
मुंबई: मुंबई में सामने आए एक हाई-प्रोफाइल फर्जीवाड़े के मामले में बड़ा अपडेट सामने आया है। मुंबई क्राइम ब्रांच ने खुद को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) का वैज्ञानिक बताने वाले अख्तर कुतुबुद्दीन हुसैनी उर्फ अलेक्जेंडर पाल्मर (60) के खिलाफ 689 पन्नों की विस्तृत चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दी है। इस मामले ने जांच एजेंसियों को इसलिए भी चौंकाया है क्योंकि आरोपी न केवल फर्जी पहचान के सहारे लोगों को ठग रहा था, बल्कि उसने संवेदनशील और गोपनीय जानकारियों तक पहुंच होने का दावा कर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवाल भी खड़े कर दिए हैं।
अख्तर हुसैनी को 17 अक्टूबर को मुंबई क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था। जांच में सामने आया है कि वह वर्षों से खुद को कभी परमाणु वैज्ञानिक, कभी खुफिया एजेंट और कभी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ बताकर लोगों को गुमराह करता रहा।
फर्जी वैज्ञानिक की दोहरी पहचान, जाली दस्तावेजों का जाल
चार्जशीट के मुताबिक, मुंबई के वर्सोवा इलाके के यारी रोड का रहने वाला अख्तर कुतुबुद्दीन हुसैनी खुद को न्यूक्लियर साइंटिस्ट बताकर लोगों पर रौब जमाता था। पुलिस ने उसके पास से दो फर्जी पहचान पत्र बरामद किए हैं—
- एक अलेक्जेंडर पाल्मर के नाम से
- दूसरा अली रजा हुसैनी के नाम से
इन फर्जी पहचान पत्रों के जरिए वह उच्च-प्रोफाइल लोगों से संपर्क करता था और खुद को सरकारी व वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़ा हुआ बताता था।
फर्जी दस्तावेज बनाने वाला नेटवर्क, सह-आरोपी गिरफ्तार
मुंबई क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया है कि इस फर्जीवाड़े में मुन्नज़िर नज़ीमुद्दीन खान नामक व्यक्ति की अहम भूमिका थी। खान ने वर्ष 2016–17 के दौरान अख्तर हुसैनी के लिए—
- तीन फर्जी पासपोर्ट
- जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्र
- आधार कार्ड
- पैन कार्ड
जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किए थे। पुलिस ने खान को 25 अक्टूबर को झारखंड के जमशेदपुर से गिरफ्तार किया।
जांच एजेंसियों का मानना है कि यह फर्जीवाड़ा केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा था।
नई भारतीय न्याय संहिता के तहत गंभीर धाराएं
इस मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की कई गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। इनमें शामिल हैं—
- धारा 319 – पहचान बदलकर धोखाधड़ी
- धारा 336, 337, 338 – विभिन्न प्रकार की जालसाजी
- धारा 339 – जाली दस्तावेज रखना
- धारा 340 – जाली दस्तावेजों को असली बताकर इस्तेमाल करना
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, इन धाराओं के तहत दोष सिद्ध होने पर आरोपी को लंबी सजा हो सकती है।
पुलिस को गुमराह करने की साजिश
पूछताछ के दौरान अख्तर हुसैनी ने पुलिस को गुमराह करने की भी कोशिश की। उसने दावा किया कि उसके माता-पिता और तीनों भाई अब जीवित नहीं हैं। सह-आरोपी मुन्नज़िर खान ने भी शुरुआत में इन दावों की पुष्टि की थी।
हालांकि, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जांच के दौरान इस दावे की पोल खोल दी। जांच में सामने आया कि आरोपी का भाई आदिल हुसैनी जिंदा है और उसे दिल्ली से गिरफ्तार किया गया।
पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट कनेक्शन से बढ़ी चिंता
पुलिस जांच में यह भी सामने आया है कि आदिल हुसैनी मूल रूप से झारखंड के टाटानगर का रहने वाला है और उसके पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट के कई दौरों की जानकारी मिली है। इस खुलासे के बाद मामले की गंभीरता और बढ़ गई है।
जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि क्या इस फर्जीवाड़े का इस्तेमाल किसी बड़े नेटवर्क या संवेदनशील सूचनाओं तक पहुंच के लिए किया जा रहा था।
दुबई से पहले हो चुका है डिपोर्ट
चार्जशीट के मुताबिक, अख्तर हुसैनी को फिजिक्स और जासूसी की दुनिया से खासा लगाव था। वह कभी खुद को खुफिया एजेंट तो कभी परमाणु विशेषज्ञ के रूप में पेश करता था। वह पहले मिडिल ईस्ट की तेल और मार्केटिंग कंपनियों में काम कर चुका है।
वर्ष 2004 में उसे दुबई से डिपोर्ट किया गया था। उस समय उस पर भारत से जुड़ी संवेदनशील जानकारी बेचने की कोशिश का शक जताया गया था। हालांकि, उस दौर में ठोस आपराधिक सबूत न मिलने के कारण मामला आगे नहीं बढ़ सका।
विदेशी संपर्क और गोपनीय जानकारी का दावा
मुंबई क्राइम ब्रांच के अनुसार, आरोपी ने फर्जी वैज्ञानिक पहचान के सहारे—
- विदेशी नागरिकों से मुलाकातें कीं
- विदेश यात्राएं कीं
- गोपनीय जानकारी तक पहुंच का झांसा दिया
- इसी बहाने लोगों से पैसे वसूले
उसके पास से नक्शे और कई अन्य संदिग्ध दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं, जिनकी जांच की जा रही है।
तीसरे आरोपी की तलाश जारी
इस हाई-प्रोफाइल फर्जीवाड़े में पुलिस अब मोहम्मद इलियास मोहम्मद इस्माइल नामक तीसरे आरोपी की तलाश कर रही है। वह जमशेदपुर का रहने वाला बताया जा रहा है और उस पर फर्जी दस्तावेज तैयार करने में मदद करने का आरोप है।
पुलिस का मानना है कि इस आरोपी की गिरफ्तारी से पूरे नेटवर्क की कड़ियां और स्पष्ट होंगी।
जांच अभी जारी, एजेंसियां सतर्क
मुंबई क्राइम ब्रांच ने स्पष्ट किया है कि यह मामला अभी समाप्त नहीं हुआ है। आरोपी के अंतरराष्ट्रीय संपर्क, विदेशी दौरों और संवेदनशील दावों को देखते हुए अन्य केंद्रीय एजेंसियां भी सतर्क हो गई हैं।
जांच एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि यह फर्जीवाड़ा केवल आर्थिक लाभ तक सीमित था या इसके पीछे कोई गंभीर सुरक्षा जोखिम भी छिपा हुआ है।
निष्कर्ष
खुद को BARC का वैज्ञानिक बताने वाले अख्तर कुतुबुद्दीन हुसैनी का मामला केवल एक धोखाधड़ी नहीं, बल्कि फर्जी पहचान, अंतरराष्ट्रीय संपर्क और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर सवाल खड़े करता है। 689 पन्नों की चार्जशीट इस बात का संकेत है कि जांच एजेंसियां इस केस को बेहद गंभीरता से ले रही हैं।
आने वाले दिनों में तीसरे आरोपी की गिरफ्तारी और आगे की जांच से इस हाई-प्रोफाइल फ्रॉड केस के और बड़े खुलासे होने की संभावना है।



