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New Delhi : अब कानून अंधा नहीं रहेगा कानून की आंखों पर बंधी पट्टी हट चुकी है.

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कानून अंधा होगा. यह कहने के पीछे का कारण न्यायालयों में न्याय की देवी की आंखों में बंधी पट्टी थी. इस मूर्ती को पूरी दुनिया में न्याय की देवी यानी लेडी जस्टिस के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि ये मूर्ती पूरी दुनिया में न्याय व्यवस्था को दर्शाती है. न्याय की देवी को मिस्र और यूनान का कल्चर माना जाता है.न्याय की देवी मिस्र की देवी माट और यूनान की देवी थेमिस और डाइक से प्रेरित हैं.

मिस्र में देवी माट को संतुलन, समरसता, न्याय, कानून और व्यवस्था का प्रतीक माना जाता है. जबकि यूनान की देवी थेमिस सच्चाई, कानून और व्यवस्था की प्रतीक हैं और डाइक असली न्याय और नैतिक व्यवस्था को दर्शाती हैं. 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर पहली बार इस मूर्ति को भारत लाया था. यह अफसर एक न्यायायिक अधिकारी था.

18वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा. भारत की आजादी के बाद भी इस प्रतीक को अब तक जारी रखा गया.

इस पट्टी के जरिए यह संकेत दिया जाता था कि कानून की नजर में कोई छोटा-बड़ा या अपना-पराया नहीं होता. वो सबके लिए एक है. साथ ही न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और एक हाथ में तलवार होती थी. इस संकेत का मकसद ये था कि अपराध को पहले तराजू पर तौला जाता है और उसके बाद फिर तलवार की तरह सख्त फैसला होता है.

अब ये दौर खत्म हो गया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़  ने सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में ऐसी स्टेच्यू लगाई है, जिसमें न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं है. तराजू दाएं हाथ में अब भी है, लेकिन बाएं हाथ में तलवार की जगह अब संविधान आ गया है. सीजेआई का मानना है कि अंग्रेजी विरासत से अब आगे निकलना चाहिए. कानून कभी अंधा नहीं होता. वो सबको समान रूप से देखता है.तलवार हिंसा का प्रतीक हैं, जबकि अदालतें हिंसा नहीं बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं. इसलिए तलवार की जगह अब संविधान होगा. तराजू पर तौलना सही है, इसलिए वो बरकरार रखा गया है.

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