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कर्तव्य पथ प्रदर्शन मामला: दिल्ली की अदालत ने 10 आरोपियों को जमानत दी, एक की याचिका खारिज, एक पर निर्णय बुधवार तक स्थगित

नई दिल्ली। कर्तव्य पथ पर हाल में हुए एक विवादित विरोध प्रदर्शन के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कुल 10 आरोपियों को जमानत प्रदान कर दी। इन प्रदर्शनकारियों पर आरोप था कि वे कर्तव्य पथ पर आयोजित एक प्रदर्शन के दौरान मारे गए माओवादी कमांडर मड़वी हिडमा के समर्थन में नारे लगाने में शामिल थे। मामले में कुल 12 लोगों की जमानत याचिकाओं पर अदालत ने सुनवाई की। अदालत ने जहाँ एक आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया, वहीं एक अन्य आरोपी पर निर्णय बुधवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया।

यह मामला न केवल कानून-व्यवस्था से जुड़ा है, बल्कि देश की सुरक्षा, लोकतांत्रिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की सीमाओं पर भी व्यापक बहस छेड़ता है। अदालत का यह आदेश उसी संवेदनशील बहस के बीच आया है, जहाँ राष्ट्रीय राजधानी में हुए इस प्रदर्शन ने कानून-प्रवर्तन एजेंसियों से लेकर राजनीतिक और कानूनी हलकों तक चर्चा को जन्म दिया था।


क्या था मामला: कर्तव्य पथ पर विवादित प्रदर्शन

दिल्ली के प्रतिष्ठित कर्तव्य पथ क्षेत्र में बीते दिनों कुछ लोगों ने प्रदर्शन किया था, जिसके दौरान कथित रूप से ऐसे नारे लगाए गए जो माओवादी नेता मड़वी हिडमा के समर्थन में बताए गए। हिडमा छत्तीसगढ़ और आस-पास के नक्सल प्रभावित इलाकों में सबसे कुख्यात और वांछित माओवादी कमांडरों में से एक माना जाता था और कई बड़ी उग्रवादी घटनाओं का मास्टरमाइंड भी रहा है। सुरक्षा बलों के साथ एक मुठभेड़ में उसके मारे जाने की पुष्टि के बाद देशभर में इसकी खबर चर्चा में रही।

अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि प्रदर्शनकारियों ने ऐसी गतिविधियों में हिस्सा लिया जो “राष्ट्र-विरोधी नारेबाजी और उग्रवादी विचारधारा के समर्थन” की श्रेणी में आती हैं। इसी आधार पर दिल्ली पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के साथ-साथ सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने का आरोप भी लगाया गया था।


अदालत का सोमवार का आदेश: 10 को राहत, 1 की याचिका खारिज

मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्य, पुलिस डायरी, गिरफ्तारी की परिस्थितियों और अभियोजन के प्राथमिक तथ्यों की समीक्षा के आधार पर वर्तमान स्थिति में 10 आरोपियों को नियमित जमानत दी जा सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जांच जारी रहने के बावजूद अभियुक्तों का ट्रायल के दौरान जेल में बने रहना आवश्यक नहीं है, बशर्ते वे जांच में सहयोग करें और शर्तों का पालन करें।

अदालत द्वारा दिए गए प्रमुख निर्देशों में शामिल हैं—

  • आरोपियों को नियमित अंतराल पर जांच अधिकारी के सामने उपस्थित रहना होगा।
  • वे किसी भी प्रकार से साक्ष्यों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे।
  • वे सोशल मीडिया या सार्वजनिक मंचों पर इस घटना को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जो जांच को प्रभावित कर सकती हो।
  • विदेश यात्रा के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक होगी।

एक आरोपी को राहत से इनकार: अदालत ने क्या कहा

बारह में से एक आरोपी की जमानत याचिका अदालत ने खारिज कर दी। इस युवक पर अभियोजन ने सबसे गंभीर आरोप लगाए थे कि वही कथित नारेबाजी का “मुख्य उकसाने वाला” था। पुलिस के अनुसार, उसकी सोशल मीडिया गतिविधियों और फोन डेटा से भी कुछ प्रारंभिक संकेत मिले हैं, जिन्हें अदालत ने “गंभीरता से विचार योग्य” माना।

