नई दिल्ली: कालका-शिमला रेलवे ट्रेन का संचालन शुरू होने के बाद पहली बार इसका रंग-रूप बदला जाएगा, जिसके तहत ट्रेन में स्वदेश में निर्मित शानदार बोगियां जोड़ी जाएंगी और प्रत्येक बोगी में एक छोटी ‘पैंट्री’ और जैव-शौचालय होंगे. पंजाब के कपूरथला में रेल कोच कारखाने द्वारा विकसित ये डिब्बे लाल रंग की ‘स्विस’ बोगियों की याद दिलाते हैं. फिलहाल कालका-शिमला रेलवे ट्रेन में जो बोगियां इस्तेमाल की जाती हैं, वे 100 वर्ष से भी पहले मुगलपुरा कार्यशाला में बनी थीं, जो अब पाकिस्तान रेलवे का हिस्सा है.
कालका-शिमला ‘नैरो-गेज’ पटरी की चौड़ाई 0.762 मीटर है. यह 96.6 किलोमीटर लंबा रेल लिंक है. 1891 में दिल्ली रेलवे लाइन को कालका से जोड़ा गया था, जिसके लगभग 12 साल बाद नवंबर 1903 में लाइन खोली गई थी. अधिकारियों ने कहा कि जब रेल कोच कारखाने को कालका-शिमला रेलवे की बोगियों का डिजाइन तैयार करने और इनके निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी, तो उन्हें दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा. पहली समस्या यह थी कि डिजाइन तैयार करने और सत्यापन के लिए ‘नैरो-गेज ट्रैक’ का नमूना बनाने के लिए कोई डिजिटल डेटा नहीं था. दूसरी समस्या यह थी कि डिजाइन के सत्यापन और मंजूरी के लिए कोई संस्थान नहीं था क्योंकि मूल कार्यशाला अब पाकिस्तान में है.