
डुण्डा (उत्तरकाशी): तड़के सुबह डुण्डा बैरियर पर चेकिंग अभियान के दौरान उत्तरकाशी पुलिस को प्रतिबंधित काजल-कांठ की बड़ी खेप बरामद हुई। कार्रवाई में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है जबकि वाहन में लदी कुल 597 नग प्रतिबंधित लकड़ी पुलिस ने जब्त की। पुलिस ने आरोपियों और बरामद लकड़ी को आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए वन विभाग के सुपुर्द कर दिया है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार यह कार्रवाई पुलिस अधीक्षक सरिता डोबाल के निर्देशन एवं पुलिस उपाधीक्षक जनक सिंह पंवार की देखरेख में की गई। चौकी डुण्डा प्रभारी उपनिरीक्षक प्रकाश राणा के नेतृत्व में सुबह करीब 6:30 बजे चेकिंग अभियान के दौरान वाहन संख्या UK10C 1427 (यूटिलिटी) को रोका गया और तलाशी लेने पर उसमें भारी मात्रा में प्रतिबंधित काजल-कांठ की लकड़ी मिली। मौके पर वाहन में सवार गोपाल बोहरा व चालक विजय को गिरफ्तार कर लिया गया।
घटना का प्रारूपिक विवरण
पुलिस को पूछताछ के दौरान पता चला कि आरोपियों ने लकड़ी को गंगोरी-अगोडा क्षेत्र के जंगलों से इकट्ठा किया था और आगे इसे देहरादून या सहारनपुर ले जाने की योजना बना रहे थे। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार लकड़ी स्थानांतरण और तस्करी की यह कड़ी सीमावर्ती और पर्वतीय क्षेत्रों में लंबे समय से चल रही अवैध गतिविधियों का हिस्सा मानी जा रही है।
गिरफ्तार व्यक्तियों का विवरण इस प्रकार है:
- गोपाल बोहरा, पुत्र चन्द्र सिंह बोहरा, मूल निवासी ग्राम डोली, थाना कंचनपुर (महाकाली, नेपाल); वर्तमान आवास मोजांग, त्यूणी, देहरादून; उम्र 39 वर्ष।
- विजय, पुत्र प्रेमलाल, निवासी नाल्ड, गंगोरी भटवाड़ी, उत्तरकाशी; वाहन चालक; उम्र 35 वर्ष।
पुलिस टीम और आगे की कार्रवाई
इस ऑपरेशन में जिन अंगिकारियों ने भूमिका निभाई उन्होंने कहा कि प्रारम्भिक धरातली जाँच के बाद दोनों आरोपियों और जप्त लकड़ी को वन विभाग के सुपुर्द कर दिया गया है ताकि वन विभाग कानूनी दर्जा और संरक्षण नियमों के आधार पर आगे की कार्यवाही कर सके। कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मी — उपनिरीक्षक प्रकाश राणा, कांस्टेबल राजेंद्र गोस्वामी, कांस्टेबल अनिल नौटियाल और पीआरडी का सदस्य कृति — को भी हमेशा की तरह सटीक प्रशासनिक मदद करने के लिए सराहा गया।
वन विभाग और पुलिस के संयुक्त सत्यापन के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि किस धाराओं के अंतर्गत आरोपियों पर मुक़दमा दर्ज किया जाएगा और जप्त लकड़ी को विधिसम्मत प्रक्रिया के बाद कैसे निपटाया जाएगा।
काजल-कांठ लकड़ी — क्यों है यह प्रतिबंधित?
काजल-कांठ की लकड़ी उच्च हिमालय के आरक्षित वन क्षेत्रों में मिलती है और इसे पारंपरिक तथा औषधीय उपयोगों के कारण बहुत मूल्यवान माना जाता है। स्थानीय पारंपरिक बौद्ध समुदाय इस लकड़ी से विशेष बर्तन (बाउल) बनाते हैं जिनका खाद्य और पेय पदार्थों के लिए उपयोग होता है। इस लकड़ी की मांग और कीमत के कारण यह भारत-नेपाल-तिब्बत सीमा क्षेत्रों में अवैध तस्करी का विषय बनी रहती है। संरक्षण योग्य प्रजातियों और आरक्षित वन क्षेत्रों से अवैध कटाई व तस्करी पर रोक लगाने हेतु राज्य और केंद्र सरकार की नीतियाँ कड़ी हैं — इसलिए इस तरह की लकड़ी को प्रतिबंधित सूची में रखा गया है।
पर्यावरणीय व स्थानीय असर
वन सम्पदा की अवैध कटाई से केवल जैव-विविधता को खतरा नहीं होता, बल्कि स्थलीय पारिस्थितिकी और स्थानीय लोगों की जीवननिर्वाहिक गतिविधियों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। पर्वतीय क्षेत्रों में वन आवरण की कटाई से मिट्टी कटाव, भूस्खलन व जलधाराओं पर भी असर हो सकता है। इसलिए वन विभाग एवं पुलिस द्वारा ऐसे मामलों पर सख्ती आवश्यक मानी जाती है।
तस्करी नेटवर्क और रोकथाम की चुनौतियाँ
पुलिस के अनुसार पर्वतीय एवं सीमांत क्षेत्रो में सड़कों की सीमित पहुँच, कच्चे मार्ग तथा सीमापारियों के कारण अवैध लकड़ी का बहिर्वहन तथा बाजार तक पहुँचना आसान हो जाता है। नियंत्रित प्रजातियों की कीमत ऊँची होने के कारण स्थानीय स्तर पर इस अवैध व्यापार को अंजाम देने वाले गिरोह सक्रिय रहते हैं। इससे निपटने के लिए पुलिस, वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ जनता की जागरूकता बढ़ाना और निगरानी बढ़ाना अहम है।
पुलिस व प्रशासन की अपील
डुण्डा पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे ऐसी किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत नज़दीकी चौकी या वन विभाग को दें। साथ ही लोगों से आग्रह किया गया है कि वे अवैध कटाई, परिवहन या खरीद-बिक्री में भाग न लें ताकि स्थानीय पारिस्थितिकी व वन संपदा सुरक्षित रखी जा सके।
डुण्डा बैरियर पर की गई कार्रवाई में पुलिस ने 597 नग प्रतिबंधित काजल-कांठ की लकड़ियों सहित दो आरोपियों को गिरफ्तार कर वन विभाग के हवाले कर दिया है। मामले की आगे की विधिक और वन विभागीय जांच जारी है, जबकि स्थानीय प्रशासन व पुलिस ने जागरूकता व सघन निगरानी बढ़ाने का संकल्प भी जताया है।