अदालत ने कहा कि वर्तमान समय में उपलब्ध सामग्री के आधार पर उसे जमानत देने से जांच प्रभावित होने की आशंका है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय अंतिम नहीं है, और आरोप तय होने की प्रक्रिया आगे स्थिति बदल सकती है।


एक अन्य आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला बुधवार तक सुरक्षित

एक अन्य आरोपी के मामले में अदालत ने कहा कि अभियोजन और बचाव दोनों पक्षों की दलीलों पर विस्तृत सुनवाई आवश्यक है। इसके बाद अदालत ने उसकी जमानत याचिका पर निर्णय बुधवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया। उम्मीद है कि पुलिस द्वारा प्रस्तुत अतिरिक्त दस्तावेज और आरोपी की पिछली गतिविधियों की रिपोर्ट का अध्ययन कर अदालत इस पर अंतिम फैसला देगी।


अभियोजन का पक्ष: “नक्सली विचारधारा के समर्थन की कोशिश”

अभियोजन पक्ष ने अदालत में दावा किया कि यह प्रदर्शन “साधारण प्रदर्शन” नहीं था, बल्कि इसमें कुछ तत्व माओवादी विचारधारा का समर्थन करने की कोशिश कर रहे थे, जो देश की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।

सरकारी वकील ने कहा—
“कर्तव्य पथ जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर ऐसे नारे लगना कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। यह केवल अभिव्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि प्रतिबंधित विचारधाराओं को वैधता देने के प्रयास जैसी गतिविधि है।”

पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तार कुछ आरोपियों के बीच कई दिनों से समन्वय चल रहा था और इस प्रदर्शन की योजना सोची-समझी थी। हालांकि, इस दावे पर बचाव पक्ष ने गंभीर आपत्ति जताई।


बचाव पक्ष की दलील: “शांतिपूर्ण प्रदर्शन को गलत तरीके से आपराधिक रंग दिया गया”

बचाव वकीलों का कहना है कि मामले को अनावश्यक रूप से “राष्ट्र-विरोधी” रूप दिया गया है, जबकि वास्तविकता में यह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था। वकीलों ने अदालत को बताया कि—

  • प्रदर्शन में किसी प्रकार की हिंसा नहीं हुई,
  • किसी सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया गया,
  • और न ही किसी अधिकारी को धमकी दी गई।

बचाव पक्ष ने कहा कि सभी आरोपित युवा हैं और उनका किसी भी उग्रवादी समूह से कोई संबंध नहीं है। वकीलों ने तर्क दिया कि केवल कुछ वीडियोज़ और सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर उनकी मंशा को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है।


जमानत पर रिहा आरोपियों की कानूनी स्थिति क्या होगी?

कानून विशेषज्ञों के अनुसार, जमानत मिल जाने का अर्थ यह नहीं है कि आरोप हट गए हैं। जांच जारी रहेगी और पुलिस चार्जशीट दाखिल करेगी। यदि जांच में गंभीर सबूत मिलते हैं तो आरोपियों को ट्रायल का सामना करना पड़ेगा।

हालांकि, अदालत का जमानत देना यह संकेत है कि वर्तमान विश्लेषण में आरोप इतने मजबूत नहीं दिखे कि गिरफ्तारी जारी रहनी आवश्यक हो।


निष्कर्ष: मामला अभी भी संवेदनशील और कानूनी रूप से जटिल

कर्तव्य पथ पर हुआ यह मामला भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय सुरक्षा और विरोध प्रदर्शन के अधिकार को लेकर एक नई बहस खड़ी करता है। अदालत द्वारा 10 आरोपियों को जमानत मिलना जहां न्यायिक प्रक्रिया का संतुलित पक्ष दर्शाता है, वहीं एक आरोपी को राहत न मिलना और एक पर निर्णय लंबित रहना यह बताता है कि मामला कई कानूनी परतों वाला है।

जांच अभी जारी है और आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि इस विवादित प्रदर्शन के पीछे की वास्तविक मंशा क्या थी और क्या ये लोग किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे या केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया देने वाले प्रदर्शनकारी।

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