एक वोट” के संवैधानिक सिद्धांत की नींव को हिला देगी। इससे वैध मतों का मूल्य घटेगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ेगा।
चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल
याचिका में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि आयोग को मतदाता सूची से संबंधित सभी प्रक्रियाओं में सार्वजनिक पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही, सुझाव दिया गया है कि तकनीकी ऑडिट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित सत्यापन, और नागरिक भागीदारी तंत्र जैसे उपाय अपनाए जाएं ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों की संभावना समाप्त हो सके।
संभावित असर और राजनीतिक महत्व
कानूनी जानकारों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जांच के आदेश देता है, तो यह न केवल कर्नाटक बल्कि देशभर के निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह मामला मतदाता सूची में पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को लेकर एक संवेदनशील और नज़ीर स्थापित करने वाला केस साबित हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक इसे विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों के लिए राजनीतिक रूप से अहम मोड़ मान रहे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों का मुद्दा जनता के विश्वास से सीधा जुड़ा है।
13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक सुनवाई के बाद यह तय होगा कि क्या इस मामले में विशेष जांच दल गठित किया जाएगा या अदालत चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगेगी। अगर अदालत ने SIT गठन को मंजूरी दी, तो यह भारतीय चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को मजबूती देने वाला ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।
यह मामला सिर्फ एक क्षेत्रीय विवाद नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की साख से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है। मतदाता सूची की शुद्धता पर सवाल सिर्फ एक चुनावी प्रक्रिया का मामला नहीं, बल्कि नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा का प्रश्न है। अब सबकी निगाहें 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं।